माइटोकॉण्ड्रिया परासंरचना कार्य महत्वपूर्ण जानकारी | MITOCHONDRIA Details in Hindi

माइटोकॉण्ड्रिया परासंरचना कार्य महत्वपूर्ण जानकारी  | MITOCHONDRIA Details in Hindi


माइटोकॉण्ड्रिया महत्वपूर्ण जानकारी  

1. माइटोकॉण्ड्रिया को सर्वप्रथम कोलिकर (1850) ने देखा। फ्लेमिंग (1882) ने इसे फिलिया (Filia) नाम से सम्बोधित किया। 

2. अल्ट्मान (1890) ने इसे बायोप्लास्ट नाम दियाजबकि बेन्डा (1898) ने इसे माइटोकॉण्ड्रिया कहा। 

3. माइटोकॉण्ड्रिया का अभिरंजन जेनस ग्रीन-B ( Janus green-B) से किया जाता है।

4. माइटोकॉण्ड्रिया दो कलाओं वाला कोशिकांग हैजिसका अपना आनुवंशिक तन्त्र होता है अर्थात् इसमें DNA, RNA. 70Sप्रकार के राइबोसोम पाये जाते हैं। 

5. क्रेब्स चक्र से संबंधित समस्त एन्जाइम माइटोकॉण्ड्रिया के अन्दर पाये जाते हैं।

6. माइटोकॉण्ड्रिया के F1 कणों या ऑक्सीसोम्स में E.T.S. पाये जाते हैं। यहीं पर ऑक्सीडेटिव फॉस्फोरिलेशन क्रिया द्वारा ATP का निर्माण होता है और कोशिकीय कार्यों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। इसी कारण माइटो कॉण्ड्रिया को 'कोशिका का ऊर्जा गृह' (Power house of the cell) कहते हैं।

 

माइटोकॉण्ड्रिया क्या होता है ? 

  • माइटोकॉण्ड्रिया तन्तुवत (Filamentous) अथवा कणिकामय (Granular) कोशिकाद्रव्यीय कोशिकांग हैजिसे 'कोशिका का विद्युत गृह' (Power house of the cell) के नाम से जाना जाता। है। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी में देखने पर यह छोटे धागेनुमा संरचना के रूप में दिखाई देता हैइसी कारण इसे माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria Gk., mitos = particles or granules)  नाम दिया गया है।

 

  • माइटोकॉण्ड्रिया सभी वायवीय श्वसन करने वाली यूकैरियॉटिक (Eukaryotic) कोशिकाओं में पाया जाता जाने वाला अंगक है। इसे सर्वप्रथम कोलिकर (Kolliker, 1850) ने देखा । फ्लेमिंग (Flemming, 1882) इसका अवलोकन कर इसे फिलिया (Filia) नाम दिया।

 

  • अल्ट्मान (Altman, 1890) ने इसे देखा एवं इसे बायोप्लास्ट (Bioplast) नाम दिया था। बेन्डा (Benda, 1897-98) ने इसका विस्तृत अध्ययन किया और इसका नाम माइटो- कॉण्ड्रिया दिया। इसे प्लास्टोसोम्स (Plastsomes), प्लाज्मोसोम्स (Plasmosomes), वर्मीक्यूल्स (Vermicules), बायोप्लास्ट (Bioplast) तथा कॉण्ड्रियोसोम आदि नामों से जाना जाता है। इसका अभिरंजन जेनस ग्रीन-B (Janus green- B) द्वारा किया जाता है।

 

माइटोकॉण्ड्रिया का कोशिका में वितरण  

माइटोकॉण्ड्रिया सभी यूकैरियॉटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में समान रूप से वितरित होता है। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में इनका अभाव होता है। माइटोकॉण्ड्रिया कोशिकाद्रव्य में स्वतंत्रतापूर्वक गति करते रहते हैं या फिर स्थायी रूप से अधिक ऊर्जा की आवश्यकता वाले क्षेत्रों के आस-पास पाये जाते हैं। दूसरे शब्दों में ये स्थायी रूप से उन क्षेत्रों में पाये जाते हैंजो कि उपापचयी क्रियाओं में भाग लेते हैं।

 

माइटोकॉण्ड्रिया का परिमाप (Size) 

माइटोकॉण्ड्रिया की लम्बाई 0-3 माइक्रोमीटर  से 40 माइक्रोमीटर तक होती हैजबकि व्यास 0-2 माइक्रोमीटरसे 2.4 माइक्रोमीटर तक होता है। 


माइटोकॉण्ड्रिया का आकार (Shape)

माइटोकॉण्ड्रिया सामान्यतः तन्तुमय (Filamentous) अथवा कणिकामय (Granular) होते हैं। कुछ कायिक कोशिकाओं में माइटोकॉण्ड्रिया का एक सिरा मुग्दराकार (Club shaped) हो जाता है।

 

माइटोकॉण्ड्रिया  की संख्या (Number) 

माइटोकॉण्ड्रिया की संख्या प्रत्येक प्रकार की कोशिका में भिन्न-भिन्न होती हैउपापचयो कोशिकाओं में इनको संख्या अधिक होती है। यकृत कोशिकाओं में इनकी संख्या 500-1600, कैओस में 50,000, सी-अर्चिन के अण्डों में इनकी संख्या 1,40,000 से 1,50,000 तक होती हैं। पादप कोशिकाओं में इनकी संख्या अपेक्षाकृत कम होती हैं।

 

माइटोकॉण्ड्रिया की परासंरचना (Ultrastructure of Mitochondrin) 

माइटोकॉण्ड्रिया परासंरचना कार्य महत्वपूर्ण जानकारी  | MITOCHONDRIA Details in Hindi


MITOCHONDRIA Details in Hindi



माइटोकॉण्ड्रिया परासंरचना कार्य महत्वपूर्ण जानकारी  | MITOCHONDRIA Details in Hindi


इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप द्वारा देखने पर प्रत्येक माइटोकॉण्ड्रिया थर्मस फ्लास्क के समान बाह्य व आन्तरिक झिल्लियों से निर्मित दोहरी झिल्ली वाली संरचना के रूप में होता है।

1. माइटोकॉण्ड्रियल झिल्ली (Mitochondrial membrane) – 

प्रत्येक माइटोकॉण्ड्रिया द्विस्तरीय झिल्ली द्वारा घिरा रहता है। दोनों झिल्लियाँ 75 A मोटी इकाई झिल्ली के रूप में होती हैं। दोनों झिल्लियों के बीच की दूरी 60A - 100 A  तक होती है। बाहरी एवं भीतरी झिल्लियों के बीच में एक द्रव भरा रहता हैजिसमें बहुत से ह-एन्जाइम (Co-cnzymes) पाये जाते हैं।

 

2. माइटोकॉण्ड्रियल वेश्म (Mitochondrial chambers) 

प्रत्येक माइटोकॉण्ड्रिया में दो वेश्म होते हैं- 

(i) बाह्य वेश्म chamber) एवं 

(ii) आन्तरिक वेश्म (Inner chamber)

 

(i) बाह्य वेश्म (Outer chamber) 

इसे पेरीमाइटोकॉण्ड्रिया वेश्म (Perimitochondrial chamber) भी कहते हैं। यह बाह्य एवं भीतरी झिल्ली के मध्य उपस्थित 60-80 A चौड़ा वेश्म हैजिसमें प्रोटीन (Proteins), को एन्जाइम (Co- enzyme) एवं विद्युत् अपघट्य (Electrolytes) भरे रहते हैं।

 

(i) आन्तरिक वेश्म (Inner chamber) – 

इसे मैट्रिक्स (Matrix) भी कहते हैं। यह मध्यस्थ गुहा हैजो माइटोकॉण्ड्रिया के मध्य भाग में होती है। इसमें एक गाढ़ा द्रव भरा रहता हैजिसे माइटोकॉण्ड्रियल मैट्रिक्स (Mitochondrial matrix) कहते हैं। यह समांगी (Homogenous) द्रव के रूप में होता है। मैट्रिक्स में गोलाकार DNA (Circular DNA) के 2 से 6 अणु, 70S प्रकार के राइबोसोम (Ribsomes), t--RNA, m-RNA तथा DNA पॉलिमरेज (DNA-Polymerase) एवं प्रोटीन संश्लेषण से सम्बंधित एन्जाइम पाये जाते हैं। इसी कारण से माइटोकॉण्ड्रिया को अर्थ स्वनियंत्रित कोशिकांग (Semi-autonomous organelle) कहते हैं। संतति कोशिकाओं में मे अण्ड (Egg) कोशिका से पहुँचते हैं। अत: इनकी वंशागति मातृक (Maternal) होती हैं।

 

3. माइटोकॉण्ड्रियल क्रेस्ट या क्रिस्टी (Mitochondrial crests or cristae) 

माइटोकॉण्ड्रिया भीतरी झिल्ली से अन्दर की और कई वलन (Folds) विभाजनों अथवा ऊँगलीकार अन्तर्वलनों (Infoldings) के रूप में होते हैं। इन अन्तर्वलनों को माइटो- कॉण्ड्रिया क्रेस्ट्स या क्रिस्टी (Cristae) कहते हैं। क्रिस्टी को संख्या एवं उनके आकार माइटोकॉण्ड्रिया की क्रियाशीलता को प्रभावित करते हैं। क्रिस्टी बड़े होंगेमाइटोकॉण्ड्रिया की क्रिया उतनी ही प्रबल होती है।

 

4. माइटोकॉण्ड्रियल कण (Mitochondrial particles) 

इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखने पर ज्ञात होता है कि माइटोकॉण्ड्रिया आन्तरिक झिल्ली तथा क्रिस्टी पर विशेष प्रकार के सूक्ष्म कण चिपके रहते हैंजिन्हें F, कण (F, particle) या ऑक्सीसोम (Oxysomes) अथवा एलीमेन्टरी कण (Elementry particles) कहते हैं। ये F, कण 100 A की दूरी पर पाये जाते हैं। प्रत्येक F, कण की लम्बाई 160 A तक होती है।

 

प्रत्येक कण तीन भागों का बना होता है-- 

(i)आधार (Base) इसका व्यास 80 A होता है। 

(ii) वृन्त (Stalk or Pedicle) इसकी लम्बाई 50 A तथा चौड़ाई 33 A होती है। 

(iii) सिर (Head) इसका व्यास 80 A होता है।

 

प्रत्येक F1 कण प्रोटीनकॉर्टेक्स तथा फॉस्फोलिपिड कोर (Phospholipid core) का बना होता है। इन कणों में इलेक्ट्रॉन संवहन एवं ऑक्सीडेटिव फॉस्फोरिलेशन से सम्बन्धित सभी एन्जाइम्स पाये जाते हैंअतः इन्हें इलेक्ट्रॉन संवहन कण (Elec- tron transport particles) या ETP भी कहते हैं। रेकर (Racker, 1967) के अनुसारइन F, कणों में ATPase या ATP सिन्थेटेज (ATP-Synthatase) एन्जाइम भी पाया जाता हैजो कि ऑक्सीकरण (Oxidation) एवं फॉस्फोरिलेशन (Phospho- rylation) से सम्बन्धित होता है।

 


माइटोकॉण्ड्रिया के कार्य (Functions of Mitochondria) 

माइटोकॉण्ड्रिया कोशिकाओं के श्वसनांग के रूप में होते हैंजहाँ पर विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है तथा ऊर्जा मुक्त होती है। अतः माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का विद्युत् गृह' (Power house of the cell) कहा जाता है। 

माइटोकॉण्ड्रिया के प्रमुख कार्य इस प्रकार है- 

कोशिकीय श्वसन (Cellular respiration) –

माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का स्वसन केन्द्र होता है। कोशिकीय श्वसन में चार अवस्थाएं होती है- 

1. ग्लाइकोलिसिस (Glycolysis) – 

फलस्वरूप ग्लूकोज के अणु का विघटन होता है और पायरूविक अम्ल बनता है। पायरूविक अम्ल के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ऐसीटिल को-एन्जाइम का निर्माण होता है। यह ऐसीटिल को-एन्जाइम क्रेब्स चक्र में पहुँच जाता हैजहाँ पर इसका वायवीय ऑक्सीकरण होता है। यह क्रेव्स चक्र माइटोकॉण्ड्रियल मैट्रिक्स में होता है।

 

2 ऑक्सीडेटिव फॉस्फोरिलेशन (Oxidative phosphorylation ) -

ग्लाइकोलिसिसपायरूविक अम्ल के ऑक्सीकरण एवं क्रेब्स  चक्र के दौरान 2H मुक्त होते हैं। ये 2H अणु श्वसन श्रृंखला में चले जाते हैंजहाँ पर ऑक्सीडेटिव फॉस्फोरिलेशन होता है तथा इलेक्ट्रॉन के प्रत्येक जोड़े से ATP के तीन अणु उत्पन्न होते हैं। इलेक्ट्रॉन ट्रान्सपोर्ट से संबंधित सभी एन्जाइम माइटोकॉण्ड्रिया की आन्तरिक झिल्ली में पाये जाते हैं। ATP ऊर्जा से भरपूर यौगिक होता हैजो कि विभिन्न जैविक क्रियाओं के काम आती है।

 

3. ATP का ट्रान्सपोर्ट ( ATP transport ) 

कोशिकीय श्वसन के फलस्वरूप उत्पन्न ATP माइटोकॉण्ड्रिया में एकत्रित होते हैं। जिन स्थलों पर ऊर्जा को अधिक आवश्यकता होती हैमाइटोकॉण्ड्रिया वहाँ पर एकत्रित हो जाते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया की झिल्ली में संकुचन एवं बढ़े हुए द्रव स्थैतिक दाब के कारण ATP एवं जल के अणु माइटोकॉण्ड्रिया से बाहर निकल जाते हैं और कोशिका को ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं।

 

4. लिपिड्स का संश्लेषण (Lipids synthesis) - 

माइटोकॉण्ड्रिया में विभिन्न प्रकार के लिपिड्स के संश्लेषण से सम्बन्धित बहुत-से एन्जाइम्स पाये जाते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया में बसा की अतिरिक्त मात्रा संचित रहती हैजो अंकुरण करते हुए बीजों के पोषण के काम आता है।


माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य (Functions of Mitochondria):

  • माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का शक्तिगृह (Power House) कहा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा ATP का संश्लेषण होता है।
  • माइटोकॉन्ड्रिया वसा उपापचय से भी सम्बन्धित है। ऑक्सीकरण की क्रिया भी माइटोकॉन्ड्रिया मैट्रिक्स में ही होती है।
  • स्पर्मेटिड के शुक्राणु के रूपान्तरण के समय माइटोकॉन्ड्रिया शुक्राणु के मध्य भाग में अक्षीय तन्तु (Axial Filament) के चारों ओर एक सर्पिल आवरण (Spiral sheath) बनाते हैं। यह शुक्राणु को गति करते समय ऊर्जा प्रदान करता है।
  • अण्डजनन क्रिया में पीतक निर्माण (Yolk formation) में सहायक होता है।
  • माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी झिल्ली विभिन्न पदार्थों के लिए पारगम्य होती है।
  • माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाद्रव्यी जीन्स की तरह कार्य करते हैं। इनमें उपस्थित लक्षण आनुवंशिकता की सततता में। सहायता होते हैं।
  • माइटोकॉन्ड्रिया ऊतक जनन (Histogenesis) में मदद करते हैं। तंत्रिका तन्तु को (Neurofibrils) एवं पेशीय पर्त (Muscle Layer) का निर्माण भी इनके द्वारा होता है।
  • पेशियों में संकुचन हेतु अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, अतः इनमें माइटोकॉन्ड्रिया अधिक संख्या में उपस्थित रहते हैं।

माइटोकॉण्ड्रिया एवं हरितलवकों में समानताएँ:

  • माइटोकॉण्डूिया एवं हरितलवक दोनों दोहरी झिल्ली से परिबद्ध रहते हैं।
  • दोनों कोशिकांग की उत्पत्ति व वृद्धि की विधियाँ समान होती हैं तथा इनका पूर्ववर्ती कोशिकांगों के विभाजन से निर्माण होता है।
  • माइटोकॉण्डिया एवं हरितलवक दोनों में DNA, RNA 70S प्रकार का राइबोसोम पाया जाता है।
  • दोनों कोशिकांग ही अर्धस्वायत्तशासी (Semiautonomous) होते हैं।
  • सम्भवत: इनका विकास स्वतंत्र जीव के रूप में हुआ तथा बाद में धीरे-धीरे इनका पादप व जन्तु कोशिकाओं से साथ सहजीवी सम्बन्ध बना होगा।


अन्तरकोशिकीय सहजीवी संरचना Symbiotic Structures) 

माइटोकॉण्ड्रिया एवं क्लोरोप्लास्ट के इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन से ज्ञात होता है कि इनमें DNA, RNA एवं राइबोसोम पाये जाते हैं। ये आंशिक रूप से आत्मनिर्भर होते हैं। फलतः इन्हें अर्ध-स्वनियंत्रित कोशिकांग कहते हैं। अल्टमान नामक वैज्ञानिक का मानना है कि माइटोकॉण्ड्रिया एवं क्लोरोप्लास्ट स्वतंत्र सहजीवी रहे होंगे। इनकी संरचना प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के समान होती हैं। प्रारम्भिक चरण में ये यूकैरियोटिक कोशिकाओं के अंदर प्रवेश कर गये होंगे। आज ये इन कोशिकाओं में कोशिकांग के रूप में विद्यमान हैं। माइटोकॉण्ड्रिया एवं क्लोरोप्लास्ट भी जीवाणुओं अथवा प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं से निम्न समानता होती है- 

  • उपरोक्त दोनों कोशिकांगों में पाया जाने वाला DNA जीवाणुओं के समान गोलाकार होते हैं। 
  • राईबोसोम्स 70s प्रकार के होते हैं। 
  • इनको झिल्लियों में एन्जाइम्स पाये जाते हैं। 
  •  प्रोटीन संश्लेषण मशीनरी एक समान होती है। 
  • माइटोकॉण्ड्रिया को क्रिस्टी जीवाणुओं के मोसोसीम के समान होते हैं। 
  • इनका गुणन सरल प्रजनन द्वारा होता है।

Also Read.....

कोशिका कला या प्लाज्मा झिल्ली 

कोशिका कला की आण्विक संरचना

कोशिका कला परावेशित या अन्तर्वेशी प्रोटीन मॉडल

कोशिका कला के कार्य एवं जैविक महत्व एवं रूपान्तरण

कोशिका जैव- झिल्ली अभिगमन

कोशिकावमन सक्रिय अभिगमन  महत्व

अन्तः प्रदव्ययी झिल्लिका  तंत्र

झिल्ली की उपस्थिति के अनुसार कोशिकांग

माइटोकॉण्ड्रिया परासंरचना कार्य महत्वपूर्ण जानकारी

लवक प्रकार कार्य ,क्लोरोप्लास्ट

कोशिका से संबन्धित महत्वपूर्ण जानकारी

रिक्तिकाएँ  क्या होती हैं  इसकी जानकारी

राइबोसोम क्या होते हैं संरचना परासंरचना प्रकार

तारककॉय सेण्ट्रिोल वितरण संरचना  कार्य

सूक्ष्मकाएँ का होते हैं इसके कार्य

सूक्ष्मनलिकाएँ एवं सूक्ष्मतन्तु

पक्ष्म और कशाभिका

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.