प्रोटीन की संरचना एवं विकृतीकरण | Proteins Structure in Hindi

 प्रोटीन की संरचना एवं  विकृतीकरण 





प्रोटीन की संरचना (Structure of Proteins) 

संरचनात्मक रूप से प्रोटीन ऐमीनो अम्लों के जैविक बहुलक (biopolymer) होते हैं जोकि पेप्टाइड आबन्धों के द्वारा परस्पर बँधे रहते हैं। विभिन्न ऐमीनो अम्ल परस्पर संयोजित होकर पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं का निर्माण करते हैं। ये श्रृंखलाएँ विभिन्न प्रकार परस्पर जुड़कर प्रोटीन के जटिल अणु का निर्माण करती हैं जिसकी त्रिविमीय (3D) संरचना होती है। 

प्रोटीन की सम्पूर्ण संरचना निम्नलिखित पदों में निर्धारित की जा सकती है-

 

(1) प्रोटीन की प्राथमिक संरचना (Primary Structure)

 

प्रोटीन में एक अथवा अनेक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ उपस्थित हो सकती हैं। किसी प्रोटीन की एक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला विभिन्न ऐमीनो अम्ल जिस क्रम में जुड़े रहते हैंउस क्रम को प्रोटीन की प्राथमिक संरचना कहते हैं।


 

(1) प्रोटीन की प्राथमिक संरचना (Primary Structure)

 

किसी प्रोटीन की प्राथमिक संरचना का निर्धारण एन्जाइम या खनिज अम्ल के द्वारा क्रमोत्तर जल-अपघटन के द्वारा किया जाता है। प्रत्येक पद में घटते हुए अणु भार का उत्पाद प्राप्त होता है।

प्रोटीन → प्रोटियोसेस → पेप्टीन  → पॉलीपेप्टाइड → साधारण पेप्टाइड → a ऐमीनो अम्ल 

प्राथमिक संरचना का निर्धारण करना एक कठिन कार्य है। फ्रैंडिक सेन्गर (Frederick Senger) ने सर्वप्रथम इन्सुलिन (प्रोटीन) में ऐमीनो अम्लों का क्रम ज्ञात किया। इस कार्य के लिए इन्हें दो बार नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। किसी प्रोटीन की जैविक सक्रियता (biological activity) तथा उसके कार्य उसमें उपस्थित ऐमीनो अम्लों क्रम पर निर्भर करते हैं। यह देखा गया है कि किसी प्रोटीन के अवयवी ऐमीनो अम्लों में से किसी एक का भी क्रम बदल देने से उसके गुणों में बहुत अन्तर आ जाता है। उदाहरणार्थ- हीमोग्लोबिन प्रोटीन जो रक्त में पाया जाता हैश्वास द्वारा ग्रहण की गयी ऑक्सीजन को फेफड़ों से विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाता है। इस प्रोटीन अणु में ऐमीनो अम्लों की 574 इकाइयाँ होती हैं। इनके क्रम में केवल एक ऐमीनो अम्ल क्रम बदल देने से मनुष्य में 'दात्र कोशिका अरक्तता या सिकिल सेल ऐनीमियानामक रोग हो जाता है।

 

सामान्य हीमोग्लोबिन - Val-His-Leu -Thr-Pro-Glu-Lys 

सिकिल सेल हीमोग्लोबिन - Val-His - Leu—Thr—Glu—Lys

 

प्रोटीन की  द्वितीयक संरचना (Secondary Structure) 

वह त्रिविमीय आकृति जिसमें लम्बी पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ हाइड्रोजन आबन्धन के द्वारा वलित (coiled) होकर कोई आकृति ग्रहण करती हैंप्रोटीन की द्वितीयक संरचना कहलाती है। इसके द्वारा यह प्रकट होता है कि प्रोटीन की लम्बी लचीली पॉलीपेप्टाइड शृंखलाएँ हाइड्रोजन आबन्धन के द्वारा आकर्षित व वलित होकर किस प्रकार की त्रिविमीय आकृति में व्यवस्थित होती हैं।

 

द्वितीयक संरचना दो प्रकार की होती है- 

(1) a-हेलिक्स संरचना-

यह देखा गया है कि अनेक प्रोटीनों में पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला कुण्डलित होकर एक सर्पिल (spiral) संरचना का निर्माण करती है जिसे α- हेलिक्स संरचना (α-हेलिक्स विन्यास) कहते हैं। इस कुण्डलित आकृति का निर्माण एक ही पेप्टाइड श्रृंखला में C= O और N-H समूहों के मध्य हाइड्रोजन आबन्ध (>C = O.... H - N) स्थापित हो जाने से होता है। इस आबन्धों के द्वारा हेलिक्स अपनी सर्पिलाकार संरचना में बने रहते हैं । 

रेशेदार प्रोटीनें इस प्रकार की संरचना ग्रहण करती हैजैसे-बालों व ऊन में पाए जाने वाली प्रोटीन । इस प्रकार की प्रोटीनें लचीली होती हैं। जब इन्हें खींचा जाता है। तब हेलिक्स का निर्माण करने वाले दुर्बल हाइड्रोजन आबन्ध टूट जाते हैं जिससे हेलिक्स की लम्बाई स्प्रिंग के समान बढ़ जाती है। जब इन्हें छोड़ देते हैं तब हाइड्रोजन आबन्ध पुनः स्थापित हो जाते हैं और प्रोटीन पुनः कुण्डलित आकृति ग्रहण कर लेता है। 

(1) a-हेलिक्स संरचना


(2) P-लहरियादार चद्दर (P-Pleated sheet) जैसी संरचना - 

हाइड्रोजन आबन्ध दो भिन्न पेप्टाइड श्रृंखलाओं के बीच भी स्थापित हो सकते हैं। जब समतलीय पेप्टाइड श्रृंखलाएँ एक-दूसरे के समान्तर या प्रतिसमान्तर स्थित होती हैं तब श्रृंखलाओं के मध्य अन्तर- आण्विक (intermolecular) हाइड्रोजन बन्ध स्थापित हो सकते हैं जिससे चपटी चद्दरनुमा संरचना (flat sheet structure) का निर्माण होता है । चपटी चादर में उपस्थित ऐल्किल समूह (या पार्श्व श्रृंखलाएँ) बृहद आकार के होने के कारण एक-दूसरे के अति समीप हो जाते हैं और एक-दूसरे को उसके स्थान से परे धकेल देते हैं जिसके कारण पेप्टाइड श्रृंखला थोड़ी सिकुड़ जाती है और चादर अब चपटी न रहकर लहरियेदार (pleated) हो जाती है । ऐसी चादरें एक-दूसरे पर एकत्रित होकर एक त्रिविमीय (three dimensional) संरचना का निर्माण करती हैंजिसे बीटा लहरिया चादर (B-pleated sheet) कहते हैं। इस प्रकार की संरचना वाले प्रोटीन बहुत मुलायम होते हैं। रेशम की ऐसी ही संरचना होती है।

 

दो प्रकार की लहरियादार चादरें सम्भव होती हैं जो कि समानान्तर व प्रतिसमानान्तर (antiparallel) कहलाती हैं। समानान्तर संरूपण में पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के N-शिरे शीर्ष से शीर्ष तक एक-दूसरे के साथ संरेखित (aligned) होते हैं जबकि प्रतिसमानान्तर संरूपण में एक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला का N-सिरा दूसरी पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के C-सिरे के साथ संरेखण में होता है 

 

बालों में उपस्थित प्रोटीन केरैटिन की समानान्तर B-लहरियादार संरचना होती है जबकि रेशम में उपस्थित फिब्रोइन प्रोटीन की प्रतिसमानान्तर B- लहरियादार संरचना होती है।

 

(2) P-लहरियादार चद्दर (P-Pleated sheet) जैसी संरचना -

प्रोटीन तृतीयक संरचना (Tertiary Structure) 

प्रोटीन की तृतीयक संरचना समग्र वलन अर्थात् द्वितीयक संरचना के और अधिक वलन (folding) को प्रकट करती है। अतः प्रोटीन की सम्पूर्ण त्रिविमीय संरचना को तृतीयक संरचना कहते हैं। कुछ प्रोटीनों में पेप्टाइड हेलिक्स अनेक बार मुड़कर या वलित (fold) होकर एक सटी हुई संहत (compact) आकृति की संरचना बनाते हैं। इसे प्रोटीन की तृतीयक संरचना कहते हैं। यह मुख्यतया दो प्रकार की आण्विक आकृति बनाती हैजैसे- रेशेदार और ग्लोब्यूलर आकृति । उदाहरणार्थरेशेदार प्रोटीनों की तृतीयक संरचना रस्सी (rope) या छड़ (rod) जैसी होती है। ग्लोब्यूलर प्रोटीन में सम्पूर्ण अणु में एक-सी द्वितीयक संरचना नहीं होती है। अणु के एक हिस्से में हेलिक्स संरचना होती हैदूसरे भाग में B-लहरियादार चादर संरचना होती है और एक अन्य भाग में कुण्डलन संरचना हो सकती है। प्रोटीन के विभिन्न खण्ड मुड़कर एवं वलित होकर गोलाकार आकृति की संरचना बनती है।  


 इन तृतीयक संरचनाओं की श्रृंखलाओं में परस्पर बहुत कम सम्पर्क होता है इसलिए इनमें अन्तर- आण्विक (intermolecular) बल बहुत क्षीण होते हैं। इस संरचना का स्थायित्व पेप्टाइड श्रृंखला में उपस्थित पार्श्व-शृंखलाओं की परस्पर अन्योन्य क्रिया (interaction) पर निर्भर करता है।

 

प्रोटीन तृतीयक संरचना (Tertiary Structure)

तृतीयक संरचना के स्थायित्व को बनाए रखने के लिए आवश्यक बल निम्न प्रकार के हो सकते हैं- 

(i) हाइड्रोजन आबन्ध 

(ii) आयनिक या लवण सेतु 

(iii) डाइसल्फाइड बन्ध 

(iv) वाण्डर वाल्स बल

(v) हाइड्रोफोबिक बन्ध । 


 ग्लोब्यूलर प्रोटीनों के कुछ अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं- 

(i) ऐल्ब्यूमिन - अण्डे में। 

(ii) सभी एन्जाइम तथा अनेक हॉर्मोनजैसे- इन्सुलिन एवं थायरोग्लोबिन । 

(iii) हीमोग्लोबिन तथा फाइब्रिनोजन- - रक्त में।

 

प्रोटीन की चतुष्क (Quaternary) संरचना 

कुछ प्रोटीनें दो या दो से अधिक पॉलीपेप्टाइड शृंखलाओं से बनी होती हैं जिन्हें उपइकाई (subunits) कहते हैं। इन श्रृंखलाओं की एक-दूसरे के प्रति आकाशीय व्यवस्था (spatial arrangement) प्रोटीन की चतुष्क संरचना कहलाती है। चतुष्क संरचनाएँ आयनिकहाइड्रोजन और जलविरोधी (hydrophobic) आबन्धों द्वारा स्थायित्व ग्रहण करती हैं। उदाहरणार्थहीमोग्लोबिन ऐसी प्रोटीन है जो कि चार पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं से बनी होती है किन्तु ये श्रृंखलाएँ सहसंयोजक बन्धों के द्वारा परस्पर नहीं जुड़ी होती हैं।

 

प्रोटीन की चतुष्क (Quaternary) संरचना

प्रोटीनों का विकृतीकरण (Denaturation of Proteins) 

प्राकृतिक प्रोटीन की संरचना इसकी जैविकीय क्रियाशीलता के लिए उत्तरदायी होती है। ये संरचनाएँ पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के विभिन्न भागों के बीच कई आकर्षी बलों के द्वारा सन्तुलित रहती हैं। भौतिक अथवा रासायनिक परिवर्तन के द्वारा प्रोटीन इस प्रकार की बन जाती हैं कि वे अपनी सभी अथवा कुछ जैविक क्रियाशीलता खो देती हैं। इसे प्रोटीन का विकृतीकरण कहते हैं।

 

यह विकृतीकरण ऊष्मा एवं पराबैंगनी प्रकाश द्वारा अथवा अम्लक्षारभारी धातु आयन को मिलाकर किया जाता है। उदाहरणार्थजब प्रोटीन को गरम किया जाता है अथवा अम्लसान्द्र लवण विलयन या भारी धातुओं के साथ अभिकृत किया जाता है तब ये स्कंदित हो जाते हैं। इस क्रिया को प्रोटीन का विकृतीकरण (denaturing) या विषाक्तता कहते हैं। प्रोटीन विकृतीकरण पर अविलेय हो जाते हैं। विकृतीकरण पर प्राथमिक संरचना अपरिवर्तित रहती हैकिन्तु द्वितीयक और तृतीयक संरचना में परिवर्तन हो जाता है। प्रोटीनों का विकृतीकरण दो प्रकार काउत्क्रमणीय (reversible) और अनुत्क्रमणीय (irreversible), होता है। उदाहरणार्थ-जब अण्डे को उबलते हुए पानी में कुछ समय के लिए रखा जाता है तब अण्डे की प्रोटीन (globular protein) रबड़ के समान अविलेय ठोस (रेशेदार प्रोटीन) जम जाती है। यह विकृतीकरण अनुत्क्रमणीय होता हैक्योंकि विकृत प्रोटीन को इसके मौलिक रूप में नहीं बदला जा सकता है। इसी प्रकार दूध को नीबू के रस के साथ गरम करने पर पनीर (cheese) बनता है जिसमें लेक्टोएल्ब्यूमिन प्रोटीन पानी अघुलनशील रेशेदार प्रोटीन में परिवर्तित हो जाता है। दही का जमना भी अनुत्क्रमणीय विकृतीकरण का उदाहरण है। यह दूध में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा लैक्टिक अम्ल उत्पन्न होने के कारण होता है। उत्क्रमणीय विकृतीकरण में विकृतीकारक अभिकर्मकजैसे लवण या अम्ल विलयन हटाने पर विकृत प्रोटीन पुनः अपनी मौलिक दशा में पहुँच जाती है। विकृतीकरण से तात्पर्य सामान्यतः अनुत्क्रमणीय विकृतीकरण से ही रहता है। विकृतीकरण पर प्रोटीन में मौलिक (fundamental) परिवर्तन होता है और वे अपनी जैविकीय सक्रियता (biological activity) को खो देते हैं। इसी कारण एन्जाइमजो कि प्रोटीन होते हैंगरम किए जाने पर अपनी सक्रियता को खो देते हैं। विकृतीकरण के दौरान प्रोटीन का विशिष्ट एवं व्यवस्थित संरूपण खुल जाता है और वह अव्यवस्थित संरूपण ग्रहण करके विलयन में से में से अवक्षेपित हो जाता है।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.