ऐमीनो अम्ल प्रोटीन अर्थ वर्गीकरण कार्य |Proteins Work Classification in Hindi
ऐमीनो अम्ल प्रोटीन अर्थ वर्गीकरण कार्य (Proteins Work Classification in Hindi)
ऐमीनो अम्ल (Amino Acids)
ऐमीनो अम्ल वे कार्बनिक यौगिक हैं, जिनके अणुओं में ऐमीनो (-NH2) समूह और कार्बोक्सिलिक (—COOH) समूह दोनों विद्यमान होते हैं। इन्हें ऐमीनो प्रतिस्थापित कार्बोक्सिलिक अम्ल भी माना जा सकता है.
पेप्टाइड क्या होते हैं ?
जब समान अथवा भिन्न ऐमीनो अम्लों के दो अणु आपस में इस प्रकार संयोग करते हैं कि एक ऐमीनो अम्ल का कार्बोक्सिल समूह दूसरे ऐमीनो अम्ल के NH2 समूह के साथ क्रिया करता है तब पेप्टाइड आबन्ध का निर्माण होता है और जल का अणु निष्कासित होता है। अभिक्रिया के फलस्वरूप बनने वाला उत्पाद डाइपेप्टाइड कहलाता है, क्योंकि यह दो ऐमीनो अम्लों से बना होता है।
प्रोटीन क्या होता है ?
1. प्रोटीन लगभग 25 α ऐमीनो से बने प्राकृतिक बहुलक होते हैं जिनमें ऐमीनो अम्ल परस्पर पेप्टाइड आबन्धों से संयोजित रहते हैं।
2. दस ऐमीनो अम्ल ऐसे होते हैं जिन्हें हमारा शरीर संश्लेषित नहीं कर पाता है। इन्हें आहार के रूप में बाहर से दिया जाता है। इन्हें आवश्यक ऐमीनों अम्ल कहते हैं। जैसे - वैलीन, ल्यूसीन, आइसोल्यूयीन, आर्जिनीन, लाइसीन, थ्रिऑनीन, मेथिओनिन, फेनिल-ऐलानिन, ट्रिप्टोफेन, हिस्टिडीन ।
प्रोटीन [Proteins]
- प्रोटीन नाइट्रोजन युक्त जैवकीय यौगिकों का एक महत्वपूर्ण वर्ग है जो प्रकृति बहुतायत में पाया जाता है। दूध, पनीर, दालें, मछली, माँस आदि सभी प्रोटीनों में के मुख्य स्रोत हैं। ये शरीर के प्रत्येक भाग में पायी जाती हैं और शरीर की संरचना का मूल आधार बनाती हैं तथा विभिन्न शारीरिक एवं जैवरासायनिक क्रियाओं में भाग लेती हैं। ये शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए अति आवश्यक होती हैं।
- सभी प्रोटीन, अनेक ऐमीनो अम्ल इकाइयों से बनी होती हैं जो एक लम्बी श्रृंखला के रूप में परस्पर जुड़ी रहती हैं। सभी प्रोटीन एक ऐमीनो अम्लों बहुलक होते हैं।
प्रोटीन अति जटिल नाइट्रोजन युक्त बृहद कार्बनिक अणु (macromolecules) हैं जो जीवित कोशिकाओं (living cells) में पाए जाते ये प्राणियों के लिए अति आवश्यक हैं। ये हमारे भोजन का अनिवार्य घटक हैं। वसा और कार्बोहाइड्रेट के बिना मनुष्य काफी समय तक जीवित सकता है, प्रोटीन के बिना मनुष्य अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता है । जीवद्रव्य (protoplasm) का अवयव प्रोटीन ही है। मनुष्य को अपनी वृद्धि और विकास (नयी कोशिकाओं की क्षतिपूर्ति) के लिए प्रोटीन की आवश्यकता पड़ती
प्रोटीन शब्द का अर्थ
प्रोटीन शब्द उत्पत्ति ग्रीक शब्द प्रोटियोस (proteos) हुई है जिसका होता "to take the first place” क्योंकि प्रत्येक जीव का प्राथमिक एवं अनिवार्य घटक है । ये शरीर में विभिन्न जैविक कार्य (biological functions) करते कुछ ऊतकों के संरचनात्मक component) घटक भी हैं ।
प्रोटीन संघटन (Composition) -
- प्रोटीन का कोई निश्चित संघटन नहीं होता है। यह स्रोत के अनुसार बदलता रहता है। इसमें C, H, N और O सदैव उपस्थित रहते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ प्रोटीनों में आयोडीन (thyroxineमें), आयरन (हीमोग्लोबिन में), फॉस्फोरस (न्यूक्लिओप्रोटीन में), सल्फर, कैल्सियम आदि भी सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित रहते हैं।
- प्रोटीन का मूल स्रोत पेड़-पौधे हैं जो अपनी प्रोटीन का निर्माण कार्बन डाइऑक्साइड, जल और भूमि में उपस्थित खनिज लवणों से सौर ऊर्जा की उपस्थिति में करते हैं। जीव-जन्तु अपनी प्रोटीन पेड़-पौधों से प्राप्त करते हैं। प्राणी जब पेड़-पौधों को खाते हैं तब इनमें उपस्थित प्रोटीन एन्जाइम की उपस्थिति में ऐमीनो अम्ल में जल-अपघटित हो जाते हैं। ये ऐमीनो अम्ल रक्त द्वारा शोषित कर लिए जाते हैं तथा रक्त के प्रवाह के साथ शरीर के विभिन्न ऊतकों में पहुँचते हैं और प्रोटीन का निर्माण करते हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि प्रोटीन ऐमीनो अम्लों के बहुलक (polymer) हैं।
प्रोटीन का वर्गीकरण (Classification of Proteins)
प्रोटीनों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जाता है, जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं-
(I) आण्विक संरचना के आधार पर (On the Basis of Molecular Structure)
इस आधार पर प्रोटीन दो प्रकार की होती हैं-
(1) रेशेदार प्रोटीन तथा (2) गोलाकार प्रोटीन ।
(1) रेशेदार प्रोटीन (Fibrous protein) -
रेशेदार प्रोटीन के अणु लम्बे धागे के समान होते हैं जो बगल-बगल (side by side) स्थित होकर रेशे (fibres) बनाते हैं। कुछ स्थानों पर ये अणु परस्पर हाइड्रोजन आबन्धों के द्वारा जुड़े भी रहते हैं। ये जल में अविलेय होते हैं। जल में अविलेयता तथा रेशेदार प्रकृति के कारण ये जन्तु ऊतकों के प्रमुख संरचनात्मक द्रव्य (structural material) के रूप में कार्य करते हैं। उदाहरणार्थ-
(i) केरैटिन (Keratin) - त्वचा, बाल, नाखून, ऊन, सींग, पंख आदि में।
(ii) कॉलाजेन (Collagen ) - त्वचा, हड्डियों तथा टेण्डोन (tendons) में।
(iii) मायोसिन (Myosin ) - अस्थिपंजर की माँसपेशियों (muscles) में।,
(iv) फाइब्रोइन (Fibroin) - रेशम में ।
(2) गोलाकार प्रोटीन (Globular protein) -
इनके अणु शाखित व गोलाकार होते हैं। ग्लोब्यूलर प्रोटीन में उसके अणु वलित (fold) होकर सघन यूनिट (compact unit) बनाते हैं, जिसकी गोलाकर आकृति (spherical shape) होती है। इन यूनिटों में परस्पर सम्पर्क क्षेत्र कम होता है और केवल आन्तरिक हाइड्रोजन आबन्ध होते हैं। फलस्वरूप इनमें अन्तराअणुक (intramolecular) आकर्षण बल कम होता है। ये जल तथा अम्ल, क्षार और लवणों के जलीय विलयन में विलेय होते हैं।
गोलाकार प्रोटीन के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(i) एन्जाइम - ये जैविक क्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं।
(ii) हॉर्मोन - कुछ हॉर्मोन, जैसे- इन्सुलिन (insulin) और थायरोग्लोबिन (thyroglobin) उपापचय क्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं।
(iii) हीमोग्लोबिन - O2 एवं CO2 परिवहन (transport) में।
(iv) फाइब्रिनोजेन - रक्त का थक्का जमना (clotting of blood)। इसमें विलेय फाइब्रिनोजन (fibrinogen) अविलेय रेशेदार प्रोटीन फाइब्रिन (fibrin) परिवर्तित हो जाता है।
(v) ऐण्टीबॉडी-कुछ गोलाकार प्रोटीन प्रतिरक्षी के रूप में कार्य करके शरीर की रोगों से रक्षा करती हैं।
(II) कार्यों के आधार पर प्रोटीनों का वर्गीकरण
कार्य के आधार पर प्रोटीन निम्नलिखित छः प्रकार के होते हैं-
(1) संरचनात्मक प्रोटीन - उदाहरणार्थ- कॉलाजेन (collagen) जोकि त्वचा, कार्टिलेज व अस्थियों में पायी जाती है।
(2) संकुचनशील प्रोटीन - उदाहरणार्थ- मायोसिन (myosin) और ऐक्टिन (actin) जोकि अस्थि पेशियों (skeletal uscles) में पायी जाती हैं।
(3) एन्जाइम - उदाहरणार्थ- ट्रिप्सीन, पेप्सीन आदि। जैविक क्रियाओं में ये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं।
(4) हॉर्मोन - अधिकांश हॉर्मोन, जैसे-इन्सुलिन प्रोटीन होते हैं। यह शरीर में शर्करा उपापचय में भाग लेता है।
(5) प्रतिरक्षी प्रोटीन-उदाहरणार्थ- गामा ग्लोब्यूलिन (Gamma globuline)। जब शरीर में बाह्य संक्रमण (infection) ता है तब शरीर में ऐण्टीजेन (antigen) उत्पन्न होते हैं जिन्हें नष्ट करने के लिए शरीर ऐण्टीबॉडी बनाता है।
(6) रक्त प्रोटीन - उदाहरणार्थ- फाइब्रिनोजेन (fibrinogen), ऐलब्यूमिन (albumin), ग्लोब्यूलिन (globuline)।
(III) भौतिक गुणों, विशेषतया विलेयता के आधार पर वर्गीकरण
विलेयता के आधार पर प्रोटीन तीन वर्गों में बाँटे गये हैं-
(1) साधारण प्रोटीन, (2) संयुग्मित (conjugated) प्रोटीन, और (3) व्युत्पन्न (derived) प्रोटीन ।
(1) साधारण प्रोटीन-
ये केवल α-ऐमीनो अम्लों के बने होते हैं अर्थात् जल-अपघटन पर केवल a-ऐमीनो अम्ल देते हैं। इनके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(i) ऐल्ब्यूमिन (Albumin) -
जल में घुलनशील किन्तु उदासीन लवण विलयन में अघुलनशील हैं। इनमें सल्फर की मात्रा अधिक होती है जैसे- अण्डे की ऐल्ब्यूमिन, लैक्टे ऐल्ब्यूमिन (दूध में), सीरम ऐल्ब्यूमिन (रक्त में)।
(ii) ग्लोब्यूलिन (Globulin) -
जल में अविलेय किन्तु उदासीन लवण के तनु विलयन, तनु अम्ल और तनु क्षार में विलेय हैं। जैसे-रक्त सीरम (serum) और ऊतकों में।
(iii) ग्लूटेलिन (Gluteline) -
तनु अम्ल और क्षार में विलेय; जैसे-गेहूँ में।
(iv) प्रोलामिन (Prolamin) -
तनु अम्ल, तनु क्षार और 70-80% एथेनॉल में घुलनशील, जैसे-ग्लियैडिन (Gliadin) गेहूँ में और जीन (Zein) मक्का में।
(v) हिस्टोन (Histone)-
जल में अविलेय किन्तु क्षार में विलेय; जैसे-जन्तुओं के ऊतकों में और हीमोग्लोबिन में।
(vi) प्रोटामिन (Protamin) -
जल में विलेय किन्तु ऐल्कोहॉल में अविलेय। जलीय विलयन गरम करने पर स्कन्दित नहीं होता। जैसे-सेलमीन (सेलमन मछली में ) ।
(vii) स्कलैरोप्रोटीन (Scleroproteins) -
जल में अविलेय। ये शरीर को शक्ति देते हैं। जैसे-कॉलाजेन (हड्डी और कार्टिलेज) और केरैटिन (बाल में) ।
(2) संयुग्मित प्रोटीन-(Conjugated)
ये जल-अपघटन पर ऐमीनो अम्ल के अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट, न्यूक्लिक अम्ल (nucleic acid) या फॉस्फोरिक अम्ल आदि में से कोई एक अन्य पदार्थ भी देते हैं। प्रोटीनविहीन (non-protein) भाग को प्रोस्थेटिक (prosthetic) समूह कहते हैं (ग्रीक; prosthesis = an addition)। प्रोस्थेटिक समूह की प्रकृति के अनुसार ये निम्न प्रकार के होते हैं-
(i) न्यूक्लिओप्रोटीन (Nucleoproteins) -
ये प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्ल से बने होते हैं। ये समस्त कोशिकाओं के न्यूक्लियस में पाए जाते हैं।
(ii) ग्लाइकोप्रोटीन (Glycoprotein) -
ये प्रोटीन तथा किसी कार्बोहाइड्रेट, जैसे ग्लूकोसामीन और ग्लूकोरोनिक (Glucoronic) अम्ल से मिलकर बने होते हैं। ये अण्डे के श्वेत भाग में उपस्थित होते हैं।
(iii) फॉस्फोप्रोटीन (Phosphoprotein) -
ये प्रोटीन और फॉस्फोरिक अम्ल से मिलकर बने होते हैं।
(iv) क्रोमोप्रोटीन (Chromoprotein) -
इसमें धातु (Fe, Mg, Cu, Co, Mn) और प्रोस्थेटिक समूह जैसे- पाइरोल व्युत्पन्न भी उपस्थित रहते हैं, जैसे- हीमोग्लोबिन (रुधिर में), क्लोरोफिल (पेड़-पौधों में), काला ऊन और बाल ।
(3) व्युत्पन्न प्रोटीन (Derived protein) -
जब साधारण और संयुग्मित प्रोटीन का ऐमीनो अम्लों में जल-अपघटन होता है अथवा किया जाता है तब विभिन्न पदों में बनने वाले पदार्थ व्युत्पन्न प्रोटीन कहलाते हैं, जैसे-प्रोटियोस (proteos), पेप्टोन, पेप्टाइड इत्यादि ।
प्रोटीनों को प्राप्त करना (Isolation of Proteins)
पौधों के पिसे हुए बीजों अथवा जन्तुओं के कुचले हुए ऊतकों (tissues) का क्रम से जल, 10% NaCl, 0-2% KOH और 70-80% एथिल ऐल्कोहॉल द्वारा निष्कर्षित करते हैं। विभिन्न निष्कर्षों से प्रोटीन प्राप्त करने के लिए या तो इनका अपोहन (dialysis) करते हैं अथवा किसी उपयुक्त अभिकर्मक, जैसे (NH2SO4, MgSO4 और ऐल्कोहॉल द्वारा अवक्षेपण करते हैं।
प्रोटीन के कार्य (Functions of Proteins)
प्रोटीन के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
(1) शरीर के लिये नए तन्तुओं का निर्माण और उनकी टूट-फूट की मरम्मत करना।
(2) एन्जाइमों का निर्माण करना।
(3) कार्बोहाइड्रेट और वसा की अनुपस्थिति में ऊर्जा उत्पन्न करने में।
(4) माँसपेशियों का संचालन करने में।
(5) माँसपेशियों में ऑक्सीजन का संचय करने में।
प्रोटीन की कमी से रोग (Diseases) -
शरीर में प्रोटीन की कमी से क्वाशियोरकर (Kwashiorkor) रोग हो जाता है जिसके निम्नलिखित लक्षण हैं-
शरीर में सूजन आ जाती है, त्वचा सूखी और भदरंगी हो जाती है, यकृत की क्रियाशीलता कम हो जाती है और दस्त आने लगते हैं।
प्रोटीन के उपयोग (Uses of Proteins)
(1) आहार के रूप में-प्रोटीन हमारे भोजन का आवश्यक अंग है, जैसे- अण्डा, माँस, दाल इत्यादि मनुष्य को प्रोटीन प्रदान करते हैं।
(2) एन्जाइम - समस्त एन्जाइम प्रोटीन होते हैं। ये विशिष्ट जैविकीय क्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं।
(3) हॉर्मोन - शरीर की अनेक आवश्यक क्रिया में भाग लेने वाले हॉर्मोन प्रोटीन ही होते हैं। हॉर्मोन रासायनिक नियामक होते हैं। प्रोटीन हॉर्मोन इन्सुलिन जो पेन्क्रियास से स्रावित होता है रक्त र्शकरा (blood sugar) का नियमन करता है।
(4) वस्त्र उद्योग में- केसीन (एक दुग्ध प्रोटीन) का उपयोग कृत्रिम ऊन और रेशे के बनाने में किया जाता है। केसीन प्लास्टिक का उपयोग बटन बनाने में किया जाता है।
औषधि बनाने में प्रोटीन
(i) जिलेटिन का उपयोग केप्सूल (capsules) और फोटोग्राफी के फिल्म तथा प्लेट बनाने में किया जाता है।
(ii) चिकित्सीय उपयोग के लिए आवश्यक ऐमीनो अम्ल प्रोटीन के जल अपघटन से प्राप्त किए जाते हैं।
(iii) प्लाज्मा प्रोटीन (plasma protein) का उपयोग गहरी दुर्घटना से पहुँचने वाले सदमे के उपचार में किया जाता है।
(iv) इन्सुलिन (insulin एक प्रोटीन) मधुमेह (diabetes) रोगियों को शर्करा के अवशोषण का नियन्त्रण करने के लिए दिया जाता है।
(v) वाइरस (virus) से उत्पन्न होने वाली बीमारियों, जैसे- चेचक और फ्लू आदि के उपचार के लिए वैक्सीन (vaccines) बनाने में।
(6) शरीर की जैविक क्रियाओं (metabolic) का नियन्त्रण करने में
रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन शरीर में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का कार्य करता है। थायरोग्लोब्यूलिन ग्लाइको प्रोटीन जो थायरॉइड ग्रन्थि से प्राप्त होता है, थायरोक्सिन हार्मोन के संश्लेषण में भाग लेता है। रुधिर प्रोटीन थ्राम्बिन (thrombin) तथा फाइब्रिनोजन रक्त के थक्का बनने में भाग लेते हैं।
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