भारत में सामाजिक परिवर्तन कारण और शिक्षा |Social Change Causes and Education in India
भारत में सामाजिक परिवर्तन कारण और शिक्षा
भारत में सामाजिक परिवर्तन
जिस प्रकार मनुष्य गतिशील है ठीक उसी प्रकार मनुष्य निर्मित समाज भी गतिशील है। अर्थात सामाजिक परिवर्तन का अर्थ है समाज सम्बन्धी हेरफेर अथवा समाज मे होने वाले परिवर्तन जैसे- मानव जीवन सदैव एक सा नहीं रहता अपितु उसके विचारों आदतों तथा मूल्यों में किसी न किसी प्रकार परिवर्तन सदैव होता रहता है। इस दृष्टि से यदि मानव जीवन में परिवर्तन का होना आवश्यक है तो मानव की इकाई से बने हुए समाज में भी परिवर्तन का होना स्वाभाविक ही है। भारतीय समाज में सामाजिक परिवर्तनों को सरलतापूर्वक उपस्थित करने में सामाजिक कार्यकर्ताओं को दोहरा प्रयास करना पड़ेगा। एक और तो उसको प्रत्येक दिशा में परिवर्तन के लिए रचनात्मक सुझाव देने होंगे तथा दूसरी ओर उनको उन सुझावों को क्रियान्वित करने के मार्ग की बाधाओं को हटाने की भी व्यवस्थ करनी पड़ेगी।
सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति एवं विशेषताएँ
इसकी प्रकृति एवं विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
सामाजिक परिवर्तन एक अनिवार्य तथा सतत् प्रक्रिया है-
प्रत्येक समाज में सामाजिक परिवर्तन निरन्तर होता रहता है जैसे यहाँ वैदिक काल में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था थी वहीं उत्तर वैदिक काल में जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था हो गयी।
सामाजिक परिवर्तन से व्यक्तियों की अन्तः क्रिया में परिवर्तन होता है। किसी भी समाज में जब परिवर्तन होता है तो व्यक्ति और व्यक्ति समाज में अन्तर हो जाता है।
सामाजिक परिवर्तन से व्यक्तियों के व्यवहार में परिवर्तन आता है। जबसे यहाँ औद्योगीकरण की प्रक्रिया शुरू हंई है। तभी से इसमें नगरीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई है। तथा लोगों के व्यवहार, प्रेम एवं सहयोग पूर्ण व्यवहार में परिवर्तन स्पष्ट हो गया है।
सामाजिक परिवर्तन से सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन आता है। हमारे भारतीय समाज में जैसे ही कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। हमारे समाज की सामाजिक व्यवस्था भी बदल गयी।
सामाजिक परिवर्तन कभी विकासोन्मुख तथा कभी पतनोन्मुखः- कभी किसी सामाजिक परिवर्तन से समाज का उत्थान हुआ और कभी पतन इतिहास बताता है कि हमारे भारतीय समाज में वर्ण व्यवस्था परिवर्तित हुई वैसे ही समाज का रूप ही चरमरा गया इससे वर्णभेद बढ़ गया जिससे आज भी हमें मुक्ति नहीं मिली।
सभी समाजिक परिवर्तन सांस्कृतिक परिवर्तन नहीं होते:- सामाजिक परिवर्तन सांस्कृतिक परिवर्तन नही होते किन्तु सभी सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन अवश्य होते हैं। जैसे - जन्मदिन पर केक काटना एवं मोमबत्तियाँ बुझाना पाश्चात्य शैली की नकल है।
वर्तमान भारत में सामाजिक परिवर्तन के कारण
वर्तमान भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या, विविध संस्कृतियाँ, लोकतन्त्र शासन प्रणाली, विभिन्न राजनैतिक दलों के भिन्न-भिन्न मत, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, अंधाधुन्ध औद्योगीकरण, शिक्षा आदि कारक भारत के वर्तमान सामाजिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं।
उपरोक्त समस्त कारकों में शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का बहुत महत्वपूर्ण कारक है। आइये अब हम शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन के संबंध का अध्ययन करें।
शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन
शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन का गहरा संबंध है कोई समाज अपनी अपेक्षाओं तथा जरूरतों की पूर्ति शिक्षा के माध्यम से ही करता है। सामाजिक दृष्टि से शिक्षा के समस्त कार्यो को दो वर्गो में बाटा जा सकता है।
1. सामाजिक नियंत्रण
2 सामाजिक परिवर्तन
सामाजिक नियंत्रण का अर्थ है- समाज की संरचना, उसके व्यवहार प्रतिमानों ओर कार्य-विधियों की सुरक्षा और समाजिक परिवर्तन का अर्थ है- समाज की संरचना, उसके व्यवहार प्रतिमानों और कार्य- विधियों में परिवर्तन |
शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है । सामाजिक परिवर्तन शिक्षा के स्वरूप उसके उद्देश्य और पाठ्यचर्चा आदि सभी को प्रभावित करता है। यह प्रक्रिया सदैव चलती रहती है। आइये आगे देखते हैं कि किस प्रकार शिक्षा सामाजिक परिवर्तन करती है? तथा किस प्रकार शिक्षा समाजिक परिवर्तन को प्रभावित है?
शिक्षा सामाजिक परिवर्तन करती है- सामाजिक परिवर्तन के जो घटक बताये गये हैं उन सबके विकास का मूल कारण शिक्षा ही होती है प्रत्येक सभ्य समाज अपने नागरिकों के लिये औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था करता है। इस शिक्षा से मनुष्य का मानसिक विकास होता है। यह अपने तथा समाज के और सम्पूर्ण विश्व के विषय में सदैव सोचता रहता है। जिससे उसे समाज की आवश्यकताओं और समस्याओं की अनुभूति भी होती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति और समस्याओं के हल के लिये वह विचार विमर्श कर के उसका हल खोजता है। और इससे समाज को प्रभावित करता है अतः यह कार्य शिक्षा के अभाव में सम्भव नहीं है। प्राचीन काल में पाठ्यचर्चा में धर्म और नैतिकता मुख्य विषय थे जिससे हमारा समाज धर्म प्रधान था। वर्तमान समय में पाठ्यचर्चा व्यवसायिक शिक्षा/ तकनीकी शिक्षा पर ज्यादा बल दिया गया है।
सामाजिक परिवर्तन शिक्षा को प्रभावित करते हैं। प्रत्येक समाज अपनी शिक्षा का निर्माण स्वयं करता है अतः उसका स्वरूप वैसा ही होता है, जैसा समाज होता है अब यदि समाज में 'कुछ परिवर्तन होते हैं तो वह समाज अपनी शिक्षा को उसी के अनुरूप बदलने का प्रयास करता है। अतः प्रभावित करता है। प्राचीन भारत में धर्म प्रधान समाज था इसलिए उस समय की शिक्षा भी धर्म- प्रधान थी और धर्म उस समय पाठ्यचर्चा का मुख्य विषय था। आधुनिक युग में अनिवार्य एवं निः ःशुल्क शिक्षा, स्त्री शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, कृषि शिक्षा, तकनीकी शिक्षा पर विशेष बल दिया जाने लगा है।
उपरोक्त समस्त कारकों में शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का बहुत महत्वपूर्ण कारक है। आइये अब हम शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन के संबंध का अध्ययन करें।
1 विज्ञान एवं तकनीकी के संदर्भ में सामाजिक परिवर्तन
भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में निरन्तर प्रगति हो रही है, इस सबसे पुरानी मान्यताएं समाप्त सी हो रही हैं और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हो रहा है इससे सामाजिक परिवर्तन बहुत तेजी से हो रहा है। प्राचीन समय से अब तक वर्ण व्यवस्था कायम है किन्तु विज्ञान यह कहता है कि अन्र्तजातीय विवाह से उत्पन्न होने वाली पीढ़ी सदैव अपने माता-पिता से उच्च कोटि की जाति होगी तथा इन संतानों के शीलगुण सर्वश्रेष्ठ होंगे अतः विज्ञान किसी जाति व्यवस्था को नहीं मानता। कल तक हमारे परिवार में आये अतिथि का हम स्वागत सत्कार करते थे तथा कुशल-क्षेम पूछते थे किन्तु तकनीकी के विकास ने टेलीविजन का आविष्कार कर दिया जिससे आजकल हम अतिथि को सीधे टेलिविजन के सामने बिठा देते हैं। इस युग में मशीनों के आविष्कार से कुटीर उद्योग धन्धों के स्थान पर भारी उद्योगों का विकास हुआ है। परिणामतः बेरोजगारी बढ़ी है। इससे धनी और धनी हुए है तथा निर्धन और निर्धन, प्रेम और सहयोग के आधार पर बने समाजों में द्वेष और असहयोग बढ़ रहा है। कितना बड़ा सामाजिक परिवर्तन हुआ है। आधुनिक समय में विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी ने हमारे समाज का स्वरूप ही बदल दिया है। वैज्ञानिक उपकरणों, वैज्ञानिक खोजों ने मानव की जीवनशैली को बहुत गहराई से प्रभावित किया है। कंप्यूटर एवं मोबाइल सबसे सशक्त उदाहरण हैं जिन्होने मनुष्य जीवन के अनेकों पक्षों को प्रभावित किया है। ऐसे कई उपकरण व वस्तुएं हैं जो वैज्ञानिक आविष्कार का परिणाम हैं, जिन्होने सामाजिक सम्बन्धों एवं संस्कृति को प्रभावित किया है।
2 पाठ्यचर्या विकास पर सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव
पाठ्यचर्या विकास पर सामाजिक परिवर्तन का पूरा-पूरा प्रभाव दिखता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है समय-समय पर पाठ्यचर्या में परिवर्तन। सामाजिक परिवर्तन का पाठ्यचर्या विकास पर, सामाजिक परिवर्तन के प्रभाव की विवेचना हम दो पक्षों में कर सकते हैं। सर्वप्रथम सकारात्मक पक्ष तथा दूसरा नकारात्मक पक्ष । आधुनिक समाज की बदलती हुई आवश्यकताएं उसमें तीव्र गति से होने वाले परिवर्तनों की ही देन होती हैं। कोई भी समाज इन तीव्रगामी परिवर्तनों से तभी ढंग से अनुकूलन कर सकता है जब वह उन परिवर्तन से उपजी वैयक्तिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, तकनीकी एवं पारिस्थितिकीय आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था करे पाठयचर्या विकास पर सामाजिक परिवर्तन के प्रभाव का साकारात्मक पक्ष यह है कि यह नागरिक कर्तव्यों एवं अधिकारों के प्रति उचित दृष्टिकोण विकसित कर रहा है, विज्ञान एवं तकनीकी का विकास तेजी से हो रहा है जिससे लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोंण विकसित हो रहा है, समाज में लोगों के आर्थिक प्रगति के लिए व्यावसायिक एवं औद्योगिक शिक्षा पर विशेष बल दिया जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के अधिकतम सदुपायोग के लिए लोगों में कौशल विकसित किये जा रहे हैं, स्वास्थ्य शिक्षा, जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा आदि पर विशेष बल दिया जा रहा है। वही दूसरी तरफ इसका नकारात्मक पक्ष यह बताता है कि वर्तमान शिक्षा व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक एवं सांस्कृतिक विकास करने में असमर्थ है व्यक्ति के अभिवृत्तियों एवं मूल्यों का प्रतिपादन तथा परम्परागत एवं नवीन मूल्यों में सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
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