कोकशाह की मृत्यु के बाद उसका बेटा केसरीशाह 1640 में गद्दी पर बैठा। राजकुमार औरंगजेब और बादशाह शाहजहाँ के बीच में जो पत्र व्यवहार हुआ उससे लगता है कि केसरीशाह कोकशाह का बेटा था, क्योंकि औरंगजेब देवगढ़ के जमींदार जाटबा का उल्लेख करता है और यह बात भी साफ है कि पत्रों में उल्लिखित यह जाटबा वह व्यक्ति नहीं है जिसने देवगढ़ राज्य की स्थापना की थी क्योंकि वह तो बादशाह अकबर का समकालीन था । यदि केसरीशाह इस पहले जाटबा का बेटा होता और कोकशाह का भाई होता तो वह कभी भी अपने पिता का नाम नहीं अपनाता । जैसी कि हिन्दू में अपने पितामह का नाम अपनाने की परम्परा थी. केसरीशाह ने जाटबा प्रथम का नाम अपना लिया होगा और खुद को उसने जाटवा द्वितीय कहा होगा। इसके समर्थन में हम आदाब-ए-आलमगीरी. संकलित चिट्टियों में उल्लिखित कोकशाह का जाटबा उर्फ केसरीशाह पिता के रूप में उल्लेख पाते हैं जिस पर 1637 ई. में खानदौरान ने आक्रमण किया था। इसके अलावा एक सिक्कें" में कोकसुत जाटबा लिखा हुआ है याने कोकशाह का पुत्र जाटबा। इससे साफ पता चलता है कि जाटबा, जो अपने को कोकशाह का बेटा कहता है, देवगढ़ वंश का संस्थापक जाटबा प्रथम नहीं था बल्कि जाटबा द्वितीय था और इसलिए केसरीशाह को कोकशाह का बेटा मानना चाहिए।
शाहजादा औरंगजेब और बादशाह शाहजहाँ के बीच पत्र-व्यवहार
यह याद रखना जरूरी है कि शाहजादा औरंगजेब 1636 ई. से 1644 ई. तक दक्खन का वायसराय रहा। इस दौरान बादशाह शाहजहाँ और शाहजादा औरंगजेब के बीच देवगढ़ के बारे में पर्याप्त पत्र व्यवहार हुआ ये पत्र आदाब-ए-आलमगीरी में संग्रहित हैं और इनका पाठ विल्स ने अपनी किताब में दिया है। इन पत्रों में बादशाह शाहजहाँ ने देवगढ़ के बारे में दक्खन के वायसराय औरंगजेब को लगातार आदेश भेजे जिससे औरंगजेब ने खुद देवगढ़ के मामले को निपटाने का निश्चय किया और कई चिट्टियाँ लिखकर उसने देवगढ़ की हालत की शाहजहाँ को जानकारी दी।
इन पत्रों में एक बात रोचक ढंग से सामने आती है कि मुगल बादशाह का सारा जोर इस बात पर था कि देवगढ़ के राजा के पास जो बड़ी तादाद में हाथी हैं उन्हें अधिकार में किया जाये। इस बात से यह अन्दाज लगाया जा सकता है कि मुगल राजव्यवस्था और मुगल सैन्य व्यवस्था में हाथियों की बहुत अहमियत थी और हाथी पाने और उनकी तादाद बढ़ाने की हरचन्द कोशिश की जाती थी। यह बात भी रोचक है कि उन दिनों सतपुड़ा के अंचल में बड़ी तादाद में हाथी पाये जाते थे।
1652 में शाहजादा औरंगजेब को फिर से दक्खन का वायसराय नियुक्त किया गया और उसने मराठों और दक्खन के राज्यों के खिलाफ अपना अभियान फिर से जारी कर दिया। देवगढ़ इसका अपवाद नहीं रहा ।
केसरीशाह पर मुगल आक्रमण
1655 ई. में जब केसरीशाह पर कर की राशि का काफी बकाया हो गया और बार-बार कहने पर भी उसने नहीं चुकाया तो शाहजाँ ने मुगल सेना को देवगढ़ के विरुद्ध भेजा। 12 अक्टूबर 1655 ई. को अभियान दो भागों में हुआ एलिचपुर के मार्ग से और नागपुर के मार्ग से दोनों को देवगढ़ में - एकत्र होना था। चाँदा के राजा मारुजी मल्हार ने आक्रमणकारियों के साथ सहयोग किया। केसरीशह मुगलों की सेनाओं के बीच कुचल दिया गया। फलस्वरूप वह मिर्जा खान के सामने हाजिर हुआ और उसने अपना सभी बकाया चुकाने का भविष्य में ज्यादा नियमित होने वादा किया। उसके पास केवल बीस हाथी पाये गये और उन्हें ले लिया गया। केसरीशाह ने पाँच लाख रुपये नगद और जिन्स में साल भर में देने का वादा किया। उसने पिछले सूबेदारों के समय का बकाया भी किश्तों में चुकाने का और निश्चित सालाना कर हर साल चुकाने का वादा किया। पिछला और मौजूदा कर चुकाने के लिये वह खेरला के थानेदार करतलब खान को कुछ परगने सौंपने के लिये तैयार हो गया जिससे कि उनसे प्राप्त लगान से भविष्य में कर चुकाया जाता रहे केसरीशाह एक अच्छी सेना लेकर गोलकुण्डा | के अभियान में औरंगजेब के साथ गया और उसने अच्छी प्रकार सेवा की और उसने इसके बदले में अपने ऊपर के बकाया कर में कुछ छूट देने की प्रार्थना की।
सितम्बर 1657 ई. में दिल्ली में मुगल बादशाह शाहजहाँ बीमार पड़ गया। शीघ्र ही उसके मरने की अफवाह फैल गयी। शाहजहाँ के चारों बेटों दारा, शुजा, औरंगजेब और मुराद के बीच अब उत्तराधिकार युद्ध शुरू हो गया। उत्तराधिकार युद्ध समाप्त होने के बाद जब औरंगजेब बादशाह हुआ | तो फिर से उसने देवगढ़ पर दृष्टिपात किया। चूंकि 1655 ईस्वी के देवगढ अभियान के बाद देवगढ़ के राजा पर कर की राशि और भी बकाया हो गई थी इसलिए 1658 ई. में मुगल सेनाधिकारी मिर्जा खान ने देवगढ़ पर आक्रमण किया। इस अभियान में जलाल कादिर मिर्जा खान के साथ गया और उसने राशि वसूल कर ली। 20 केसरीशाह की मृत्यु कब हुई यह कहना कठिन है लेकिन 14 जून 1660 ई. की केसरीशाह की एक सनद" के आधार पर यह कहा जा सकता है कि केसरीशाह ने 1660 ई. तक को शासन किया ही था। उसका उत्तराधिकारी गोरखशाह हुआ ।
1660 ई. में केसरीशाह का उत्तराधिकारी गोरखशाह हुआ और उसने कोकशाह द्वितीय की पदवी धारण की और इस काल के इतिहास में देवगढ़ के शासक का नाम कूकसिंग या कौकासिंग भी मिलता है । स्मरणीय है कि गोरखशाह जाटबा के ज्येष्ठ पुत्र दलशाह का बेटा था
देवगढ़ राज्य पर पुनः मुगल आकमण
उत्तराधिकार युद्ध के समय मुगल साम्राज्य का शिकंजा दूर के इलाकों में ढीला पड़ गया था और इस गड़बड़ी के समय देवगढ़ ने मुगल साम्राज्य को कर देना बन्द कर दिया और स्थिति यह हो गई कि 1666 ई. में देवगढ़ के शासक गोरखशाह के ऊपर कर का बकाया 15 लाख रुपया तक चढ़ गया. इधर दक्खन में औरंगजेब के सेनानायक जयसिंह और शिवाजी के बीच 1665 ई. तक पुरन्दर की संधि हो चुकी थी। अब औरंगजेब ने दक्खन के सूबेदार जयसिंह को बकाया कर वसूल करने के लिए देवगढ़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया। ने देवगढ़ और चाँदा के राजाओं से बकाया वसूल करने के लिए दिलेरखान को जिम्मेदारी सौंपी। मिर्जा राजा जयसिंह ने देवगढ़ के अभियान में दिलेरखान की सहायता के लिये छत्रसाल को भी भेजा। उल्लेखनीय है कि चम्पतराय के दो बेटे छत्रसाल और अंगदराय इस समय मिर्जा राजा जयसिंह के अधीन मुगल साम्राज्य की सेवा में थे। दिलेरखान के अन्तर्गत एक शाही सेना जनवरी 1667 ई. में देवगढ़ के राजा को प्रताड़ित करने के लिए गोंडवाना को रवाना हुई। इससे देवगढ़ का राजा डर गया। वह मुगल शिविर में आया और उसने दिलेरखान से भेंट की और जुर्माने के रूप में तीन लाख रुपये देने और एक निश्चित समय के भीतर 18 लाख रुपये चुकाने का वादा किया। इसमें से 6 लाख रुपये दो माह में चुकाये जाने थे। उसने एक लाख रुपये का सालाना नियमित कर बिना विलम्ब के चुकाने का भी वादा किया।
देवगढ़ के राजा ने अपना वादा नहीं निभाया और अगस्त 1669 ई. में दिलेरखान को फिर से देवगढ़ पर आक्रमण करना पड़ा। इस अभियान में छत्रसाल बुन्देला दिलेरखान के साथ था। दोनों पक्षों में जमकर लड़ाई हुई। छत्रसाल ने पूरी क्षमता से युद्ध किया और उसके प्रयास से किला जीत लिया गया। युद्ध में युवक छत्रसाल बुरी तरह घायल हुआ। बादशाह को जब इस विजय की खबर मिली तो उसने तुरन्त दिलेरखान को प्रशंसा का पत्र लिखा और उसे खिलअत दी और मन्सब बढ़ा दिया। किन्तु बादशाह की ओर से छत्रसाल की प्रशंसा में एक शब्द भी नहीं कहा गया क्योंकि दिलेरखान ने छत्रसाल की बहादुरी के बारे में बादशाह को जानकारी ही नहीं दी थी। 24 इससे छत्रसाल को खराब लगा और एक दिन वह मुगल शिविर छोड़कर अपनी पत्नी के साथ महाराष्ट्र चला गया और शिवाजी से जा मिला।
. इस आक्रमण के बाद मुगलों ने देवगढ़ राज्य को बरबाद कर दिया। पराजित होने के बाद देवगढ़ का राजा भाग गया पर बाद में उसे बन्दी बना लिया गया। अब मुगल सेना देवगढ़ राज्य के प्रमुख स्थानों, नागपुर, केलझर और देवगढ़ में रखी गयी और दक्खन से मुगल अधिकारी भी प्रशासन के लिए देवगढ़ भेजे गए । औरंगजेब ने यह समझदारी जरूर की कि उसने यह आदेश दिया कि पहले युद्ध के घाव भर जाने दिये जायें, खेती फिर से शुरू हो जाये और किसान स्थिर हो जायें और फिर गोंडों के समय का लगान लागू जाये ।
देवगढ़ के किले पर अधिकार करने के बाद दिलेरखान ने अमानत के रूप में देवगढ़ के शासक गोरखशाह के दो छोटे बेटों को रख लिया, उन्हें मुस्लिम बना लिया। गोरखशाह के पाँच बेटे थे- महीपतशाह, गुमानशाह, छत्रशाह, इस्लामयार खान और दींदर खान। महीपतशाह, गुमानशाह और छत्रशाह मुसलमान नहीं बने और गोंड बने रहे। गोरखशाह को अपदस्थ कर दिया गया और उसका बेटा धर्मपरिवर्तन के बाद इस्लामयार खान के नाम से देवगढ़ की गद्दी पर बिठाया गया तथा देवगढ़ को भी अब इस्लामगढ़ कहा जाने लगा ।
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