मूत्र निर्माण अथवा वृक्क के कार्यों का नियंत्रण | Control of urine formation or kidney function

 मूत्र निर्माण अथवा वृक्क के कार्यों का नियंत्रण
(Control of urine formation or kidney function)
मूत्र निर्माण अथवा वृक्क के कार्यों का नियंत्रण | Control of urine formation or kidney function

 

 मूत्र निर्माण अथवा वृक्क के कार्यों का नियंत्रण

वृक्क  का मुख्य कार्य यूरिया तथा जल को रुधिर से अलग करके मूत्र का निर्माण तथा इसका बहिष्करण है। इसके कार्यों का नियन्त्रण दो विधियों द्वारा होता है-

 

(A) तन्त्रिकीय नियन्त्रण (Neural Control) 

वृक्कों के ऊतकों में केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की शाखाएँ बिखरी रहती हैं। केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र इन तंत्रिकाओं द्वारा ग्लोमेरुलस को केशिकाओं के संकुचन तथा शिथिलनइसकी दीवार को और इनकी उपकला कोशाओं की अवशोषण क्षमता पर नियन्त्रण रखता हैजिसके कारण मूत्र निर्माण की क्रिया प्रभावित होती है। 

(B) हॉर्मोनल नियन्त्रण (Hormonal Control) 

वृक्कों के कार्यों का नियंत्रण मुख्यतः विभिन्न अन्तः लावी ग्रन्थियों द्वारा सावित हॉर्मोनों के द्वारा होता है। वृक्क के कार्यों पर नियन्त्रण करने वाले हॉर्मोन निम्न हैं- 

1. एण्टीडाइयूरेटिक हॉर्मोन द्वारा नियंत्रण (Control by ADH) — 

हाइपोथैलेमस के द्वारा सावित एण्टौडाइयूरेटिक हॉर्मोन (ADH), पीयूष ग्रंथि को पश्च पालि के द्वारा रुधिर में छोड़ा जाता है। यह हॉर्मोन रुधिर में तभी छोड़ा जाता है जब रुधिर की परासरणता (Osmolarity) 300 mL से अधिक हो जाती है। इस स्थिति में ऑस्मोरिसेप्टर कोशिकाएँ प्यास बढ़ाती हैं। इसके कारण दूरस्थ कुण्डलित नलिका एवं संग्राहक वाहिका में जल का पुनः अवशोषण बढ़ जाता है।

 

2. जक्स्टाग्लोमेरुलर अपरेटस द्वारा नियंत्रण (Control by JGA)- 

जक्स्टाग्लोमेरुलर अपरेटस (JGA) एक बहुहॉर्मोनीय तंत्र रेनिन- एंजिओटेंसिन-एल्डोस्टीरॉन तंत्र ( RAAS) को नियंत्रित करता है। JGA रुधिर में रेनिन हॉर्मोन स्रावित करता है। रेनिन प्लाज्मा प्रोटीन एंजिओटेंसिनोजन को एंजिओटेंसिन- II नामक पेप्टाइड में परिवर्तित कर देता हैजो कि एक हॉर्मोन की भाँति कार्य करता है। एजिओटेंसिन- II के प्रभाव से आरियोल संकुचित होता है जिसके कारण रक्त दाब में वृद्धि हो जाती है। 

यह रुधिर के आयतन को भी दो प्रकार से प्रभावित करता है- 

(i) यह समीपस्थ कुण्डलित नलिका को NaCl एवं जल पुनरावशोषित करने के लिए प्रेरित करता है। 

(ii) यह एड्रीनल ग्रंथि को एल्डोस्टोरॉन हॉर्मोन सावित करने के लिए प्रेरित करता है। एल्डोस्टीरॉन मूत्र में Na' एवं Cl- की मात्रा पर नियंत्रण रखता है। 

3. एट्रियल नैट्रीयूरेटिक कारक द्वारा नियंत्रण (Control by ANF) 

एट्रियल नैट्रीयूरेटिक कारक (ANF) एक पेप्टाइड है। जो कि हृदय की एट्रिया (Atria) के द्वारा रुधिर के आयतन एवं रुधिर दाब के बढ़ने के कारण स्रावित होता है। ANF रुधिर JGA के द्वारा रुधिर में रेनिन के स्रावण की प्रक्रिया को रोक देता है। फलस्वरूप संग्राहक नलिकाओं द्वारा NaCl का पुनः अवशोषण नहीं होता है। ANF एड्रीनल ग्रंथि के द्वारा स्त्रावित एल्डोस्टोरॉन हॉर्मोन के स्राव को भी कम कर देता है। इस प्रकार एण्टोडाइयूरेटिक हॉर्मोन (ADH), रेनिन- एंजिओटेंसिन- एल्डोस्टोरॉन तंत्र (RAAS) एवं एट्रियल नैट्रीयूरेटिक कारक (ANF) वृक्क के कार्यों पर नियंत्रण रखते हैं।

 

4. पैराथामान द्वारा नियंत्रण (Control by Parathomone) - 

पैराथार्मोन का स्त्रावण पैराथायरॉइड ग्रंथि द्वारा किया जाता है। कैल्सियम लावण यह हार्मोन वृक्क में नलिकीय कैल्सियम पुनः अवशोषण की प्रक्रिया को बढ़ाता हैइस प्रकार यह यूरोनरी पर नियंत्रण रखता है। यह हार्मोन फॉस्फेट के पुनः अवशोषण को भी कम करता है तथा इसके बहिस्राव को बढ़ाकरशरीर में अतिरिक्त कोशिकीय फॉस्फेट सान्द्रण को कम करता है। 

5. थॉयरॉक्सिन द्वारा (Control by Thyroxin)— 

थायरॉक्सिन हार्मोन थायरॉइड ग्रंथि द्वारा स्त्रावित किया जाता है। यह हॉर्मोन उत्सर्जी नलिकाओं में जल के पुनः अवशोषण को कम करता है।

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