सूबा मालवा की हण्डिया सरकार के पश्चिम में देवगढ़ का परगना था । देवगढ़ की सीमाएँ तुलनात्मक रूप से स्थायी थीं। अपने पूरे इतिहास में यह न्यूनाधिक रूप से मुगल नियंत्रण में रहा और इसलिए उसकी सीमाएँ मुगल जिलों के सम्पर्क में आने वाले हर बिन्दु पर परिभाषित थीं। अपनी सीमा के चरम विस्तार में देवगढ़ के राज्य में पूरा छिंदवाड़ा, नागपुर, भण्डारा और सिवनी के पूरे जिले और बालाघाट, बैतूल और होशंगाबाद जिलों का आधा हिस्सा था । तदनुसार यह राज्य उत्तर में नर्मदा तक, पूर्व में सिवनी और लांजी तक, दक्षिण में चाँदा की सीमा तक और पश्चिम में बरार की सीमा तक विस्तृत था।
देवगढ़ राज्य का प्रशासन
देवगढ़ राज्य के प्रशासन के बारे में कोई समकालीन जानकारी नहीं मिलती लेकिन उस इलाके पर अंगरेजों का अधिकार हो जाने के बाद जब नया बन्दोबस्त किया जाने लगा, तब अंगरेज बन्दोबस्त अधिकारियों ने अंगरेजों के पहले की शासन प्रणाली के अवशेषों और स्थानीय जानकारी के आधार पर राज्य के प्रशासन का कुछ चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास किया। प्रारंभिक ब्रिटिश बन्दोबस्त अधिकारियों ने देवगढ़ रियासत में ताल्लुकेदारी प्रथा के होने की बात कही है। ताल्लुका के स्वामी याने ताल्लुकेदार की क्या जिम्मेदारियाँ और क्या अधिकार थे, इसके बारे में जानकारी मिलती है कि पहाड़ी इलाके के ठाकुर अपनी सीमा के भीतर छोटे-मोटे अपराधों की खोजखबर रखते थे। उन्हें उस सीमा के भीतर रहने वाले लोगों पर जुर्माना लगाने और उनकी संपत्ति जब्त करने का अधिकार था। लेकिन राज्य के कुछ इलाके में प्रशासन की स्थिति जरा भिन्न थी यह परगनों में विभाजित था जिसमें अनिश्चित संख्या के गाँव होते थे और हर परगने से गोंड शासन के समय जमींदार के कर्मचारी देशमुख और देशपाण्डे होते थे। इसमें सन्देह नहीं कि हुद्दार, देशमुख, देशपाण्डे आदि के जरिए केन्द्रीय प्रशासन की प्रणाली गोंडों की नहीं थी। संभवतः यह उस इलाके में थी जो बख्तबुलन्द के अधीन थी । यह बात निश्चित है कि यह प्रणाली बरार के इलाके के पास थी, जहाँ इसे काफी पहले तब लागू किया गया था जब ये इलाके, जैसे बरार, हिन्दू शासकों द्वारा शासित किए जा रहे थे। जब देवगढ़ ने मैदानी इलाके पर अधिकार किया तो यह उन्होंने अपना ली।
देवगढ़ राज्य के सिक्के
देवगढ़ राज्य के शासकों में से कुछ शासकों के सिक्के मिले हैं और ये सिक्के देवगढ़ की टकसाल से जारी किये गये थे। देवगढ़ के पहले शासक जाटबा के नाम का ताँबे का एक सिक्का नागपुर संग्रहालय में है। सबसे अधिक सिक्के कोकशाह के मिले हैं। कोकशाह के ताँबे के 19 सिक्कों की जानकारी मिली है। उनमें जो इबारत लिखी है उसमें कोकशाह को शिवभक्त जाटबा का बेटा बताया गया है और सिक्का देवगढ़ से जारी किया गया है। नागपुर के केन्द्रीय संग्रहालय में चार ताँबे सिक्के मिलने का उल्लेख है जिनके दोनों तरफ नागरी लिपि में कोकशाह लिखा है। वेलणकर कोकशाह के एक सिक्के का उल्लेख करते हैं जो उन्हें छिंदवाड़ा के ट्राइबल रिसर्च इन्स्टीट्यूट में मिला था। अन्धारे उल्लेख करते हैं कि श्री रामटेके के पास कोकशाह के दो सिक्के हैं और एक चाँदी का सिक्का है। इसके अलावा वे चाँद सुलतान के समय के एक सिक्के का उल्लेख करते हैं जिसमें मुगल बादशाह मुहम्मदशाह का नाम हैं।
देवगढ़ राज्य स्थापत्य कला
देवगढ़ का किला
देवगढ़ के किले का आकार गाय के खुर के समान है। देवगढ़ के किले की चढ़ाई बहुत सीधी या ऊँची नहीं है। यह छोटे पत्थरों और ईंटों से बना है। किला विशाल न होने पर भी अपनी सामरिक स्थिति के कारण अभेद्य माना जाता था। किले की ताकत उसकी प्राकृतिक स्थिति से है। किला समई के समान है— मध्य में ऊँचा और सीधा तथा बीच में सँकरा होते हुए ऊँचा होता शिखर । सभी दिशाओं में ऊँचे पर्वत हैं जो सुरक्षा की पहली पंक्ति के समान काम में आ सकते हैं। इन पहाड़ों के भीतर दो मील लम्बे मैदान हैं और बीच में एक छोटी पहाड़ी पर देवगढ़ का किला है जो दो मील पास आने पर ही दिखता है। बस्ती की तरफ से किले में प्रवेश करने पर पहले गणेश दरवाजा आता है। फिर दूसरा दरवाजा है। किले के आसपास 20 से 30 फुट ऊँची दीवार है, जिस पर जगह-जगह बुर्जियाँ बनी हैं, जिन पर पहले तोपें रखी जाती थीं।
आगे दाहिनी तरफ घुड़साल हैं और आगे मोती तालाब है। यहाँ से एक सस्ता महलों की ओर और दूसरा दरबार हाल की तरफ जाता हैं। रास्ते में तीन मंजिल का नगाड़खाना है। नगाड़खाना के सामने दरबार हाल है। यहाँ महल दरवाजा है जिसके भीतर जाने पर गंधी तालाब है और पास ही खजाने की इमारत है। पास ही दल बादल महल है। इसके पास ही एक पक्का सरोवर है और चारों ओर खुले बरामदे हैं। फिर आइनामहल है जो अन्तःपुर के रूप में काम में आता था । महल के पास चण्डीबुर्ज नामक बुर्ज है जिसके पास एक मस्जिद है, जिसे शायद बख्तबुलन्द ने बनवाया होगा मस्जिद के आगे एक दरवाजा है जहाँ से मोती तालाब जाते हैं। मटिया बुर्ज पूर्व की ओर है। देवगढ़ राजवंश के पतन के बाद किले की तोपें छिंदवाड़ा चली गयीं। नगाड़े छिंदवाड़ा के राम मन्दिर में और रामटेक के राम मन्दिर में है और नौबत रामाकोना के विट्ठल मन्दिर में है।
नागपुर का गोंड किला
यह किला नागपुर के महाल इलाके में है। कल्याणेश्वर (नगारखाना) मन्दिर से कुछ दूर किले का एक प्रवेश द्वार है और फिर उसके बाद दूसरा प्रवेश द्वार है। इसके बाद किले का परिसर है। आज इसकी चार बुर्जों में से एक बुर्ज ही शेष है उसके ऊपर पंचधातु की तोप है। किले में 60 फुट लम्बा एक बड़ा हाल है जिसमें रहमानशाह और सुलेमानशाह के चित्र हैं। दरबार हाल के सामने संगमर्मर का हौज है।
अम्बागढ़ किला
यह किला महाराष्ट्र के भण्डारा जिले की तुमसर तहसील में सतपुड़ा पर्वत पर तुमसर से 14 किलोमीटर दूर है। इस पर्वत की तलहटी पर अंबागढ़ नाम का आदिवासी गाँव है। इसे 1700 ईस्वी में देवगढ़ राज्य के सिवनी स्थित सूबेदार राजखान पठान ने बनवाया था। किले का क्षेत्रफल 47045 वर्गमीटर है। किले का परकोटा और बुर्ज आज भी मौजूद हैं। कुल दस बुर्ज हैं और हरेक में शत्रु पर गोलीबारी करने के लिये छेद हैं। किले के प्रवेश द्वार पर ही दो बड़े बुर्ज हैं जिनकी ऊँचाई 30 फुट और नीचे का व्यास 32 फुट तथा ऊपरी सिरे का व्यास 26 फुट हैं। पाँच बुर्जों पर तोपें थीं। प्रवेश करने के बाद सामने सैनिकों के कमरे हैं। किला दो मंजिला है और ऊपर की मंजिल 20 से 25 फुट ऊँची है उसमें दीवानखाना है और एक तलघर भी है जिसका फर्श संगमर्मर का है। यहाँ चार नक्काशीदार मेहराबें हैं। नागपुर के भोंसलों के राज्यकाल में अम्बागढ़ के किले का उपयोग अपराधियों को कैद में रखने के लिये किया जाता था।
सानगढ़ का किला
सानगढ़ी महाराष्ट्र के भण्डारा जिले के साकोली के दक्षिण में 9 मील दूर है। सानगढ़ नाम का गाँव किले से लगा हुआ है। इस किले का निर्माण बख्तबुलन्द के विश्वसनीय सरदार राजखान ने कराया था। किले की लम्बाई करीब 400 फुट और चौड़ाई 160 फुट है। किले के 7 बुर्जों में से 6 बुर्जियाँ और चहारदीवारी धराशायी हो गई हैं। केवल एक बुर्ज और चहारदीवारी के कुछ भाग बाकी हैं। किले के प्रवेश द्वार के पश्चिम में राजखान पठान की कब्र है। उसका बेटा मुहम्मदखान 1743 ई. तक सानगढ़ी का किलेदार था और राजखान अपने बुढ़ापे में अपने इस बेटे के साथ ही रहता था। किले में शिवमन्दिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, विष्णु मंदिर और मारुती तथा गणपति के मन्दिर हैं।
डोंगरताल और परताबगढ़ के किले
डोंगरताल का किला नागपुर से उत्तर की ओर 93 किलोमीटर दूर है और नागपुर-जबलपुर मार्ग से 4 किलोमीटर हटकर उत्तर की तरफ है। किले में प्रवेश करने से पहले एक बावड़ी है जो 33 मीटर वर्ग आकार की है। परताबगढ़ का किला महाराष्ट्र के भण्डारा जिले में अर्जुनी मोरगाँव के पास पूर्व की ओर 16 किलोमीटर दूर है। पास में एक पुरानी बावड़ी है। किले में एक जलाशय भी है।
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