भारत कनाडा विवाद की असल वजह खालिस्तान आंदोलन | India Canada Relationship History in Hindi
भारत कनाडा विवाद की असल वजह खालिस्तान आंदोलन
भारत कनाडा विवाद की असल वजह खालिस्तान आंदोलन
खालिस्तान आंदोलन क्या है ?
- खालिस्तान आंदोलन वर्तमान पंजाब (भारत और पाकिस्तान दोनों) में एक पृथक, संप्रभु सिख राज्य की लड़ाई है।
- यह मांग कई बार उठती रही है, सबसे प्रमुख रूप से वर्ष 1970 और वर्ष 1980 के दशक में हिंसक विद्रोह के दौरान जिसने पंजाब को एक दशक से अधिक समय तक पंगु बना दिया था।
- ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984) और ऑपरेशन ब्लैक थंडर (वर्ष 1986 एवं वर्ष 1988) के बाद भारत में इस आंदोलन को कुचल दिया गया था, लेकिन इसने सिख आबादी के कुछ वर्गों, विशेषकर कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सिख प्रवासी लोगों के बीच सहानुभूति और समर्थन जारी रखा है।
खालिस्तान विवाद इतिहास
- पंजाब में क्षेत्रवादी आंदोलन पंजाबी सूबा आंदोलन के रूप में सामने आया। पंजाबी सूबा आंदोलन मूलतः अकाली दल द्वारा चलाया गया था। पंजाब के पुनर्गठन के बाद शिरोमणी अकाली दल ने 1967 और 1977 में अपनी सरकार बनाई, लेकिन अकाली दल की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं थी। अकाली दल को पंजाब के हिन्दुओं से खास समर्थन हासिल नहीं था।
- साथ ही सिख समुदाय भी दूसरे धार्मिक समुदायों की तरह ही जाति और वर्ग में बँटा हुआ था। इन्हीं परिस्थितियों के कारण 1970 के दशक में अकालियों ने पंजाब की स्वतंत्रता की माँग उठाई। 1973 में आनंदपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में क्षेत्रीय स्वतंत्रता की बात उठाई गई। सन् 1978 में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित करके कहा कि भारत की केन्द्र सरकार का पंजाब में केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो, जबकि अन्य सभी विषयों पर राज्य का पूर्ण अधिकार हो।
- इस प्रस्ताव में अलग सिख राष्ट्र की मांग की गई, लेकिन कुछ चरमपंथी तबकों ने भारत से अलग होकर खालिस्तान बनाने की वकालत की। इन तबकों में खालसा पन्थ प्रमुख थे। उनका मानना था कि सिखों को धोखाधड़ी से भारतीय गणतंत्र में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया था। भारत में हिन्दू बहुमत ने एकजुट होकर सिख धर्म को हिन्दू धर्म का अंग बताया। सिख धर्म को बर्बाद करने की कोशिश की गई, साथ ही पंजाबी भाषा को एक बोली मात्र घोषित किया गया।
- कालांतर में आन्दोलन ने सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया। इस आंदोलन को विदेशों में रहने वाले सिखों खासकर कनाडा के सिखों का बड़ी संख्या में समर्थन प्राप्त हुआ। उग्रवादियों ने अमृतसर में स्थित सिखों के तीर्थ स्थल स्वर्ण मंदिर को अपना मुख्यालय बनाया।
कनाडा का भारत के लिए महत्वपूर्ण क्यों है?
भारत-कनाडा
लोकतंत्र और बहुलवाद के साझा मूल्यों पर विश्वास रखते हैं। दोनों देशों के बीच
नियमित उच्चस्तरीय वार्ता लंबे समय से चल रही है। भारत के लिए कनाडा के महत्त्व को
निम्न शीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता है-
- भारत और कनाडा के बीच कई मुद्दों पर तमाम मंत्रिस्तरीय वार्ता के जरिए रणनीतिक साझेदारी कायम की गई है। साथ ही दोनों देशों के बीच आतंकवाद सुरक्षा, क्षेत्र में भी सहयोग कायम किया जा रहा है।
- दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन, अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग से संबंधित कार्यक्रम के लिए इसरो और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी के बीच समझौता ज्ञापन हुआ है।
- रेल परिवहन में तकनीकी सहयोग पर कनाडा के रेल मंत्रालय और परिवहन विभाग के बीच समझौता ज्ञापन हुआ है।
- नागरिक उड्डयन के विकास के लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय और कनाडा के परिवहन विभाग के बीच समझौता ज्ञापन हुआ है।
- रोग उन्मूलन और सेविंग ब्रेन इनीशिएटिव में सहयोग के कार्यान्वयन के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा ग्रैंड चैलेंज कनाडा के बीच आशय पत्र पर समझौता हुआ है।
- भारत को यूरेनियम की दीर्घकालिक आपूर्ति के लिए भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग और कनाडा के केमेको के बीच एक समझौता भी हुआ है।
क्या वजह है कनाडा की भारत विरोधी गतिविधियों की
हालिया भारत
विरोधी गतिविधियाँ:
ऑपरेशन ब्लूस्टार वर्षगाँठ परेड (जून 2023):
- ब्रैम्पटन, ओंटारियो में आयोजित एक परेड में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाया गया, जिसमें खून से सना हुआ एक चित्र प्रदर्शित किया गया और दरबार साहिब पर हमले का बदला लेने का समर्थन किया गया।
खालिस्तान समर्थक जनमत संग्रह (2022):
- खालिस्तान समर्थक संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने ब्रैम्पटन में खालिस्तान पर एक तथाकथित "जनमत संग्रह" आयोजित किया, जिसमें महत्त्वपूर्ण समर्थन का दावा किया गया।
साँझ सवेरा पत्रिका (2002):
- वर्ष 2002 में टोरंटो स्थित पंजाबी भाषा की साप्ताहिक पत्रिका साँझ सवेरा ने इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाते हुए ज़िम्मेदार व्यक्तियों का महिमामंडन करते एक कवर चित्रण के साथ उनकी मृत्यु की सालगिरह की बधाई दी।
- पत्रिका को सरकारी विज्ञापन मिले और अब यह कनाडा का एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र है।
भारत की चिंताएँ:
- कनाडा स्थित भारतीय राजनयिकों ने कई अवसरों पर कहा है कि "सिख उग्रवाद" से निपटने में कनाडा की विफलता और खालिस्तानियों द्वारा भारतीय राजनयिकों तथा अधिकारियों का लगातार उत्पीड़न, विदेश नीति का एक प्रमुख तनाव बिंदु है।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के मौके पर कनाडा के प्रधानमंत्री से कनाडा में सिख विरोध प्रदर्शन के विषय में कड़ी चिंता जताई।
- कनाडा ने भारत के साथ प्रस्तावित व्यापार संधि पर बातचीत रोक दी है।
खालिस्तानी कट्टरवाद और भारत-कनाडा संबंध
तनावपूर्ण राजनयिक संबंध:
- आरोप-प्रत्यारोप से राजनयिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच समग्र संबंध प्रभावित होंगे।
- भरोसा और विश्वास समाप्त हो सकता है, जिससे विभिन्न द्विपक्षीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग करना मुश्किल हो जाएगा।
सुरक्षा संबंधी
निहितार्थ:
- खालिस्तान आंदोलन को विदेशों में भारत की संप्रभुता के लिये एक सुरक्षा जोखिम के रूप में देखा जाता है।
- भारत ने अप्रैल 2023 में सिख अलगाववादी आंदोलन के एक नेता को कथित तौर पर खालिस्तान की स्थापना के लिये आंदोलन का आह्वान करने पर गिरफ्तार किया ,जिससे पंजाब में हिंसा की आशंका पैदा हो गई।
- इससे पहले वर्ष 2023 में भारत ने इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाने वाली परेड में झाँकी की अनुमति देने के लिये कनाडा का विरोध किया था और इसे सिख अलगाववादी हिंसा का महिमामंडन माना था।
- कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया में भारतीय राजनयिक मिशनों पर सिख अलगाववादियों एवं उनके समर्थकों द्वारा लगातार प्रदर्शन भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिये खतरा बन सकता है जो कि भारत के लिये एक चिंता का विषय है।
व्यापार और
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- व्यापार संबंधों को नुकसान हो सकता है क्योंकि ये आरोप भारत और कनाडा के बीच व्यापारिक साझेदारी और निवेश प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं।
- बढ़ते राजनीतिक तनाव के परिणामस्वरूप, व्यवसाय में अतिरिक्त सावधानी बरत सकते हैं या अपनी भागीदारी पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
- भारत-कनाडा के बीच वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में लगभग 8.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2021 की तुलना में 25% की वृद्धि दर्शाता है।
- सेवा क्षेत्र को द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में ज़ोर दिया गया तथा 2022 में द्विपक्षीय सेवा व्यापार का मूल्य लगभग 6.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
प्रमुख मुद्दों
पर सहयोग में कमी:
- जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद-रोधी और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा जैसी महत्त्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों पर सहयोग को लेकर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- दोनों देशों को अपनी स्थिति को संरेखित करना और मिलकर इन साझा चिंताओं पर प्रभावी ढंग से कार्य करना चुनौतीपूर्ण लग सकता है।
संभावित यात्रा
और लोगों पर प्रभाव:
- बढ़ते तनाव से भारतीय और कनाडाई नागरिकों के बीच यात्रा और बातचीत प्रभावित हो सकती है, जिससे एक-दूसरे के देशों की यात्रा करना अधिक बोझिल या कम आकर्षक हो जाएगा।
अप्रवासन नीतियों
का पुनर्मूल्यांकन:
- ऐसे तत्त्वों को आश्रय देने के बारे में भारत की चिंताओं के जवाब में कनाडा अपनी अप्रवासन नीतियों की समीक्षा कर सकता है या उन्हें सख्त कर सकता है, खासकर खालिस्तानी अलगाववाद से जुड़े व्यक्तियों के संबंध में।
दीर्घकालिक
द्विपक्षीय सहयोग:
- हालिया तनाव का दीर्घकालिक द्विपक्षीय सहयोग और साझेदारी पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।
- विश्वास का पुनर्निर्माण और रचनात्मक संबंध पुनः स्थापित करने के लिये पर्याप्त प्रयास एवं समय की आवश्यकता हो सकती है।
- भारत ने वर्ष 1947 में कनाडा के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। भारत और कनाडा के बीच साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, दो समाजों की बहु-सांस्कृतिक, बहु-जातीय एवं बहु-धार्मिक प्रकृति व दोनों देशों के लोगों के बीच मज़बूत संपर्कों पर आधारित दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंध हैं।
कनाडा में खालिस्तान आंदोलन और आतंकवाद का इतिहास:
कनाडा में प्रारंभिक खालिस्तान आंदोलन:
- खालिस्तान आंदोलन की जड़ें सुरजन सिंह गिल द्वारा वर्ष 1982 में वैंकूवर में सीमित स्थानीय सिख समर्थन के साथ 'निर्वासित खालिस्तान सरकार' के कार्यालय की स्थापना से जुड़ी हैं।
पंजाब में उग्रवाद से संबंध:
- वर्ष 1980 के दशक के दौरान पंजाब में उग्रवाद का असर कनाडा पर पड़ा।
- पंजाब में आतंकवाद के आरोपी तलविंदर सिंह परमार जैसे व्यक्तियों से निपटने के कनाडा के तरीके की भारत ने आलोचना की थी।
एयर इंडिया पर बमबारी (1985):
- जून 1985 में खालिस्तानी संगठन बब्बर खालसा द्वारा एयर इंडिया के विमान कनिष्क पर बमबारी के साथ कनाडा ने आतंकवाद का एक भयानक कृत्य देखा।
भारत और कनाडा के
बीच तनाव के विगत उदाहरण:
प्रारंभिक तनाव
(1948):
- इन दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण रिश्ते की शुरुआत सबसे पहले वर्ष 1948 में हुई जब कनाडा ने कश्मीर में जनमत संग्रह का समर्थन किया था।
वर्ष 1998 का
परमाणु परीक्षण:
- भारत द्वारा वर्ष 1998 में किये गए परमाणु परीक्षणों के बाद कनाडा द्वारा भारत में अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाना इन दोनों देशों के बीच के संबंधों में कड़वाहट का प्रतीक है।
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