जहाँगीर का काल और मालवा का इतिहास | Jahangeer and Malwa Hisotry

जहाँगीर का काल और मालवा का इतिहास 

जहाँगीर का काल और मालवा का इतिहास | Jahangeer and Malwa Hisotry
 

जहाँगीर का काल और मालवा का इतिहास 

  • 1605 में अकबर के निधन के बाद उसका उत्तराधिकारी जहाँगीर हुआ। 1610 ई. में उसने अपने बेटे शाहजादा परवेज को खानदेश के हाकिम के रूप में बुरहानपुर भेजा और उसकी सहायता के लिये अब्दुर्रहीम खानखाना को नियुक्त किया गया ।  सूरत से आगरा जाने वाले सभी विदेशी यात्री बुरहानपुर से होकर गये। इंगलैंड के राजा जेम्स प्रथम का राजदूत सर टामस रो बुरहानपुर से होकर ही आगरा गया था। उसने अपने संस्मरणों में बुरहानपुर का वर्णन किया हैं। जहाँगीर ने ओरछा के शासक रामशाह को 1607 ई. में हटाकर उसके छोटे भाई वीरसिंह देव को गद्दी पर बैठा दिया। इसके पूर्व वीरसिंह देव ने शाहजादा सलीम के उकसाने पर अकबर के मंत्री अबुलफजल की हत्या करवा दी थी और इस प्रकार उसका अनुग्रह प्राप्त कर दिया था। रामशाह को चंदेरी तथा बानपुर की जागीर प्रदान की गई।

 

  • परवेज के बाद शाहजादा खुर्रम को दक्खिन को अभियानों का दायित्व सौंपा गया। वह मार्च 1617 को बुरहानपुर पहुँचा खुर्रम को दक्षिण का जब दायित्व सौंपा गया तब यह तय हुआ कि स्वयं जहाँगीर मालवा में युद्ध क्षेत्र के पास माण्डू में निवास करेगा और अक्टूबर सन् 1616 ई. में खुर्रम अजमेर से दक्षिण के लिए प्रस्थान करेगा। नवम्बर में उसे 'शाहकी उपाधि प्रदान की गई। 10 नवम्बर, 1616 ई. को जहाँगीर ने अजमेर से माण्डू के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में कई एक पड़ाव के बाद महत्त्वपूर्ण पड़ाव उज्जैन के समीप एक हिन्दू सन्यासी जदरूप से मुलाकात करने हेतु डाला गयाजिससे मिलने के लिए बादशाह स्वयं आधे मील की दूरी पैदल चलकर गया। यहाँ से दाउदखेड़ेगाँव जरावदेपालपुरनालछा हासिलपुरसांगोर 34 व 3 मार्च 1617 ई. को माण्डू पहुँचा। बादशाह जहाँगीर अजमेर से ही अब्दुल करीम मामूरी को माण्डू के पूर्व सुल्तानों की इमारतों के जीर्णोद्धार के वास्ते भेजा था। उसने बादशाह के अजमेर में रहने तक कई पुराने भवनों की मरम्मत करा दी थी और कई नये स्थान बनवाये थे। बादशाह लिखता है कि उसने ऐसा निवास स्थान बना दिया था कि उस समय किसी जगह वैसा सुन्दर व सुरम्य भवन न था। तीन लाख रुपये इसमें लगे थे। ऐसी विशाल इमारत उन बड़े शहरों में होनी चाहिए जो हमारे निवास करने की योग्यता रखते हैं।

 

  • 10 मार्च 1617 ई. से 10 मार्च 1618 ई. तक जहाँगीर ने माण्डू के महल और इमारतों का भ्रमण किया व वहीं रहा। जहाँगीरनामा में इसका सुरम्य वर्णन किया गया हैबादशाह लिखता है कि यह दुर्ग एक पहाड़ के ऊपर बसा हैइसका घेरा दस कोस नापा गया है। वर्षा के दिनों में इस गढ़ के समान कोई स्वच्छ वायु व सुन्दरता से परिपूर्ण स्थान नहीं होता है। यहाँ शीतऋतु में रात्रि को ऐसी ठण्ड पड़ती है कि रजाई ओढ़े बिना निर्वाह नहीं होता तथा दिन में पंखे की आवश्यकता नहीं पड़ती।

 

  • 9 सितम्बर, 1617 ई. को बादशाह जहाँगीर बेगमों सहित माण्डू के किले से उतरकर नर्मदा दर्शन और शिकार खेलने को निकलापरन्तु मच्छरों और खटमलों के कारण एक रात्रि से अधिक वहाँ न रह सका। दूसरे दिन तारापुर आ गया और 12 सितम्बर को माण्डू लौट आया 

 

रीवा राजा विक्रमादित्य 

  • रीवा के राजा विक्रमादित्य ने 1610 ई. में विद्रोह कर दिया जिस पर जहाँगीर ने राजा मानसिंह कछवाहा के पौत्र राजा महासिंह को विद्रोह का दमन करने भेजा और उसके बाद जहाँगीर ने बघेल क्षेत्र महासिंह को जागीर में दे दिया। विक्रमादित्य ने खुर्रम से सम्पर्क स्थापित कर जहाँगीर से माफी माँग ली और अपने क्षेत्र पुनः प्राप्त कर लिए। इस प्रकार जहाँगीर के काल में मुगल बघेल संबंधों में सुधार हुआ। 1624 ई. में विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद अमरसिंह उत्तराधिकारी बना। वह प्रथम बघेल शासक था। जिसने मुगलशाही सेवा तथा उनके अधिराज्य को स्वीकार किया था । गद्दी पर बैठने के पश्चात् दिल्ली जाकर बादशाह के प्रति सम्मान व्यक्त किया। 


जहाँगीर का धार भ्रमण : 

  • शनिवार 15 नवम्बर 1617 ई. को जहाँगीर धार पहुँचा धार का वर्णन करते हुए बादशाह लिखता है कि 'धार पुराने शहरों में से है। राजा भोज यहीं रहता था उसके समय से एक हजार वर्ष व्यतीत हुए हैं। मालवा के बादशाह भी बहुत वर्षों तब धार में रहे। सुल्तान मुहम्मद तुगलक जब दक्षिण विजय करने को गया था तब उसने यहाँ छिले हुए पत्थरों का किला एक टीले पर बनवाया जो बाहर से तो बहुत सुन्दर हैपरन्तु भीतर सूना है। मैंने इसकी लम्बाई-चौड़ाई नापने का हुक्म दिया। अमीशाह गौरी जिसका खिताब दिलावर खाँ थादिल्ली के सुल्तान फीरोज के समय में मालवा का स्वतंत्र सूबेदार था। उसने किले के बाहर की बस्ती में जामा मस्जिद बनवाई थीजिसके सामने लोटे की लाट गाड़ीजब सुल्तान बहादुर गुजराती ने मालवा को अपने अधीन कियातो इस लाट को गुजरात ले जाना चाहा परन्तु उखाड़ते समय इसके दो टुकड़े हो गये । मैंने बड़े टुकड़े को आगरा में स्वर्गवासी हजरत के रोजे ( अकबर का मकबरा) में खड़े करने को कहा। 

 

शाहजादा शाहजहाँ का मालवा आगमन : 

  • शाहजहाँ ने जब उत्तर से दक्षिण हेतु प्रस्थान किया था तब चम्बल के तट पर पहुँचकर उसने अपने पूर्वज बाबर जो कि शाहजहाँ का आदर्श भी थाका अनुसरण करते हुए प्रतिज्ञा की और मदिरा का समस्त भण्डार चम्बल नदी में उड़ेल दिया और सोने चाँदी के बहुमूल्य एवं सुन्दर प्याले तोड़कर निर्धनों में बांट दिये। शाहजहाँ जब उज्जैन पहुँचा तो उसे माण्डू के किलेदार मोहम्मद तकी का समाचार प्राप्त हुआ कि दक्षिणी सेना मंसूर के नेतृत्व में 8000 सैनिकों की संख्या में नर्मदा नदी को पार करके निकटवर्ती क्षेत्रों में लूट-पाट करते हुए दुर्ग की ओर अग्रसर है। 

 

  • शाहजहाँ ने मोहम्मद तकी की मदद हेतु तुरन्त अबुल हसन और बेरम बेग को सेना सहित रवाना कियाजिसकी सहायता से तकी ने दक्षिण सेना पर आक्रमण कर उन्हें 4 कोस तक खदेड़ दिया एवं लौटते हुए अकबरपुर में पड़ाव डाला। जब शाहजहाँ आगे बढ़कर माण्डू पहुँचा तो उसे खानेखाना का पत्र मिला जिसमें सुझाव था कि शाहजादा आगे ना बढ़ेजहाँ है वहीं रुक जायेक्योंकि बुरहानपुर में वह स्वयं ही शत्रु से घिरा हैशत्रु सेना की संख्या 60,000 है किन्तु शाहजहाँ शत्रु सेना से विचलित होने वाला नहीं था । अतः 25 मार्च, 1621 ई. को वह सेना सहित माण्डू से बुरहानपुर को निकल पड़ा। शाहजहाँ ने बुरहानपुर के आस-पास के जागीरदारों को जो कि दक्षिण की सेना द्वारा लूटे गये थे सबको एकत्र किया किन्तु मलिक अम्बर द्वारा संधिवार्ता से युद्ध समाप्त हो गया। 

 

  • 1622 में शाहजहाँ ने बादशाह जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह का झण्डा उठाया। जब शाही सेनाओं ने परवेज और महाबतखान के अधीन उसका पीछा किया तो शाहजहाँ ने असीरगढ़ के मजबूत किले में शरण ली। लेकिन जल्दी ही उसे वहाँ से भागना पड़ा। 1626 ई. में यह विद्रोह समाप्त हो गया। बुरहानपुर में अब शाहजहाँ परवेज के संरक्षक के रूप में खानजहाँ लोदी को रखा गया। कुछ समय बाद बुरहानपुर में ही परवेज का निधन हो गया ।

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