मुगल सेना का गढ़ा राज्य पर आक्रमण ,बाजबहादुर द्वारा पुनः मालवा पर अधिकार
मुगल सेना का गढ़ा राज्य पर आक्रमण :
मालवा विजय के साथ ही मुगल साम्राज्य की उत्तर-पश्चिमी सीमा महारानी दुर्गावती के गढ़ा राज्य से टकराने लगी। ख्वाजा अब्दुल मजीद जिसको आसफखाँ की पदवी दी गई थी कड़ा माणिकपुर का सूबेदार नियुक्त किया गया। उसने इस प्रदेश में अच्छा कार्य किया था । उसकी इन सेवाओं में गढ़ा की विजय भी एक थी। इस प्रदेश में बहुत सी पहाड़ियाँ और जंगल थे और जिसे इस्लाम के उदय के समय से अब तक हिन्दुस्तान का कोई भी शासक विजित नहीं कर सका था यहाँ पर रानी दुर्गावती राज्य करती थी। आसफखाँ ने कई प्रकार के बहानों से उसके राज्य में गुप्तचर भेजे थे और जब उसको गढ़ा की परिस्थिति और विशेषता से परिचय हो गया और यह भी पता लग गया कि रानी के पास बहुत बड़ा खजाना है और उसकी स्थिति दृढ़ है। रानी दुर्गावती ने बीस हजार घुड़सवार और पाँच सौ हाथियों के साथ शाही सेना का मुकाबला किया। दोनों सेनाएँ बड़ी वीरता के साथ लड़ी। रानी के जो अपने घुड़सवारों के आगे होकर लड़ रही थी, एक तीर लगा और जब उस वीर महिला ने देखा कि वह गिरफ्तार कर ली जावेगी तो उसने महावत के हाथ से खंजर लेकर अपने पेट में मार लिया और वह मर गई .
आसफ खाँ को विजय प्राप्त हुई और चौरागढ़ के तालुक तक जा कर जहाँ पर गढ़ा के शासकों का खजाना था, वह रुक गया। रानी के पुत्र ने स्वयं को दुर्ग में बन्द कर लिया, परन्तु उसी दिन शाही सेना ने दुर्ग छीन लिया और युवा राजा को घोड़ों से कुचलवाकर मार डाला गया। शाही सेना के हाथ इतने जवाहरात, सोना, चाँदी और दूसरी चीजें आयीं कि उसके दशांश का भी कोई अनुमान नहीं कर सकता। इस अपार लूट में से आसफखाँ ने दरबार में केवल 15 हाथी भेजे और शेष समस्त सम्पत्ति अपने पास रख ली .
विन्सेंट ए. स्मिथ ने लिखा है कि ऐसी उच्च चरित्र वाली रानी के विरुद्ध अकबर का सेना भेजना केवल अतिक्रमण था । विशेषतः उसने अकबर के विरुद्ध कोई ऐसा कार्य नहीं किया था, जिससे वह उत्तेजित होता। अकबर की इस चढ़ाई में कोई औचित्य नहीं था । यह केवल लूट और विजय की तृष्णा से ही गई थी ।
गढ़ा राज्य की विजय के बाद अकबर ने गढ़ा को मालवा सूबा में मिला लिया और अधिकांश क्षेत्र गढ़ा सरकार के अन्तर्गत शेष भाग चंदेरी सरकार में मिला दिये गये । तदनन्तर यह प्रदेश मुगल नियंत्रण में ही रहा ।
बाजबहादुर द्वारा पुनः मालवा पर अधिकार:
पीरमोहम्मद ने आधमखाँ के स्थान पर नियुक्त होने के बाद मालवा में सेना एकत्र कर असीरगढ़ तथा बुरहानपुर के इलाकों को जीतने के लिए रवाना हुआ। इस क्षेत्र में मुख्य दुर्ग बीजागढ़ का था, जिसको घेर कर उसने जीत लिया और सारे दुर्ग रक्षकों को मौत के घाट उतार दिया। फिर उसने सुल्तानपुर के ऊपर चढ़ाई की और उसको जीतकर शाही इलाके में मिला लिया। फिर वह असीरगढ़ पहुँचा। नर्मदा पार करके उसने बहुत से कस्बों को और गाँवों को तहस नहस कर डाला और फिर बुरहानपुर पहुँचा। इस नगर पर उसने अधिकार कर लिया • और वहाँ के सब निवासियों को मार डालने का हुक्म दिया। उसने अपनी उपस्थिति में ही वहाँ के बहुत से मुल्लाओं और सैय्यदों को मरवा दिया। असीरगढ़ और बुरहानपुर के सूबेदार और बाजबहादुर, जो मालवा से भागने के बाद इसी स्थान पर छिपे हुए थे, एकत्र होकर उस पर आक्रमण करने का विचार किया इसमें क्षेत्र के जमींदारों ने उसका साथ दिया। तब सेना इकट्ठी कर बाजबहादुर ने पीरमोहम्मद पर उस समय हमला किया जब लूट का बहुत सारा माल लेकर उसकी सेना वापस लौट रही थी। पीरमोहम्मद इस अचानक हुए आक्रमण का सामना नहीं कर सका और माण्डू की ओर भागा और नर्मदा पार करते हुए घोड़े से गिरकर डूबकर मर गया। निजामुद्दीन लिखता है कि उसको दुष्कर्मों का फल मिल गया |
पीरमोहम्मद की मृत्यु मृत्यु से मुगल सेना में हताशा व डर फैल गया क्योंकि उन्होंने मालवा निवासियों पर इतने अत्याचार किये थे कि अब उन्हें अपना ही जीवन संकट में नजर आने लगा था। अतएव वे मालवा छोड़कर आगरा भाग गये। बाजबहादुर ने उनका पीछा किया और एक बार फिर मालवा पर अपना अधिकार कर लिया। उन अमीरों को जो बिना हुक्म के मालवा छोड़कर आगरा में आ गये थे, कुछ समय के लिए कैद में रखा गया और बाद में रिहा कर दिया गया।
अतः अकबर ने अब्दुल्लाखाँ उजबेग, जिसने मालवा विजय में अदहमखाँ की सहायता की थी, तथा वह मालवा की परिस्थितियों से भी परिचित था, को पुनः मालवा विजय के लिए भेजा। ई. सन् 1562 के अन्त में अब्दुल्ला और उसकी सहायक सेना ने मालवा में प्रवेश किया ।
बाजबहादुर उनका सामना नहीं कर सका और दक्षिण की पहाड़ियों में चला गया। मुगल सेना द्वारा जब उसका पीछा किया गया तब वह छिपता- छिपता मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की शरण में चला गया। अन्त में उसने अकबर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया तब अकबर ने उसे दो हजारी जात और सवार का मनसब दिया। अकबर के दरबार में बाजबहादुर की गणना मनसबदारों तथा गायकों दोनों में होती थी।
जुलाई 1564 ई. में अब्दुल्लाखाँ ने अकबर के विरुद्ध विद्रोह करने का इरादा किया और अकबर को स्वयं उसके विरुद्ध जाना पड़ा। अब्दुल्लाखाँ को शीघ्र ही मालवा छोड़कर गुजरात भागना पड़ा। अकबर अपनी सेना सहित माण्डू पहुँचा तब आस-पास के जमींदार स्वामि भक्ति प्रकट करने के लिए आये । अगस्त 1564 ई. को अकबर माण्डू से रवाना हुआ। कर्रा बहादुरखाँ को माण्डू का सूबेदार नियुक्त किया गया । .
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