मध्यप्रदेश इतिहास मुगलकाल में भू-राजस्व प्रणाली | MP Reveue System in Mugal Period
मध्यप्रदेश इतिहास मुगलकाल में भू-राजस्व प्रणाली
मध्यप्रदेश इतिहास मुगलकाल में भू-राजस्व प्रणाली
मुगलकालीन प्रान्तीय और स्थानीय भू-राजस्व प्रशासन में निम्न पदाधिकारी थे, जो इसे संचालित करते थे।
दीवान-ए-सूबा :-
- प्रांत के राजस्व प्रशासन में केन्द्रीय राजस्व विभाग के प्रतिनिधि के रूप में "दीवान-ए-सूबा " का पद था, इस पद का निर्माण अकबर ने अपने शासन के 24 वें वर्ष में किया था, प्रत्येक सूबे में दीवान-ए-सूबा व अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई थी इसकी नियुक्ति वजीर की अनुशंसा पर "हस्ब-उल-हुक्म " पर बादशाह के अनुमोदन से होती थी। सम्राट की स्वीकृति के बाद उस नियुक्ति पत्र को वजीर के हस्ताक्षर होने पर "परवाना-ए-खिदमत" कहा जाता था।
- दीवान का पद सूबेदार के अधीन नहीं था, यह कहा जा सकता है कि वे दोनों प्रतिद्वंदी थे, दोनों द्वारा एक दूसरे की निगरानी रखी जाती थी। इस प्रकार प्रांतों में द्वैधात्मक शासन की स्थापना हो गई थी।
- दीवान के हस्ताक्षर के बगैर खजाने से कोई रकम नहीं निकाली जा सकती थी। दीवान की सहायतार्थ दो प्रकार के कर्मचारी होते थे। एक केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त जैसे पेशकार, दरोगा आदि एवं प्रांतीय कर्मचारी जैसे कचहरी का मुन्शी, हजूरमवीस, सूबानवीस, मुहर्रिर ए खालसा, मुहर्रिर - ए - दफ्तर-ए-तन, मुहर्रिर-ए-वजीफा, तौल माप के मुहर्रिर आदि इनकी नियुक्ति दीवाने सूबा द्वारा ही की जाती थी।
दीवान प्रांतीय वित्त विभाग का अध्यक्ष था, राजस्व विभाग के सभी कर्मचारी उसके अधीन कार्य करते थे, दस्तुरूल अमल (शासकीय मेनुअल) के अनुसार उसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित थे -
1. खालसा महालों की मालगुजारी वसूलना,
2. वसूली एवं बकाया का हिसाब रखना,
3. "मदद-ए-माश" धर्मदाय भूमियों का पर्यवेक्षण,
4. प्रांताधिकारियों के कार्यानुसार उनका वेतन निर्धारण एवं वितरण,
5.खालसा सरकारों में शाही सनदों द्वारा वितरित जागीरों का वित्तीय प्रबंध देखना,
6. कृषि को प्रोत्साहन देना,
7. कोषागारों पर कड़ी निगरानी ताकि कोई व्यक्ति बिना प्रमाणित आज्ञा पत्र के रुपया नहीं निकाल सके इस प्रकार "दीवाने-सूबा" प्रांतीय राजस्व प्रशासन का महत्त्वपूर्ण पद था ।
दीवान-ए-सरकार :-
सरकार के मुख्य राजस्व अधिकारी को दीवान-ए-सरकार कहा जाता था। यद्यपि इसकी नियुक्ति केन्द्र द्वारा होती थी, परंतु यह दीवान-ए-सूबा के अधीन कार्य करता था ।
1. परगने के अधिकारियों के आचरण पर निगरानी रखता,
2. इस तथ्य की जांच करता की राजकीय अधिकारी रैयतों से पैदावार के निर्धारित आधे से अधिक भाग वसूल नहीं करे,
3. उसे अपने अधीनस्थ अधिकारी की दोषसिद्धि पर उसको स्थानांतरित करने का अधिकार होता था,
4. फोतदार और करोड़ी द्वारा शासकीय शुल्क का गबन नहीं हो पाये इसकी तसदीक करना ।
5. लेखा करता और कोई गबन का पता चलता तो संबंधित अधिकारी से स्पष्टीकरण माँगता
6. आमिलों के द्वारा गबन की संभावनाओं के विरुद्ध सतर्कता हेतु कानूनगो और चौधरियों से इस आशय का एक अनुबंध प्राप्त कर लेता था कि वे किसी भी प्रकार के गबन की सूचना दीवान को देंगे।
7. किसी व्यक्ति द्वारा अवबाब (निशिद्ध कर) नहीं वसूला जाये, इसका प्रबंध करना.
8. आमिलों के कार्यों और हिसाब किताब की कड़ी जाँच एवं भ्रष्ट आमिलों की बर्खास्तगी की संस्तुति देना, प्रान्त के टकसालों की देखरेख,
9.विभिन्न विभागों के बजट एवं व्यय पर नियंत्रण रखना, बकाया लगान तथा तकाबी की वसूली करना ।
इस प्रकार दीवान-ए-सरकार प्रांतीय प्रशासन का एक महत्त्वपूर्ण पद था.
आमिल या अमलगुजार :
दीवान-ए-सरकार का अधीनस्थ और परगना या महाल का राजस्व अधिकारी अमलगुजार कहलाता था। आमिल या अमलगुजार परगने का प्रमुख प्रशासनिक पदाधिकारी था। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित थे -
1. मालगुजारी की वसूली,
2. कृषि को प्रोत्साहन, अधिकाधिक भूमि को कृषि के योग्य बनाना,
3. भूमि की पैमाइश एवं भू-राजस्व का संग्रहण,
4. प्रत्येक टप्पे में टप्पेदार की नियुक्ति, ताकि प्रत्येक गाँव व कृषक से सीधा घनिष्ठ संबंध रखा जा सके।
5. निर्धन व अभावग्रस्त किसानों के लिये अमीन से अनुरोध कर उन्हें ऋण उपलब्ध करवाना, ताकि कृषि कार्य सम्पन्न हो सके।
6. भू-राजस्व का भुगतान नहीं टाला जा सके, इस हेतु कृषकों की निगरानी हेतु घुड़सवारों व पैदल की नियुक्ति ।
7. अमीन व फोतदार के सहित सम्मिलित रूप से स्थानीय कोषागार में जमा धन की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी थी।
8.चौधरी, कानूनगो, मुकद्दम जैसे अर्द्धसरकारी सेवकों का पारिश्रमिक निर्धारित करना ।
9. कुल वर्ष की आय - व्यय की राशि का हिसाब रखना व हिसाब के रजिस्टरों 146 को दरबार में प्रेषित करना ।
अमलगुजार इन सभी कार्यों को अपने अधीनस्थों के सहयोग से पूरा करता था, जो निम्नलिखित हैं ।
बितिक्ची :-
- बितिक्ची एक तुर्की मूल का शब्द है, जिसका अर्थ लेखक (लिपिक) या अभिलेखक है । परन्तु मुगलकाल में उसकी स्थिति लिपिक से कहीं अधिक व श्रेष्ठ थी। वह अमलगुजार के अधीनस्थ था, यह भूमि संबंधित आँकड़ों का ब्यौरा रखता था। इसी के आँकड़ों के आधार पर अमलगुजार, मालगुजारी वसूल करता था
- बितिक्ची को किसानों की भूमि, उनके द्वारा दी जाने वाली मालगुजारी की रकम तथा संबंधित गाँव की अनुमानित मालगुजारी का लेखा-जोखा रखना होता था। इन कार्यों हेतु उसे कानूनगो और पटवारी से निकट सम्पर्क बनाये रखना होता था, और साल के अन्त में उसे संक्षिप्त रूप में सारा ब्यौरा, मालगुजारी की वसूली, व बकाया अमलगुजार को देना होता था, इस लेखे की एक प्रति दरबार में भेजी जाती थी। उसे यह भी आदेश थे कि वह अमलगुजार को अपने द्वारा तैयार किये गये हिसाब-किताब की पूर्ण जाँच कराये व संतुष्ट करे ।
- इस प्रकार बितिक्ची की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं शासन व किसानों के मध्य एक सम्पर्क सूत्र की भाँति थी ।
कारकून :
- कारकून द्वारा भी लगभग वही कार्य किये जाते थे जो बितिक्वी के थे। वह एक सहायक के रूप में कार्य करता था। वह परगने के भू-राजस्व प्रशासन का महत्त्वपूर्ण अधिकारी था। खालसा के आमिल की सेवा में दो बितिक्ची, दो कारकून व दो खास नवीस नियुक्त होते थे।
आइन-ए-अमलगुजार एवं आइन-ए-खिजानदार में कारकून के कार्यों का स्फुट वर्णन प्राप्त होता है। कारकून "जब्त" की कार्यवाहियों को स्वतंत्र रूप से लिखता था, व उनको आमिल को सौंपता था। दूसरा कार्य था, कर संग्रह पर नजर रखना, वह दैनिक आय को प्रदर्शित करने वाली एक बही भी रखता था। उसे कोषागार में जमा धन की अभिरक्षा तथा राजस्व के नियमों के वितरण में भी सहयोग करना पड़ता था । अनुसार उसके इसके अतिरिक्त भू-राजस्व प्रशासन में और भी पद होते थे :-
चौधरी :
- यह गाँव का मुखिया होता था, एवं यह जमींदारों और ताल्लुकेदारों के वर्ग के भू-स्वामी का भी परिचायक था। परगना स्तर पर चौधरी एक महत्त्वर्ण अधिकारी था। चौधरी का पद वंशानुगत था, सामान्यतः एक परगने में एक चौधरी का पद होता था, परन्तु यह स्थायी नियम नहीं था, कभी-कभी एक परगने में एक से अधिक चौधरी भी होते थे।
- चौधरी द्वारा लगान सूची और तूमार-ए-आफज (फसलों को हुई क्षति का ब्यौरेवार विवरण जैसे राजस्व - पत्रों को प्रमाणित करना था। चौधरी भू-राजस्व के संग्रहण एवं निर्धारण में सहकर्मी होता था, वह प्रमाणित करता था कि परगने के भू-राजस्व की माँग का निर्धारण कानूनगो व मुकद्दम के परामर्श से जो उन लोगों द्वारा स्वीकार्य है। उसके पास भूमि से संबंधित विभिन्न स्वत्वों का अभिलेख होता था। वह करोड़ी का मुआजिना-ए-दहसाला, गाँवों की सूची, कर मुक्त अनुदानों के दस्तावेज, और दस्तूर-उल-अमल जैसे अभिलेख भी प्रस्तुत करता था ।
कानूनगो विभाग एवं अधिकारी :
कानूनगो
- कानूनगो भी एक महत्त्वपूर्ण राजस्व अधिकारी था, सूबा सरकार व परगना स्तर पर कार्यरत विभिन्न विभागों में उसका भी एक विभाग होता था। कानूनगो की नियुक्ति सम्राट की आज्ञा से होती थी, साधारणतः यह पद वंशानुगत हो गया था, परन्तु एक कानूनगो की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी को राजाज्ञा द्वारा स्वीकृति प्राप्त करनी होती थी। सम्राट इसे हटा सकता था, परन्तु सामान्यतः सम्पूर्ण जीवनकाल में उसे हटाया नहीं जाता था ।
- राजस्व अधिकारियों एवं जागीरदारों के प्रायः होते रहने वाले स्थानांतरण से उत्पन्न रिक्त स्थान की पूर्ति कानूनगो एवं चौधरी जैसे वंशानुगत अधिकारी करते थे। कानूनगो के पास भूमि संबंधी विभिन्न दावों, अधिकारों, कर निर्धारण की दरों, पद्धतियों से संबंधित रिति-रिवाजों और प्रथाओं तथा भूराजस्व के संग्रहण के लिये जमीदारों परिवारों का भी पूर्ण अभिलेख रहता था।
- अबुल फजल लिखता है कि कानूनगो किसान का शरणालय था, क्योंकि जब भी कभी स्थानीय रीति-रिवाज, मालगुजारी या भूमि अधिकार पर कोई विवाद खड़ा होता था, तो कानूनगो के कागजात और उसकी जानकारी के आधार पर ही इसका हल होता था कानूनगो के द्वारा वसूल किये गये लगान का एक प्रतिशत उसे दस्तूरी के रूप में मिलता था, जिसे "नानकार" कहा जाता था। अकबर के समय में "नानकार" के स्थान पर कानूनगो का वेतन निश्चित कर दिया गया था, अथवा उसके वेतन के मूल्य के बाराबर उसे जागीर प्रदान कर दी जाती थी।
अबुल फजल के अनुसार अकबर के शासनकाल में कानूनगो के पद को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया था, जिसमें प्रथम श्रेणी को 50 रुपये प्रतिमाह द्वितीय श्रेणी को 30 रुपये प्रतिमाह एवं तृतीय श्रेणी को 20 रुपये प्रतिमाह प्रदान किये जाते थे। संभवतः ऐसा प्रतीत होता है कि कम से कम कुछ प्रान्तों में की नियुक्ति प्रशासकीय स्तरों पर की जाती है-
प्रांतीय कानूनगो :-
- सूबा स्तर पर कानूनगो की नियुक्ति की जाती थी। प्रान्तीय कानूनगो राजस्व मंत्रालय में दिये जाने वाले दीवान द्वारा निर्मित विवरणों को प्रमाणित करने का कार्य करता सरकार कानूनगो कानूनगो की नियुक्ति सरकार स्तर पर भी की जाती थी। सरकार का कानूनगो मुआजिंना, दस्तूर-उल-अमल, गाँवों की सूची तथा अन्य व्याख्यात्मक विवरण जैसे राजस्व के प्रपत्र आदि परगना - कानूनगो से एकत्र करता था, वह उन्हें अपने हस्ताक्षर द्वारा प्रमाणित कर राजस्व मंत्रालय को भेज देता था। राजस्व संग्रह और राज्य की आय में वृद्धि हेतु बाहर से किसानों, व्यापारियों आदि को लाकर अपने क्षेत्र में बसाना तथा इस प्रकार आबादी में वृद्धि करना, इस और भी सरकार कानूनगो को विशेष ध्यान देना होता था। सरकार का कानूनगो परगने के कानूनगो के आचरण और कार्यों पर कुछ पर्यवेक्षण अधिकार भी रखता था।
परगना कानूनगो :-
- परगने में भी कानूनगो नियुक्त रहता था। वह स्थानीय भू-राजस्व प्रशासन का एक महत्त्वपूर्ण अधिकारी प्रतीत होता है। परगना के कानूनगो को निजी अभिलेख रखना पड़ता था। सामान्यतः परगने में एक ही कानूनगो होता था, परन्तु कुछ परगनों में एक से अधिक कानूनगो हो सकते थे।
- संभवतः सूबा और सरकार स्तर के कानूनगो कोई निजी अभिलेख नहीं रखते थे, उनका प्रमुख कार्य परगना कानूनगो द्वारा अनुरक्षित अभिलेखों को एकत्रित व सम्प्रेषित करना था।
कानूनगो के कई कार्य होते थे, जिनमें से प्रमुख हैं-
1. भूमि संबंधी विविध स्वत्वों तथा विक्रय, बन्धक या माफी प्रदान के कारण हुए परिवर्तनों और संशोधनों को लिपिबद्ध करना
2. राजस्व व्यवस्था के लिये जमीदारों या किसानों की वचन बद्धता जैसे राजस्व संग्रह से संबंधित विवरणों और प्रपत्रों की प्रतियाँ मंगाकर अपने पास रखता था । अभिलेखों का अनुरक्षण कर निर्धारण में उसका परामर्श आवश्यक था।
जब सरकार की ओर से कोई अतिरिक्त जमीन कानूनगो को दी जाती थी तो उसे हस्तांतरित करने से पहले उसकी समुचित चकबंदी करने के पश्चात् ही दी जाती थी। और इस हेतु परगनों के करोड़ी, चौधरी का सहयोग व मौजा (गाँव) के मुकद्दम की सहमति आवश्यक होती थी।
कानूनगो के अतिरिक्त अन्य कर्मचारियों में पटवारी भी भू-राजस्व प्रशासन का महत्त्वपूर्ण अधिकारी होता था ।
पटवारी :-
- पटवारी ग्राम प्रशासन का प्रमुख अधिकारी था। अबुल फजल ने लिखा है कि वह किसानों से संबंधित व्यक्ति था, तथा किसानों के व्यक्तिगत लगान, लेन-देन का हिसाब रखना उसके प्रमुख कार्य थे। उसके रिकार्डो को "बही" या "कागज-ए-रवाम" अथवा "कच्चा चिट्ठा" कहा जाता था। उसे अपने वेतन के रूप में गाँवों से फसलाना, खुराकी और सम्राट अकबर के काल में, वसूल किये गये लगान का 1 प्रतिशत मिलता था।
- इसके अतिरिक्त गाँवों में अन्य कर्मचारियों में चौकीदार गाँव की सीमा की रक्षा करने वाला, तालाब, जलाशयों तथा जलधाराओं के अधीक्षक, पुरोहित, अध्यापक, ज्योतिष, लुहार, कुम्हार, बढ़ई, नाई, धोबी, वाला, वैद्य, गायक, चारण आदि थे, इन्हें जीविकोपार्जन हेतु ग्राम की उपज का 1 भाग प्राप्त होता था।
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