मुगल और बघेल शासक | Mughal and Baghel Ruler

 मुगल और बघेल शासक

मुगल और बघेल शासक | Mughal and Baghel Ruler
 

 मुगल और बघेल शासक

  • बघेलखण्ड के कुछ भागों पर बघेल राजपूतों का अधिकार थाजो गुजरात के चालुक्यों या सोलंकियों के वंशज होने का दावा करते । बाबर के समय यहाँ का शासक वीरसिंह देव ( 1500 - 1540) अपने समय का शक्तिशाली राजपूत शासक था। बाबर ने अपनी आत्मकथा में .. उसे नरसिंह कहा है और यह लिखा है कि उसने 16 मार्च, 1527 ई. को खानवा में हुए युद्ध में 4,000 घुड़सवारों की सेना सहित चित्तौड़ के राणासांगा की सहायता की थी। किन्तु वह युद्ध के पश्चात् बाबर का मित्र बन गया था और उसे बाबर ने नानकार जागीर (भरण पोषण अनुदान) के रूप भाटा प्रदेश प्राप्त हुआ था ।

 

  • 1540 ई. में वीरसिंह की मृत्यु हो गई और उसका पुत्र वीरभानुदेव या वीरभान उसका उत्तराधिकारी बना। उसने हुमायूँ और शेरशाह के काल में बघेल प्रदेश में शासन किया। वीरभान ने चौसा युद्ध के पश्चात् समय पर हुमायूँ की सहायता कर उसकी कृपा दृष्टि प्राप्त कर ली थी। गुलबदन बेगम ने लिखा है कि हुमायूँ की सेना चार-पाँच दिन से भूखी थी। राजा ने वहाँ बाजार खोल दियाजहाँ से सैनिक अपनी आवश्यक वस्तुएँ ले सकते थे। संभवतः उसकी इसी सहायता के फलस्वरूप हुमायूँ ने वीरभान को उसके पौत्र वीरभद्र के जन्म के अवसर पर भाई कहकर संबोधित किया था व उसके लिए सम्मान सूचक पोशाक तथा अन्य उपयुक्त उपहार भी भेजे थे।

 

  • चूँकि वीरभान हुमायूँ का मित्र थाअतः शेरशाह उससे कुपित हो गया और उसने सत्ता संभालने के पश्चात् उसके प्रदेश पर आक्रमण कर दियाकिन्तु वह बांधवगढ़ तक नहीं पहुँच पाया। उसका बेटा जलाल खाँ 1545 ई. में रीवा आया तथा वहाँ रुका रहा। सन् 1555 ई. में वीरभान की मृत्यु हो गई तथा उसका पुत्र रामचन्द्र उसका उत्तराधिकारी बना। वह अकबर का समकालीन था। 1561 ई. में अकबर ने ख्वाजा अब्दुल मजीद हरवी कोजो आसफखाँ के नाम से विख्यात थाकड़ा का सूबेदार नियुक्त किया। आसफखान जब सूबे पर अधिकार करने के लिए पहुँचा। इस पर सूरवंश द्वारा नियुक्त सूबेदार गाजीखाँ तातार रामचन्द्र के पास भाग गया। अतः आसफखाँ ने राजा रामचन्द्र को अत्यावश्यक संदेश भेजा कि वह गाजीखान को उसे सौंप दे। इसके साथ ही उसने उसे अकबर की अधीनता स्वीकार करने तथा खिराज देने की सलाह दी। राजा रामचन्द्र ने सलाह मानने से इन्कार कर दिया जिसके परिणामस्वरूप युद्ध हुआ व रामचन्द्र पराजित हुआगाजीखान मारा गया व राजा बांधवगढ़ भाग गया। इसके बाद आसफखान ने बांधवगढ़ को घेर लिया किन्तु दिल्ली में कुछ हिन्दू सरदारों की मध्यस्थता के कारण अकबर ने घेराबंदी उठा ली। 17 कालिंजर जिस पर रामचन्द्र का अधिकार था अकबर को सौंप दिया तथा अपने पुत्र वीरभद्र को शाही दरबार में भेज दिया। उसके बाद राजा रामचन्द्र ने फतेहपुर सीकरी में अकबर से चर्चा कीजहाँ उसका पूर्ण सम्मान और शालीनता से स्वागत किया गया। उसे नजराना दिए बिना माठा और बांधवगढ़ का वंशानुगत शासक घोषित किया गया। 18 उसने बादशाह को कुछ मणिक भेंट किए जिनमें से एक का मूल्य 50,000 था और बदले में उसे 101 घोड़े प्राप्त हुए । बदायूंनी ने उसकी प्रशंसा में कहा है कि राजसी उदारता में उसका कोई सानी नहीं थाअपने अन्य उपहारों में उसने गायक मियां तानसेन को एक दिन में सोने की एक करोड़ मोहरें दी थी। 

 

  • मुगलों के निरंतर आक्रमणों के कारण बघेलखण्ड का राज्य का आकार दो बार कम हुआ। किन्तु वह सदैव ही मध्यकालीन इतिहास के शक्तिशाली विजेता को निरन्तर ललकारता रहा। बघेलों को पूर्णतः कभी पराजित नहीं किया जा सका और उन पर मुगल शासन का नियंत्रण नाममात्र का ही रहा। अब तक उन्होंने मुगलों को नियमित रूप से कभी खिराज नहीं दिया । मुगलकाल में बघेलराज्य को उसकी हीरे की खदानों और उत्तम नस्ल के हाथियों के कारण जाते थे। रामचन्द्र की मृत्यु के बाद वीरभद्र राजा बना किन्तु वह भी जल्दी मर गया। वीरभद्र की मृत्यु होने के बाद अकबर ने 1592 से 1601 ई. तक उसके किसी भी पुत्र को मान्यता नहीं दी अतः इस अवधि में पात्रदास को बांधवगढ़ का सूबेदार बनाकर भेजा और उसकी राजधानी रीवा रही।

 

अकबर का मालवा विजय अभियान  

  • अकबर ने फरवरी 1561 ई. को मालवा विजय करने के लिए आधमखां (माहम अनगाका पुत्र) पीरमोहम्मद खां (बैरामखां का शत्रु)अब्दुल्लाखाँकियाखाँ कंगशाहमुहम्मद खाँआदिलखाँ और इसका पुत्र सादिक खाँहबीबकुलीखाँहैदरअलीखाँमुहम्मद कुलीं तकवायीकियाखाँ साहेब हसनमिराक बहादुरसमानजीखाँपायन्दामुहम्मद खाँ मुगलमुहम्मद ख्वाजा कुश्तीगीरमिहर अली सिल्दौजमीरान अरधुनशाह फनाई आदि को श्रेष्ठ घुड़सवार सेना के साथ भेजा। 20 इस अवसर पर निजामुद्दीन लिखता है कि 'बाजबहादुर का अधिकांश समय संगीत एवं भोगविलास में ही व्यतीत होता थावह हिन्दी गायन में बड़ा ही निपुण था। इस समय बादशाह को विदित हुआ कि बाजबहादुर अपने राज्य की कुछ चिन्ता नहीं करता । अत्याचारी और साहसिक लोग गरीब और असहाय लोगों को सता रहे हैं और किसान लोग बड़े दुःखी हैं। वह आगे लिखता है कि शाही तख्त का कर्तव्य था कि इस देश (मालवा) को पुनः अपने अधिकार में लेकर वहाँ शान्ति और सुरक्षा स्थापित करता ।

 

  • आखाँ जब शाही सेना को लेकर सारंगपुर से दस कोस के फासले पर पहुँच गयातब बाजबहादुर की आखें खुली। इस समय बाजबहादुर सारंगपुर में ही था। उसने नगर से दो कोस के फासले पर किलेबंदी कर मोर्चा जमाया। परन्तु उसकी सेना के अफगान सिपाही असन्तुष्ट थेवे चुपके से खिसक गये। 21 दोनों सेनाएँ अब एक दूसरे के आगे 2-3 कोस के फासले पर खड़ी हो चुकी थीदेखते ही देखते दोनों सेनाएँ आपस में भिड़ गयीं। मुगल सेना ने बाजबहादुर की सेना की रसद काटना प्रारम्भ कर दी। किन्तु कोई सफलता नहीं मिली तब शाहमुहम्मदखान कंधारीसादिकखानपायन्दा मुहम्मद खान शाहफनीमिहरअली सिलदौरान सामजीखान और मुहम्मद ख्वाजा कुस्तगीर बहादुर के शिविर के पास सेना से युद्ध करने लगे। युद्ध की खबर जैसे ही मुगल सेना में पहुँचीसम्पूर्ण सेना ने बाजबहादुर की सेना को घेर लिया और उन पर टूट पड़े। बाजबहादुर ने वीरतापूर्वक युद्ध कियाकिन्तु फिर भी वह पराजित हो खानदेश बुरहानपुर की ओर भाग गया। उसकी प्रिय पत्नी रूपमती जो सुन्दर ढंग से गायन वादन करती थी और उसकी दूसरी पत्नियाँ दासियाँ तथा उसका राजकोष आधमखां के हाथ में आ गया। जब बाजबहादुर भागा जा रहा था तो उसके एक नाजिर ने रूपमती को तलवार से आहत कर दियाजिससे कि वह दूसरे लोगों के हाथ में न पड़ जाये। जब अहमदखाँ ने रूपमती को जबरदस्ती पाना चाहा तब उसने जहर खा लिया और मर गई.

 

  • आधमखाँ ने मालवा विजय का वृतान्त अकबर को लिखकर भेजा । आधमखां ने स्त्रियाँ और गायिकाएँ तो अपने पास रख ली और सादिक खाँ के साथ कुछ हाथी बादशाह को भेज दिये । इन स्त्रियों को और लूट का माल अपने पास रख लेने के कारण अकबर नाराज हो गया। अकबर ने मालवा चलने की स्वयं तैयारी की। अतः 27 अप्रैल 1561 ई. को आगरा से मालवा की ओर कूच किया। अकबर के सारंगपुर आने पर अदहमखाँ ने लूट का सब माल इकट्ठा किया और बादशाह को भेंट कर दिया। अकबर वहाँ कुछ दिन आमोद-प्रमोद करने के लिए ठहरा और फिर आगरा लौट गया । 

 

  • आधमखाँ की तरफ से अकबर का दिल पूरी तरह से साफ नहीं हुआ था। आधमखाँ की माँ माहम अनगा के कहने से वह कुछ समय के लिए शान्त हो गया था। नवम्बर, 1561 ई. में शमसुद्दीन मोहम्मदखाँ अतगा कोजो काबुल से आया थाअकबर ने मंत्री बनाकर साम्राज्य का राजनीतिकसैनिक और अन्य प्रमुख काम सब उसके सुपुर्द कर दिया और उसी की सलाह से आधमखाँ को मालवा से वापस बुला लिया गया। माहम अनगा अतगाखाँ की उच्च पद पर नियुक्ति के विरुद्ध थी और इस बात से बड़ी परेशान थी कि अकबर धीरे-धीरे उसके प्रभाव के बाहर होता जा था। लेकिन साथ ही यह एक बहुत विचित्र बात थी कि पीरमोहम्मद को मालवा में आधमखाँ के स्थान पर नियुक्त किया गया, 24 जो उस समय भी सूबेदार अधमखां का प्रधान सहायक था। मालवा के सुल्तान बाजबहादुर के समर्थकों का इस क्षेत्र से सफाया करने में उसने विशेष तत्परता दिखाई। उसने बीजागढ़ पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया तथा दुर्ग के समस्त सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। चूँकि बाजबहादुर ने खानदेश में शरण ली थी और वह मालवा के दक्षिणी सीमान्त पर अशान्ति फैला रहा था । अतः पीरमोहम्मद ने उस क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया और बुरहानपुर तक आ पहुँचा। खानदेश के मुबारक द्वितीय और बाजबहादुर ने बरार के वास्तविक शासक तुफत खान से सहायता की याचना की और उसके आ मिलने पर वे पीरमोहम्मद पर टूट पड़े और उसकी सेना को तितर-बितर कर दिया तथा उसे माण्डू की ओर भागने के लिए विवश कर दिया।

 

  • जब पीरमोहम्मद नर्मदा नदी पार कर रहा था तब वह उसमें डूब कर मर गया । तथापि मुगल सेना का पीछा किया जाता रहा और उसे विवश हो आगरा भागना पड़ा। इस प्रकार बाजबहादुर ने कुछ समय के लिए मालवा पर पुनः अधिकार कर लिया। अकबर ने मालवा पर अधिकार करने के लिए पुनः सेना भेजी। इस बार बाजबहादुर चित्तौड़ में महाराणा उदयसिंह के पास जा पहुँचा। अब्दुल्लाखान ने मालवा पर मुगल शासन की पुनः स्थापना की और माण्डूको अपना मुख्यालय बनाया। शाही सेना उज्जैनसारंगपुर तथा अन्य क्षेत्रों में भी गई और उसने वहाँ शान्ति स्थापित की।

 

  • यद्यपि अब्दुल्लाखान एक कुशल प्रशासक थातथापि वह महत्त्वाकांक्षी और विद्रोही सिद्ध हुआ। अतएव अकबर ने उसे दबाने का संकल्प किया और अब्दुल्लाखाँ को सबक सिखाने के लिए 1 जुलाई, 1564 ई. को आगरा से प्रस्थान किया। ग्वालियरनरवरसारंगपुर होता हुआ उज्जैन और वहाँ से धार पहुँचाजो उसे यह समाचार मिला कि अब्दुल्लाखान जो माण्डू में थामाण्डू से सात मील दूर लावनी की ओर भाग गया। 5 अगस्त की संध्या को अकबर लावनी पहुँचा। अगस्त 6 को बाघ नामक गाँव के पास विद्रोहियों और अकबर की सेना की अग्रिम टुकड़ी के बीच युद्ध हुआ । अन्ततः अब्दुल्लाखान की पराजय हुई और वह गुजरात की ओर भाग गया। तत्पश्चात् अकबर माण्डू लौटा और वह 10 अगस्त को वहाँ पहुँचा मालवा की शासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए वह वहाँ लगभग एक माह रूका रहा। उसने कारा बहादुरखान को मालवा को सूबेदार नियुक्ति कियाउसके पश्चात् शिहाबुद्दीन और कुतुबुद्दीन खान सूबेदार नियुक्त हुए ।

 

  • इस प्रकार मालवा अन्तिम रूप से मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। प्रशासनिक व्यवस्था के पुनर्गठन में मालवा सूबे में 12 सरकार सम्मिलित थीं । इन्दौर जिले की वर्तमान देपालपुर और सांवेर तहसीलें उज्जैन सरकार महालों के रूप में दिखाई गई हैं। इसी प्रकार इन्दौर-धार मार्ग पर स्थित बेटमा को माण्डू सरकार के महाल के रूप में दिखाया गया है। उज्जैन सरकार के 10 महलों में से उज्जैनउन्हेलपानबिहारखाचरौद तथा नोलई (बड़नगर ) महालों से मिलकर बना है। इसी प्रकार सारंगपुर सरकार के सुन्दरसीकायथा मोहम्मदपुर तथा तराना के महाल भी वर्तमान उज्जैन जिले में सम्मिलित हैं। धार जिले के धारमाण्डू नालछा तथा मनावर के महाल माण्डू सरकार में शामिल थे।

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