ओरछा का इतिहास भाग 02 | ओरछा का पराभव काल | Orchaa History Part 02

 ओरछा का इतिहास भाग 02, ओरछा का पराभव काल

ओरछा का इतिहास भाग 02 | ओरछा का पराभव काल | Orchaa History Part 02



ओरछा का पराभव काल 

  • इन्द्रमणि बुन्देला के बाद उसका पुत्र यशवंतसिंह बुन्देला (1675-1684 ई.) ओरछा की गद्दी का अधिकारी हुआ। उसके काल में बुन्देलखण्ड के "डंगाई क्षेत्र" पन्ना के आसपास के अंचल में चंपतराय के पुत्र छत्रसाल बुन्देला ने मुगल सत्ता के विरुद्ध विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया था। बुन्देलखण्ड की राजधानी ओरछा का सत्ता गौरव इस काल में कम हो गया था। चंदेरीदतिया के पृथक-पृथक राज्य कायम होकर मुगल संरक्षण में वफादारी की लगातार सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे। छत्रसाल बुन्देला ने ओरछा के डंगाई क्षेत्र को अपने अधिकार में कर लगातार ओरछा के महत्व को घटाया था। यशवंतसिंह के बाद भगवंतसिंह (1684-1689 ई.) ओरछा का शासक हुआ था। वह अल्पवयस्क था। अतः उसके समय में इन्द्रमणि बुन्देला की विधवा रानी अमरकुँवरि राज्य का प्रबंध देखती थी। युवा होने के पूर्व ही भगवंतसिंह की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उदोतसिंह (1689-1736 ई.) ओरछा की गद्दी पर बैठा । सन् 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुरशाह (1707-1712 ई.)जहाँदारशाह (1712-1713 ई.)फर्रुखसियर (1713-1719 ई.)रफीउद्दरजात (1719 ई.)मुहम्मदशाह (1719-1748 ई.) मुगल सत्ता के क्रमशः उत्तराधिकारी हुए थे। लगातार मुगल गद्दी में हुई तबदीलियां मुगल सत्ता के पतन की ओर बढ़ने की कहानी कह रहीं थीं क्षेत्रीय शक्तियाँ लगातार मुगल सत्ता को चुनौती दे रही थी। बुन्देलखण्ड में इस समय पन्ना के शासक छत्रसाल बुन्देला का महत्व काफी बढ़ गया था। मराठों की सत्ता के ओरछा के समीप झाँसी में बलवती हो जाने के कारणओरछा के शासक विक्रमादित्य बुन्देला नेओरछा के स्थान पर सन् 1783 ई. में टेहरी (टीकमगढ़) को अपनी राजधानी बना लिया था। राज्य या टीकमगढ़- राज्य से समान अर्थ का बोध होता है। 

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.