बार-चंदेरी की इमारतें | Bar Chanderi Architecture
बार-चंदेरी की इमारतें (Bar Chanderi Architecture )
बार-चंदेरी की इमारतें
यहाँ के बुन्देलों की प्रारंभिक राजधानी का मुख्यालय बार में स्थापत्य किया गया था। जहाँ वर्तमान में दुर्ग के अवशेष मात्र रह गए हैं। चंदेरी में बुन्देलों के पहुँचने के बाद, वहाँ कुछ भवन बने थे। चंदेरी का स्थापत्य, पर्यटन की दृष्टि से उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि ओरछा का है। यहाँ सल्तनतकालीन मालवा के सुल्तानों का स्थापत्य आकर्षक स्वरूप में उपस्थित है। चंदेरी क्षेत्र की प्रमुख इमारतें इस प्रकार हैं-
1. कीर्ति दुर्ग
चंदेरी का कीर्ति दुर्ग 11वीं सदी का बना माना जाता है। यह दुर्ग मोटी और :- सुरक्षित प्राचीर से घिरा हुआ है। यह दुर्ग खिलजी सुल्तानों, राजपूतों एवं मुगलों के आधीन रहा था, बाद में यहाँ बुन्देला आये। इस कारण सभी काल के स्थापत्य के दर्शन यहाँ होते हैं। बुन्देली काल का देवीसिंह बुन्देला का बनवाया यहाँ नौखंडी महल है। दुर्ग की अन्य उल्लेखनीय इमारतों में पत्थर की तराशी खिलजी कालीन मस्जिद, गिलौबा ताल, प्राचीन शिवलिंग, जौहर स्मारक और खूनी दरबाजा हैं ।
2. जुगल किशोर मंदिर :-
चंदेरी नगर के बाहरी भाग हाट का पुरा में बुन्देला काल का जुगलकिशोर का मंदिर बना हुआ है। मंदिर के चारों ओर बरामदे हैं। इसके समीप भगवान शंकर और गणेश का प्राचीन मंदिर भी है, और यहाँ इसी समय की दो बाउरियाँ हैं.
3. जामा मस्जिद :-
यह मस्जिद 13वीं सदी की बनी है, बुन्देलखण्ड की यह सबसे बड़ी मस्जिद मानी जाती है, इसमें लगभग तीन हजार आदमी एक साथ बैठकर नमाज पढ़ सकते थे।
4. दिल्ली दरवाजा :-
यह दरवाजा 15वीं सदी का बना हुआ है, जो मालवा के सुल्तानों के काल में बना था। दरवाजे के दोनों ओर के हाथी और उन पर सवार सैनिक दर्शनीय व आकर्षक लगते है ।
5. सिंहपुर महल :-
यह महल चंदेरी नगर से पिछोर मार्ग पर 4 किलोमीटर दूर है। इसका निर्माण देवीसिंह बुन्देला ने 1665 ई. में करवाया था। यह महल तीन मंजिला है, इसमें आँगन है और जालीदार कमरे बने हुए हैं। महल के नीचे तलहटी में तालाब बना हुआ है
6. बाउरियाँ
पन्द्रहवीं सदी की काजी की बाउरी एवं बत्तीसी बाउरी, मालवा के सुल्तानों की शिल्पकला की बेजोड़ कृतियाँ हैं। बत्तीसी बाउरी चार मंजिला है, इसमें फारसी में लिखा शिलालेख भी लगा है।
7. कटी घाटी :-
नगर के दक्षिण में स्थित कटी घाटी का पत्थर का दरवाजा है, इसकी विशेषता है कि यह एक पत्थर के विशाल शिलाखण्ड को काटकर बनाया गया था। इसका निर्माण मालवा के सुल्तानों के काल में पन्द्रहवीं सदी में हुआ था, इसे मालवा और बुन्देलखण्ड का प्रवेश द्वार हैं।
8. बैजू बावरा :-
कीर्ति दुर्ग के समीप जौहर स्मारक के पास बैजू बावरा की समाधि है। स्थापत्य की दृष्टि से इसमें कुछ खास नहीं है। पर बैजू बावरा संगीत सम्राट तानसेन की टक्कर के महान संगीतज्ञ थे जिन्होंने चंदेरी और ग्वालियर के मानसिंह तोमर (1486-1517 ई.) के दरबार में रागनियाँ छेड़कर नाम कमाया था। कलात्मक भाव की दृष्टि से पर्यटक इस समाधि को देखना पसन्द करते हैं।
9. रामनगर महल :-
चंदेरी के दुर्जनसिंह बुन्देला द्वारा सन् 1698 ई. में कटी घाटी के पीछे इस महल का निर्माण करवाया था। यहाँ एक बड़ी झील है और सुरम्य प्राकृतिक वातावरण है। महल का स्थापत्य बेतरतीब है, कहीं चिकने तथा कहीं खुरदरे पत्थर लगे हैं। इसमें वर्तमान में पुरातत्व संग्रहालय संचालित होता है।
10. तालबेट का दुर्ग और नृसिंह मंदिर :-
तालबेट चंदेरी राज्य के अंतर्गत था, यह स्थान झाँसी - ललितपुर रेल मार्ग एवं बस मार्ग का एक स्टेशन है। यहाँ की पहाड़ी पर चंदेरी के भारतशाह ने एक दुर्ग का निर्माण करवाया था, जो आवास और सुरक्षा दोनों दृष्टियों को सामने रखकर बनाया गया था। इस दुर्ग में नृसिंह का मंदिर है, जिसकी चित्रकला ओरछा की चित्रकला की अनुकृति लगती है । भारतशाह के पुत्र देवीसिंह बुन्देला ने भी इस दुर्ग में कुछ निर्माण कार्य कुछ सुधार करवाये थे। यह दुर्ग और स्थान सामरिक महत्व का था ।
चंदेरी में बुन्देला शासकों की समाधियाँ भी हैं। मूलरूप में चंदेरी में सौ से अधिक स्मारक अनेकों बाउरियाँ, तालाब, प्राकृतिक स्थान, सूफी तीर्थ, जैन तीर्थ, मालवीय कलाकृतियाँ, चंदेरी का वस्त्र उद्योग आदि सभी कुछ देखने योग्य है। चंदेरी की सांस्कृति विरासत को बुन्देली स्थापत्य कला से पृथक कर मान्य नहीं किया जा सकता है। यहाँ की सांझी विरासत ने बुन्देलखण्ड और व्यापक रूप में मध्यप्रदेश का अलंकरण किया है।
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