वृद्धि की परिस्थितियाँ पादप हॉर्मोन या पादप वृद्धि नियंत्रक ऑक्जिन | Condition for Growth in Hindi
वृद्धि की परिस्थितियाँ (Condition for Growth)
वृद्धि की परिस्थितियाँ
पौधों की वृद्धि पर बाहरी (External) एवं आन्तरिक (Internal) दोनों प्रकार के कारकों का प्रभाव पड़ता है। ये कारक निम्नलिखित हैं-
बाहरी कारक (External Factors)
इसके अन्तर्गत वे सभी कारक आते हैं जो पौधों की विभिन्न कार्यिकीय (Physiological) क्रियाओं को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। कुछ मुख्य कारक निम्नलिखित हैं-
(1) जल (Water)-
- जल पौधों की वृद्धि को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। पौधों को लगभग सभी उपापचयी क्रियाओं में जल को आवश्यकता पड़ती है।
- प्रकाश की उपस्थिति में पौधों में एक बहुत महत्त्वपूर्ण क्रिया प्रकाश संश्लेषण होती है जिसमें भोजन का निर्माण होता है जो पौधों को वृद्धि के काम आता है। प्रकाश पौधों में पुष्पन की क्रियाओं को भी प्रभावित करता है। प्रकाश की में पौधे दुर्बल, पतले एवं पीले हो जाते हैं।
(3) तापमान (Temperature)-
- पौधों में जैविक क्रियाएँ एक निश्चित ताप पर सम्पन्न होती है। अतः यदि तापमान बहुत कम अथवा अधिक हो जाता है तो वृद्धि प्रभावित होती है।
(4) ऑक्सीजन (Oxygen)-
- ऑक्सीजन श्वसन के लिए आवश्यक है। श्वसन में भोजन के ऑक्सीकरण से ऊर्जा प्राप्त होती है जो पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक है।
(5) भोज्य पदार्थ (Food material)
- भोज्य पदार्थों की अधिकता में वृद्धि अधिक एवं कमी में कम होती है। भोज्य पदार्थों की अधिकता में कोशिकाओं में विभाजन तीव्र गति से होता है।
(6) खनिज लवण (Mineral salts) –
- कुछ खनिज तत्त्वों जैसे-नाइट्रोजन (N), आयरन (Fe), मैग्नीशियम (Mg) आदि की कमी से पौधों में वृद्धि कम होती है। कैल्शियम (Ca) और बोरॉन (B) की कमी से पौधे के प्ररोह शीर्ष मृत हो जाते हैं।
(B) आन्तरिक कारक (Internal Factors)
- इस वर्ग में वृद्धि को प्रभावित करने वाले उन कारकों को रखा गया है, जो पादप शरीर के अन्दर स्थित होते हैं। पादपों में वृद्धि तथा विकास को नियंत्रित करने के लिए कुछ विशिष्ट रासायनिक पदार्थ बनते हैं, जिन्हें पादप हॉर्मोन्स (Plant hormones) पा वृद्धिकारक (Growth substances) या वृद्धि नियन्त्रक (Growth regulators) कहते हैं।
- ये हॉर्मोन्स मुख्यतः शीर्षस्य कलिकाओं (Apical buds), शीर्षस्थ मेरिस्टेम (Apical meristem) तथा बाल पत्तियों (Young leaves) में बनते हैं और फ्लोएम द्वारा पौधों के सम्पूर्ण भागों में संचरित होकर, वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करते हैं। प्रत्येक हॉर्मोन एक विशेष प्रकार की वृद्धि सम्बन्धी घटना को नियन्त्रित करता है, जो कि पादपों में समयानुसार होती रहती है। इन हॉर्मोनों का विभिन्न अंगों की वृद्धि पर विभिन्न प्रभाव पड़ता है।
पादप हॉर्मोन को निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं—
“पादप हॉर्मोन्स वे जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं, जो पेड़-पौधों में निश्चित स्थानों पर बनते हैं तथा संवहन ऊतकों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में संचरित होकर उनकी वृद्धि तथा विकास सम्बन्धी क्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं"
- ऑक्जिन नामक हॉर्मोन सबसे पहले खोजा गया था। इसके बाद जिबरेलिन, काइनिन, साइटोकाइनिन, फ्लोरिजेन, वनॅलिन, इथिलीन, ऐब्सिसिक अम्ल नामक हॉर्मोनों को खोजा गया। हॉर्मोनों के अलावा पौधों में कुछ वृद्धिरोधक पदार्थ जैसे—काउमेरिन, फिनोलिक यौगिक, स्कोपोलिटिन आदि भी बनते हैं, जो पादप वृद्धि को अवरुद्ध करते हैं।
पादप हॉर्मोन या पादप वृद्धि नियंत्रक
- पादप शरीर में होने वाली अधिकांश प्रकार्यात्मक क्रियाएँ (Physiological activities) एवं वृद्धि (Growth) कुछ विशिष्ट प्रकार के रासायनिक पदार्थों की क्रियाओं एवं अन्तर्क्रियाओं (Interaction) के फलस्वरूप होती हैं, जिन्हें हॉर्मोन (Hormone) या पादप वृद्धि नियन्त्रक (Plant growth regulator) कहते हैं। इन्हें वृद्धि हॉर्मोन (Growth hormone) भी कहते हैं।
- हॉर्मोन (Hormone) का शाब्दिक अर्थ, मैं क्रियाशीलता जगाता हूँ' (I arise to activity) होता है। हॉर्मोन (Hormone) शब्द एक ग्रीक शब्द हॉर्मेओ (Hormao) से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ उद्दीपित करना (To stimulate or to urge) होता है।
- थीमैन (Thimann, 1948) ने पौधों में पाये जाने वाले हॉर्मोन्स को फाइटोहॉर्मोन (Phytohormone) नाम दिया।
- हॉर्मोन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1906 में स्टर्लिंग (Starling) ने उत्तेजनाकारी पदार्थ (Stimulating substance) के रूप में किया था।
पिंक्टस एवं थीमैन (Pinctus and Thimann, 1948) ने हॉर्मोन्स को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है—
हॉर्मोन ऐसे कार्बनिक पदार्थ है, जो पौधों में प्राकृतिक रूप से एक स्थान पर निर्मित होते हैं तथा पौधे के अन्य भागों पर इनकी अत्यन्त अल्पमात्रा, वृद्धि एवं अन्य प्रकार्यात्मक क्रियाओं पर नियन्त्रण रखती है।"
सन् 1971 में फिलिप्स (Phillips) ने पादप वृद्धि नियन्त्रकों या हॉर्मोन्स को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-
- पादप हॉर्मोन्स ऐसे जटिल कार्बनिक पदार्थ है, जो कि पौधों की विशिष्ट कोशिकाओं में निर्मित होते हैं तथा दूसरी कोशिकाओं में स्थानान्तरित होकर अल्प सान्द्रता में वृद्धि से सम्बन्धित क्रियाओं को प्रभावित करते हैं।"
प्रमुख पादप वृद्धि हॉर्मोन्स एवं वृद्धि नियंत्रण
1. ऑक्जिन (AUXINS, GK., Auxein = to grow)
- ऑक्जिन्स पादप हॉर्मोन्स का एक समूह है, जो कि विभिन्न प्रकार की वृद्धि क्रियाओं को प्रेरित करते हैं। ऑक्जिन्स ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं, जो कि जड़ एवं तनों के शीर्ष पर उत्पन्न होते हैं तथा नीचे की ओर प्रवाहित होकर पादप वृद्धि का नियन्त्रण करते हैं।
- हॉर्डी (Hordy) के अनुसार, ऑक्जिन्स ऐसे जैविक पदार्थ हैं, जो कि पौधों के अन्दर स्त्रावित होते हैं और अत्यन्त कम मात्रा में पौधों की शारीरिक क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। ऑक्जिन (Auxin) शब्द का उपयोग सर्वप्रथम कोगल एवं हैगेन स्मिट (Kogl and Haggen Smit, 1931) ने किया था।
- एफ. डब्ल्यू. वेण्ट (F.W. Went, ने आक्जिन की खोज के लिए अपने प्रयोग जई (Avena sativa) के प्रांकुर चोल (Coleoptile) पर किये।
ऑक्जिन के प्रकार्यात्मक प्रभाव एवं व्यावहारिक अनुप्रयोग
ऑक्जिन के प्रमुख प्रकार्यात्मक प्रभाव तथा इनका कृषि के क्षेत्र में व्यावहारिक अनुप्रयोग निम्नानुसार हैं-
ऑक्जिन के प्रमुख प्रकार्यात्मक प्रभाव तथा इनका कृषि के क्षेत्र उपयोग
1 कटे हुए तनों में जड़ों के निर्माण का समारंभन
- बहुत-से पौधों में, उदाहरणस्वरूप गुलाब की कलम को जमीन पर गाड़कर पुनः नया पौधा तैयार किया जाता है। यदि गुलाब की कलम के निचले सिरे को ऑक्सिन जैसे- फिनाइल एसीटिक ऐसिड (Phenyl acetic acid), अल्फा नैफ्थेलीन ब्यूटैरिक ऐसिड (Alpha- naphthalene butaric acid), इन्डोल ऐसीटिक ऐसिड (Indole acetic acid) के घोल में डुबाकर गमलों में जाता है तब कटे हुए हिस्से से बहुत जल्दी ही अपस्थानिक जड़ें निकल आती हैं।
2 कोशिका विवर्धन (Cell elongation)
- ऑक्जिन्स जो जड़ों तथा तनों के शीर्ष पर उपस्थित रहते हैं, का कोशिका वर्द्धन प्रभाव उनकी सान्द्रता पर निर्भर करता है। अगर इनके सिरों पर ऑक्जिन्स छिड़कें तो इनमें कोशिका विभाजन तीव्र गति से होने लगता है। जड़ों की लम्बाई में वृद्धि करने के लिये ऑक्जिन की अल्प मात्रा की आवश्यकता होती है, जबकि तनों एवं शाखाओं की लम्बाई में वृद्धि के लिये अपेक्षाकृत अधिक मात्रा या सान्द्रता की आवश्यकता होती है।
3 विलगन रोकना (Prevention of abscission)—
- अधिकांश पेड़-पौधों के फल पूर्णरूपेण पकने के पहले पेड़ से गिर जाते हैं, जो खाने योग्य नहीं होते हैं, उदाहरण- नाशपाती (Pear) एवं सेब (Apple)। ऐसा विलगन पुष्पवृन्त (Petiolc) के निचले हिस्से में एक विलगन परत (Abscission layer) के निर्माण के कारण होता है। विभिन्न खोजों के द्वारा ज्ञात हुआ है कि जब तनों में ऑक्जिन (Auxin) की सान्द्रता पत्तियों की अपेक्षा अधिक होती है तब विलगन परत का निर्माण तेजी से होता है। इसके विपरीत जब ऑक्जिन को सान्द्रता पत्तियों में अधिक होती है, तब विलगन परत का निर्माण नहीं हो पाता है।
- कुछ ऑक्जिन पत्तियों एवं फलों को उनके वृन्तों से अलग होने या इनमें विलगन परत के निर्माण की क्रिया को रोकते हैं (उदाहरण - N.A.A. 2,4-D. आदि)। अत: इनका छिड़काव करने से पत्तियों एवं फलों के वृत्तों या डण्टलों में विलगन परत का निर्माण रुक जाता है और वे समय से पूर्व पौधों से अलग होने से बच जाते हैं। सेब (Apple). नाशपाती (Pear), सन्तरा (Orange) आदि में इनका प्रयोग अत्यधिक लाभकारी सिद्ध हुआ है।
4. खरपतवार नियन्त्रण (Weed control) —
- जैसा कि सबको विदित है खरपतवार या जंगली पौधे खेतों में फसलों के लिए बहुत हानिकारक होते हैं, क्योंकि ये पौधे जल, खनिज पदार्थों, प्रकाश इत्यादि के लिए फसल से प्रतियोगिता करने लगते हैं और इसके कारण फसल की अच्छी वृद्धि नहीं हो पाती हॉर्मोन द्वारा इन अनावश्यक पौधों को खेत में ही नष्ट किया जा सकता है। इस कार्य के लिए 2-4 डाइक्लोरोफीनॉक्सी ऐसीटिक ऐसिड (2,4-D) ऑक्जिन विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हुआ है।
5. पुष्पन (Flowering)
- ऑक्जिन के प्रयोग से पुष्पन क्रिया रुक जाती है, परन्तु कुछ पौधों में ऑक्जिन पुष्पन को प्रेरित करता है; जैसे कपास (Cotton) और अनन्नास (Pineapple) में। बीज रहित फलों का उत्पादन (Production of parthenocarpic fruits) आधुनिक युग में बीज रहित फलों की बहुत उपयोगिता है। कुछ ऑक्जिन जब पुष्पों के जायांग (Gynoecium) के वर्तिका (Stigma) पर छिड़क दिये जाते हैं या उनका पेस्ट (Paste) बनाकर वर्तिकाग्र पर लगा दिया जाता है, तो उनमें बिना परागण (Pollination) और निषेचन (Fertilization) के हो फल बन जाते हैं और उनमें बीज नहीं होते। इस क्रिया को अनिषेकफलन (Parthenocarpy) भी कहते हैं। IAA, NAA, IBA आदि ऑक्जन से टमाटर, केला, सन्तरा, अंगूर आदि के बीज रहित फल प्राप्त किये गये है।
7. शीर्ष प्रमुखता (Apical dominance)—
- बहुत से पौधों में केवल शीर्षस्थ या अग्रस्थ कलिका (Apical bud) ही वृद्धि करती है तथा अक्षीय कलिकाएँ (Axillary buds) प्रसुप्तावस्था में ही बनी रहती है। अतः जब इन पौधों को अग्रस्थ कलिकाओं को काटकर अलग कर दिया जाता है, तब बहुत सी अक्षीय कलिकाएँ वृद्धि करने लगती हैं और नई शाखाओं को जन्म देती है। अग्रस्थ कलिकाओं में उपस्थित ऑक्जिन के कारण अक्षीय कलिकाओं की वृद्धि नहीं हो पाती है। इस प्रकार इस क्रिया को शीर्ष प्रमुखता (Apical dominance) कहते हैं।
- सर्वप्रथम थीमैन एवं स्कूग (Thimann and Skoog. 1934) ने शीर्षस्थ कलिकाओं (Apical bud) की प्रमुखता में ऑक्सिन के महत्व का वर्णन किया था। थीमैन (Thimann) ने सन् 1937 में अपने प्रयोगों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि पार्श्व कलिकाएँ (Lateral buds) तने की अपेक्षा ऑक्जिन के प्रति अधिक संवेदनशील (Sensitive) होती है।
शीर्ष प्रमुखता का कारण (Causes of Apical Dominance)
- अधिकांश वैज्ञानिकों के अनुसार, शीर्ष प्रमुखता का प्रमुख कारण शीर्षस्थ कलिकाओं में ऑक्जिन (Auxin) का निर्माण होता है, अतः उनको वृद्धि तेजी से होती है और पौधा लम्बाई में वृद्धि करता जाता है, परन्तु जब अग्रस्थ कलिका (Apical bud) काट कर अलग कर दी जाती है तब यह प्रभाव समाप्त हो जाता है तथा पार्श्व कलिकाओं (Lateral buds) की वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है। प्रयोगों द्वारा यह स्पष्ट हो चुका है कि जब ऑक्जिन युक्त एगर ब्लॉक (Agar blocks) को अग्रस्थ कलिका के कटे हुए भाग पर रख दिया जाता है तो पाश्र्व कलिकाओं (Lateral buds) की वृद्धि पुनः समाप्त हो जाती है। इसी कारणवश बगीचों में माली हैन (Hedge) को छटाई करते समय अग्रस्थ कलिकाओं को काट देते हैं, जिसके कारण पार्श्व कलिकाएँ वृद्धि करके नई को जन्म देती हैं जिससे झाड़ियाँ (Shrubs) सघन हो जाती हैं।
8 प्रसुप्ता नियन्त्रण (Control of dormancy)
- कुछ कृत्रिम ऑक्जिन फलों की प्रसुप्तावस्था के समय को बढ़ा देती है जिसके कारण इन फलों काफी समय तक संग्रह करके रखा जा सकता है। आलू के गोदामों में एल्फा-नैफ्थेलिन ऐसीटिक ऐसिड (Alpha-naphthalene acetic acid) के विलयन को छिड़कने से इनकी कलिकाएँ प्रसुप्तावस्था में रहती हैं। इस प्रकार आलू को काफी समय तक गोदामों में रखा जा सकता है। कॉर्म (Com), बल्य (Bulb) एवं प्रकन्दों (Tubers) आदि को अंकुरित होने से बचाने के लिये भी ऑक्जिन का प्रयोग किया जाता है।
9. एधा की पुनः सक्रियता (Reactivation of cambium)
- ऑक्जिन संवहन एधा में कोशिका विभाजन को बढ़ावा (Promote) देते हैं। वर्धनकाल में एधा की पुनः सक्रियता IAA द्वारा विमोचित (Triggered) की जाती है, जो परिवर्धित हो रहे प्ररोह कलिकाओं द्वारा स्थानान्तरित होता है।
10. युद्ध में रासायनिक हथियार के रूप में (As chemical weapon in war)
- ऑक्जिन को अत्यधिक सान्द्रता पौधों के लिये घातक होती है। अतः इसका उपयोग दुश्मनों की फसलों को नष्ट करने के लिये होने लगा है। वियतनाम युद्ध (Vietnam war) में इसका उपयग एजेन्ट ऑरेन्ज (Agent orange) के रूप में किया गया था। एजेन्ट ऑरेन्ज 2,4-D एवं 2, 4, 5-T का 1:1 अनुपात युक्त मिश्रण होता है, जिसका उपयोग वियतनाम युद्ध के दौरान उसके जंगलों में किया गया, जिसके कारण वहाँ के सैकड़ों वर्ग किमी क्षेत्र में फैले जंगल नष्ट हो गये।
11. कैलस निर्माण (Callus formation)
- पौधे के क्षतिग्रस्त (Damaged) ऊतकों में ऑक्जिन को अधिक सान्द्रता होने पर अधिक कैलस का निर्माण होता है।
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