मध्यकालीन बुन्देलखण्ड स्थापत्य कला | Medieval Bundelkhand Architecture
मध्यकालीन बुन्देलखण्ड स्थापत्य कला
मध्यकालीन बुन्देलखण्ड स्थापत्य कला :-
मध्यकालीन बुन्देला शासकों के काल की बनी इमारतों को बुन्देली स्थापत्य कला का नाम दिया गया है। इस समय विशेषतौर से दतिया एवं ओरछा राज्यों में वीरसिंहदेव बुन्देला ने ऐसे अनुपम महल, मंदिर और भवन बनवाये कि ओरछा को बुन्देलखण्ड की "नेशनल आर्ट गैलरी " कहा जाने लगा। वीरसिंहदेव ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि स्थान पर "केशवराय" का सुप्रसिद्ध मंदिर बनवाया था, जिसके दीपों की रोशनी आगरा से दिखाई देती थी, यह उत्तर भारत का उत्कृष्ट मंदिर था, इसका शिल्प अत्यन्त सुदृढ़ और बेजोड़ था। इस मंदिर को औरंगजेब ने अपनी धर्मान्धता के मद में गिरवा दिया था । बुन्देली स्थापत्य कला के महलों-दुर्गों में मजबूती, सुरक्षा, वैभव-प्रदर्शन, हवा और रोशनी, पानी का पूरा ध्यान रखा जाता था। पत्थर की बनाई जालियाँ एवं बाहर की ओर बैठने के लिए चारों के खुले मंच इन इमारतों की विशेषता हैं। इस शैली को स्थापत्य के जानकर बुन्देली, राजपूती और मुगल शैली के मिश्रित रूप की संज्ञा देते हैं । परन्तु प्रत्येक कला अपने आंचलिक ढाँचे में निजत्वपन देकर ही प्रस्तुत की जाती है। अतः इस पूरे काल के अंतर्गत उस शासन काल की शैली को, बुन्देली शैली अथवा बुन्देली कला कहना ही उपयुक्त होगा।
बुन्देली स्थापत्य कला की प्रमुख इमारतें इस प्रकार हैं:-
ओरछा की इमारतें
1. राजा महल :-
- ओरछा में प्रवेश करते ही नगर परकोटे की चौड़ी-चौड़ी दीवालों के पत्थर ओरछा के गौरव की कथा कहते हुए से दिखते हैं। इन पत्थरों की विशालता देखते ही, मध्यकालीन श्रमवीरों की हिम्मत को दाद देना पड़ती है। राजा महल तीन मंजिला है, और ओरछा की सबसे प्राचीन इमारत है। इसकी नींव रुद्रप्रताप ने रखी थी, बाद में इसे भारतीचन्द और मधुकरशाह ने पूरा किया था। यहाँ की प्रमुख विशेषताओं में चूने का मजबूत स्थापत्य, खुले आँगन, सघन चित्रकारी, मुस्लिम प्रभाव की दाड़ी, चौगान खेलने के चित्र, बारादरियाँ और बालकनियाँ आदि हैं। इमारत में कोड़िया घुटे हुए चूने का प्लास्टर है। महल की चित्रकला आकर्षक और दर्शकों का मन मोहने वाली है।
2. जहाँगीर महल :-
- ओरछा का जहाँगीरी महल पाँच मंजिला है, और यह वहाँ के बुन्देली स्थापत्य की सर्वोत्तम कृति है। इसमें 236 कमरे हैं। माना जाता है, कि इस महल का चबूतरा मधुकरशाह ने उसके बाद का कुछ भाग रामशाह ने और सम्पूर्ण व शेष भाग वीरसिंहदेव बुन्देला ने बनवाया था। वैसे इस महल को वीरसिंहदेव बुन्देला का बनवाया हुआ ही कहा जाता है। वीरसिंहदेव ने अपने संरक्षक बादशाह जहाँगीर के नाम पर इसका नामकरण किया और इस महल को अपनी रूचि के अनुसार पूर्णता की ओर पहुँचाया था। इस महल की विशेषताओं में पानी के लिए भूमिगत मिट्टी की नालियाँ, प्रत्येक मंजिल में खुले आँगन, छज्जेदार बालकनियाँ, पत्थर की बारीक जालियाँ, गणेश की मूर्ति, हाथी की कारीगरी, पशु-पक्षियों का अंकन, महल के कक्षों के भित्ति चित्र आदि हैं। महल से बेतवा नदी का भव्य दृश्य दिखाई पड़ता है। यह हिन्दू-मुस्लिम शैली की इमारत है। इमारत निर्माण का भाव हिन्दू राजपूती है और कारीगर का मन मुस्लिम है। इस प्रकार यह इमारत काल की कसौटी से मुगल शैली की मानी जाती है।
3. शीश महल :-
- जहाँगीरी महल और राजा महल के बीच में हरे-नीले टाइल्सों से सजा शीश महल है। इसे ओरछा के शासक उद्वोतसिंह ने 1706 ई. के लगभग बनवाया था। इसमें भारतीय हिन्दू शैली के आठ खम्बे बने हुए हैं। वर्तमान में इसे होटल के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है।
4. प्रवीणराय का महल :-
जहाँगीरी महल के उत्तर में दो मंजिला रायप्रवीण का महल है। इस महल में तलघर है, इससे जुड़ा हुआ बड़ा बागीचा है, तलघर को ठंडा रखने की भी व्यवस्था थी। प्रवीणराय का एक आकर्षक चित्र भी यहाँ बना हुआ है। प्रवीणराय ओरछा राज्य की प्रसिद्ध नर्तकी, कवियित्री व कलाकार थी। माना जाता है, कि मधुकरशाह बुन्देला के पुत्र इन्द्रजीत बुन्देला की वह प्रेमिका थी। महाकवि केशव के साहित्य में प्रवीणराय का उल्लेख आया है, केशव ने लिखा है-
राय प्रवीन की सारदा, सुचि रुचि रंजित अंग ।
बीना, पुस्तक धारिनी, राज हंस युत संग ।।
महल परिसर में अनेक छोटे-मोटे कक्ष, हमाम आदि के अवशेष ओरछा के विस्तृत स्थापत्य की कथा की ओर इशारा करते हैं।
ओरछा के मंदिर
आज ओरछा की प्रसिद्धि और पर्यटकों की पसंदीदा जगह होने का कारण ओरछा के धार्मिक मंदिर हैं। इन मंदिरों के कारण ओरछा को वर्तमान में विशिष्ट तीर्थ स्थान का दर्जा प्राप्त है।
1. रामराजा मंदिर :-
- यह मंदिर धार्मिक आस्था का बहुत बड़ा केन्द्र है, जिसे निवास के लिए महल के रूप में भारतीचन्द ने बनवाया था। भारतीचन्द के अनुज ओरछा के शासक मधुकरशाह की प्रसिद्ध रानी गणेशकुँअरि ने इस महल में अयोध्या से लाकर भगवान रामराजा की मूर्ति स्थापित कर दी थी। तब से यह महल रामराजा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया है। इसका प्रवेश द्वार महराबदार है, खुला और बड़ा आँगन है, दालानें बनी हैं, मंदिर की छत पालकीनुमा है। रामराजा मंदिर परिसर में जुझारसिंह का महल, सावन-भादों और हरदौल की समाधि भी है। वर्तमान में इस समाधि का मूलरूप मिट गया है और इसने अब आस्था का रूप लेकर व्यवसायिक स्वरूप ग्रहण कर लिया है ।
2. चतुर्भुज मंदिर :-
- स्थापत्य की दृष्टि से ऊँची कुर्सी देकर बनाये गये इस मंदिर की बनावट श्रेष्ठतम है। वीरसिंह द्वारा निर्मित इस कृति की प्रमुख विशेषताऐं हैं, लाल-बलुआ पत्थर का शतदल कमल युक्त प्रवेश द्वार, डांटदार गुम्बदों से युक्त सोलह भागों में विभाजित हॉल और उसके दृश्य को झिंझरियों से देखने की व्यवस्था मंदिर के ऊपर शिखर हैं, जो कभी स्वर्ण कलश युक्त थे। मंदिर के समीप ही भक्त कवि हरिराम व्यास और वीरसिंहदेव के मंत्री कृपाराम गौड़ का निवास स्थान था । युगलकिशोर का मंदिर भी यही पास में है ।
3. लक्ष्मी मंदिर :-
- वीरसिंहदेव द्वारा बनवाया, यह मंदिर पहाड़ी पर नगर से एक किलोमीटर पश्चिम की ओर है। इसमें 17वीं व 19वीं सदी की चित्रकारी प्रदर्शित है, जो इतिहास काल की कलात्मक आत्मा को प्रदर्शित करती है। यह मंदिर त्रिभुजाकार दिखाई देता है, पर है वर्गाकार, इसकी आकृति दुर्ग जैसी है। दो मंजिला मंदिर का शिखर तीन मंजिला होने के कारण दूर से दिखाई देता है |
- ओरछा में लगभग 32 संरक्षित भवन मंदिर - स्मारक आदि हैं। बुन्देली स्थापत्य कला का उद्गम, -- विकास का क्रम, विशेषताऐं और श्रमजीवियों की आंतरिक की पीड़ाओं का यहाँ बैठकर अध्ययन, मनन और चिन्तन किया जा सकता है।
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