बुन्देलखण्ड की चित्रकला, तालाब | Painting of bundelkhand in Hindi

बुन्देलखण्ड की चित्रकला

बुन्देलखण्ड की चित्रकला, तालाब  | Painting of bundelkhand in Hindi

बुन्देलखण्ड की चित्रकला

  • बुन्देलखण्ड की चित्रकला मानवीय विचारोंधारणाओं एवं धार्मिक अभिव्यक्तियों का इतिहास है। मानव प्रारंभ से ही पत्थर पर कुछ न कुछ उकेरता रहा हैऐसा करना उसकी खुशी का प्रकटीकरण कहा जा सकता है। माना जाता है कि चंदेलों के काल की चित्रकला प्रवृत्ति का विकास बुन्देलों के काल में हुआ था। भित्ती - चित्र बनाने के लिए चूने में शंख का चूर्ण और तेल मिलाकर सतह को चिकना बनाया जाता थारंग बनाने के लिए गेउरी मिट्टीचीलबट्टा पत्थरजला कोयलारामरजपेड़ों की छालछेवले के फूल आदि प्राकृतिक सामग्री का उपयोग किया जाता था । इसके अलावा चूने के साथसरेसगोंदउर्द की दालबेल का गूदाग्वारपाठे का गूदा आदि का भी उपयोग जरूरत के हिसाब से किया जाता था । चित्रकला के साथ संगीतनृत्यकलालोकनृत्यकलापहनावाअस्त्र-शस्त्रपशु-पक्षी आदि की भी जानकारी मिलती है। ओरछा में चित्रकला के दर्शन राजा महललक्ष्मी मंदिरजहाँगीरी महलपँचमुखी महादेव मंदिररायप्रवीण महलछतरियों आदि में उपलब्ध है। इनमें सामूहिक गायननृत्य आदि के भी दृश्य हैंजो तत्कालीन संगीत की प्रवृत्ति को भी रेखांकित करते हैं। विष्णु के दशाअवतार का दृश्यरामदरबार के दृश्यकृष्ण की बाललीलाओं के दृश्यशिकार के दृश्य मल्लयुद्ध के दृश्य नौकायन के दृश्य आदि अनेक आकर्षक झांकियाँ ओरछा की चित्रकला में मौजूद हैं।

 

  • बार - चंदेरी राज्य के तालबेहट में नृसिंह मंदिर की चित्रकला में राम और कृष्ण के जीवन की घटनाओंनृसिंह अवतारशेषनागकामधेनू गायहनुमानगणेशमहादेव-पार्वतीदुर्गापरशुरामराम-रावण युद्ध के साथ वाद्ययंत्रों के चित्र भी गायन मुद्रा में अंकित हैं। तालबेहट की चित्रकला में ओरछा की चित्रशैली के विचार और स्वरूप का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। दतिया के सत्खण्डा महल के प्रवेशद्वार पर बड़ी सी ड्रेगिन हिरण का शिकार करते दिखाई गई हैप्रथम मंजिल के प्रवेश द्वार की छत पर चाचक-खेलते सामूहिक नृत्य का दृश्य हैदूसरे खंड में रामायण और कृष्णलीला का अंकन हैंचौथे व छठें खण्ड में आमोद-प्रमोद के साथ बेलबूटोंगमलोंपत्तियोंपशु-पक्षियों का चित्ताकर्षक अंकन हैं। इस चित्रांकन में चूने की चिकनाहट अत्यन्त सुंदर एवं महीन बनाई गई हैये चित्र आज भी जीवंत हैं। इन राज्यों के वर्तमान उत्तराधिकारियों के संग्रह में मध्यकाल के एकल एवं सामूहिक कागजी चित्र और पांडुलिपियों में सजावट के साथ सुलेख लिपि एवं पुस्तकों में चित्रांकन भी उपलब्ध हैं। सभी आलोच्य राज्यों में चित्रकारों को दरबारी आश्रय मिला हुआ था और इन लोगों के यहाँ सुलेख एवं चित्रांकन के विभाग भी थे ।

 

  • चित्रांकन में नृत्य-गान एवं वाद्ययंत्रों का भरपूर प्रदर्शन हुआ हैजो इस बात का स्पष्ट संकेत है इन राज्यों में संगीतकार और संगीत को सम्मान प्राप्त था। मध्यकाल के बेहट (ग्वालियर जिला ) में जन्मे तानसेन और चंदेरी में जन्मे बैजूबावरा उस काल के चर्चित संगीतकार थे। यह दोनों स्थान बुन्देलखण्ड की सीमा के अंतर्गत हैं। 


ओरछा के संगीत की चर्चा करते हुए महाकवि केशव ने लिखा है-

 

नगरी गीतन की माधुरी मोहति मनु माधौ मधुपुरी ।। 

बाजत घंट घनै घरयाम झांझ झालरें भेरी तार।

 

बुन्देलखण्ड के तालाब :- 

  • बुन्देलों के पूर्ववर्ती चंदेलों ने बुन्देलखण्ड अंचल में सैकड़ों तालाब बनवाये थे। आलोच्य काल के ओरछाचंदेरी एवं पन्ना के शासकों ने अपने समय में बड़े-बड़े तालाब बनवाये थे। मध्यकाल में ही बुन्देलखण्ड में सबसे अधिक और सबसे महत्वशाली तालाब बने थे।

 

  • तालाब निर्माण के पीछे शासकों की सोची समझी लोकदृष्टि थी। बुन्देलखण्ड के तालाब जमीन के जलस्तर को ठीक स्थिति में रखने के लिए एवं कुँएबाउरियों में प्रत्येक मौसम में पानी बनाये रखने के लिए निर्मित किए गए थे। यहाँ कुँओं के पानी को पीने के काम में लिया थातालाब मानव के निस्तारण के साधन मात्र । लोकसंस्कारों में यहाँ नवेली बहु के आगमन के बाद उसके द्वारा कुँआ - पूजन की परम्परा का निर्वाह काफी पुराने समय से प्रचलित रहा था। तालाब निर्माण परम्पराबुन्देलखण्ड की एक ऐसी लोकप्रवृत्ति थी कि सभी बुन्देला शासक इस विचार में एकरूपता रखते थे । इससे ऐसा आभास होता है कि यहाँ के कस्बों-नगरों में जनसंख्या लगातार बढ़ रही थी । मध्यकालीन शासक बढ़ती जनसंख्या के निस्तारण की पूर्ति के लिए लगातार तालाब बनवा रहे थे। दूसरा दृष्टिकोण यह भी दिखाई देता हैकि ये शासक नगरों-कस्बों को बसाने में रुचि दिखा रहे थे। और जनता के धार्मिक उत्सवों का भी जुड़ाव तालाबों से रहता था। तालाबों के किनारे मंदिर होते थेजहाँ लोग स्नान के साथअपनी आस्था की भूख को मिटाते थे। इस प्रकार तालाब निर्माण सोच के पीछे लोकदृष्टिजीवनदृष्टि व धार्मिक आस्था दृष्टि सभी कुछ जुड़ा था ।

 

  • ओरछा के वीरसिंहदेव बुन्देला ने अनेकों प्रसिद्ध तालाब बनबाये थे। बादशाह शाहजहाँ 26 नवम्बर, 1635 ई. को स्वयं ओरछा गया थाउसने लिखा है, "वीरसिंह देव का बनवाया हुआ वीरसागर तालाब बहुत अच्छा हैजिसका घेरा 5) बादशाही कोसों का था। दूसरा तालाब समंदर सागर परगना जतारा में हैंइसका गिरदास 8 कोस का है।" शाहजहाँकालीन कोस पाँच हजार इलाही गज का होता था। ये तालाब उस समय एक बड़ी झील के रूप में लगते थे। इसी क्रम में इस काल का तालबेहट का तालअड़जार का तालबरूआसागर का तालाबदतिया का राधासागरकरनसागर तालाबमउ- सहानियाँछतरपुर एवं पन्ना के अनेकों तालाब उल्लेखनीय हैं। बुन्देलखण्ड में छोटे तालाबों को तलैया कहा जाता था । यहाँ के बुन्देला शासकों ने तालाब श्रृंखला के रूप में बनाये थेजब एक तालाब भर जाता थातो उसका अतिरिक्त जल स्वभाविक रूप से दूसरे तालाब में बहकर चला जाता था। तालाबों के पासयहाँ के बुन्देला शासकों ने चौपड़ाकुँआबाउरियाँ आदि भी बनवाई थीं। इस काल के इन जलस्त्रोतों की संख्या हजारों में हैं।

 

  • आलोच्य काल के सभी मध्यकालीन शासकों में यह लोकदृष्टि समान रूप से देखी गई थी। राज्य की आर्थिक समृद्धि की चाहना एवं आमजनता की प्रसन्नता और लोककल्याण की भावना इन तालाबों के निर्माण के पीछे स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। 

 

बुन्देलखण्ड का लोकसंदर्भ :- 

  • मध्यकालीन बुन्देलखण्ड के इतिहासकार सबसे महत्वपूर्ण लोकसंदर्भ आल्हा ऊदल -- की बहादुरी की वह तस्वीर हैजिसके कारण उत्तर-भारत के गाँव-गाँव की चौपालोंऔर खेतों-खलियानों में पूजे और "आल्हा गायकी" के माध्यम से याद किये जाते हैं। चंदेल शासक परमर्दिदेव के शासनकाल में 1182-1183 ई. के बीच पृथ्वीराज चौहान से हुए युद्ध में बनाफर राजपूत जाति के दो वीर आल्हा ऊदल ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन कर अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। मध्यकालीन कवि जगनिक ने अपने बुन्देली काव्य "आल्हाखण्ड" में उन दो वीरों की लोकगाथाओं को कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया था। यह आल्हाखण्ड उत्तर भारत के प्रत्येक गाँव में लोगों की जबान पर चढ़ा हुआ है।

 

  • दूसरा महत्वपूर्ण लोकसंदर्भ ओरछा के शासक जुझारसिंह बुन्देला के छोटे भाई हरदौल का है । हरदौल धर्म पर चलने वाले ओरछा के नेक कुँवर थेवे अपने बड़े भाई ओरछा के शासक जुझारसिंह की अनुपस्थिति में वहाँ का शासन कार्य चलाते थे। लेकिन ओरछा के षडयंत्रकारियों ने जुझारसिंह के कान भरे और हरदौल के अपनी भावी के अनुचित संबंधों की बात कही थी। एक मान्यता यह भी है कि हरदौल की लोकप्रियता से चिढ़कर जुझारसिंह ने उन्हें विष देकर मरवा डाला था। इस घटना के बाद में पूरे बुन्देलखण्ड सहित दक्षिण भारत के अनेक स्थानों व पंजाब मेंहरदौल के चबूतरे व मंदिर बने थे। वे लोकदेवता के पद पर बैठ लोगों के पूज्य-आराध्य बन गये थे। हरदौल के चरित्र पर लिखे अनेक लोकगीत आज प्रसिद्ध हैं। इतिहास न जानने वाले और न पढ़ने वाले लोग भी हरदौल को बखूबी जानते हैं।

 

  • तीसरा महत्वपूर्ण चरित्र मथुरावली का है। उसके काका एक मुगल सरदार से उसको पकड़वा देते हैं। वह अति सुंदर है और मुगल सरदार उसको मुसलमान बनाकर अपनी बेगम बनाना चाहता है । परन्तु मथुरावली मुगल सरदार की बात किसी भी प्रकार नहीं मानना चाहती है और उसके भाईरिश्तेदार आदि मुगल सरदार को धन देकर उसे छुड़ाना चाहते हैं। परन्तु वह मुगल सरदार किसी भी कीमत पर मथुरावली को मुक्त करने के लिए तैयार नहीं है। अंत में मथुरावली किसी प्रकार अपने निवास स्थान में आग लगाकर अपने सतीत्व की रक्षा करती है। मथुरावली के गीत - कथा मालवीबुन्देली और राजस्थानी आदि बोलियों में प्रचलित तथा लोकप्रिय हैं।

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