पादप वृद्धि का अर्थ , परिभाषा, मापन, वृद्धि के चरण | Plant Growth Meaning and Definition in Hindi
पादप वृद्धि का अर्थ , परिभाषा, मापन
वृद्धि का अर्थ एवं परिभाषा
- वृद्धि एक मूलभूत जैविक आवश्यकता है जो कि जीवित कोशिकाओं में होने वाली विभिन्न प्रकार की जैव रासायनिक प्रक्रियाओं पर आधारित होती है। वास्तव में वृद्धि एनाबोलिक (Anabolic) एवं केटाबोलिक (Catabolic) दोनों प्रक्रियाओं का सम्मिलित परिणाम होती है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों एवं जन्तुओं के आकार (Size), भार (Weight) एवं आयतन (Volume) में अपरिवर्तनीय (Irreversible) वृद्धि होती है।
वृद्धि की परिभाषा
आधुनिक वैज्ञानिक मिलर (Miller) के अनुसार -
“वृद्धि वह क्रिया है जिसके परिणामस्वरूप किसी जीव या उसके विभिन्न अंगों के भार (Weight), आयतन (Volume), आकार (Size) रूप (Form) इत्यादि का स्थायी व अनुत्क्रमणीय (Permanent and Irreversible) बढ़ाव या परिवर्तन होता है।"
आभासी वृद्धि
- आकार आयतन एवं भार में हुई अनुत्क्रमणीय वृद्धि को आभासी वृद्धि कहते हैं। क्योंकि यह वृद्धि की बाह्य अभिव्यक्ति है।
वास्तविक वृद्धि
- पदार्थों अथवा जीवद्रव्य का निर्माण वास्तविक वृद्धि कहलाती है।
पादप वृद्धि प्रायः अपरिमित है या वृद्धि का खुला स्वरूप
- पादप वृद्धि अनूठे ढंग से होती है; क्योंकि पौधे जीवन भर असीमित वृद्धि की क्षमता को अर्जित किए होते हैं। इस क्षमता का कारण उनके शरीर में कुछ खास जगहों पर विभज्योतक (मेरिस्टेम) ऊतकों की उपस्थिति है। ऐसे विभज्योतकों की कोशिकाओं में विभाजन एवं स्वशाश्वतता (निरंतरता) की क्षमता होती है।
- यह उत्पाद जल्द ही विभाजन की क्षमता खो देते हैं और ऐसी कोशिकाएं जो विभाजन की क्षमता खो देती है. वे पादप शरीर की रचना करती है। इस प्रकार की वृद्धि जहाँ पर विभज्योतक की क्रियात्मकता से पौधे के शरीर में सदैव नई कोशिकाओं को जोड़ा जाता है, उसे वृद्धि का खुला स्वरूप कहा जाता है।
पादप वृद्धि का मापन
पादप वृद्धि का मापन निम्नलिखित रूपों में किया जाता है-
- तने एवं जड़ों की वृद्धि का मापन उनकी लम्बाई एवं मोटाई में वृद्धि के रूप में किया जाता है।
- कोशिकाओं की संख्या द्वारा वृद्धि का मापन।
- पौधों के भार द्वारा वृद्धि का मापन।
- फलों एवं पत्तियों की वृद्धि का मापन उनके आयतन एवं क्षेत्रफल में वृद्धि के रूप में किया जाता है।
नोट- पौधों की वृद्धि का मापन करने वाले उपकरण को ऑक्जेनोमीटर (Auxanometer) कहते हैं।
कोशिकीय स्तर पर वृद्धि का मापन क्या संभव है..पादप वृद्धि का मापन किसी एक विधि द्वारा संभव क्यों नहीं
है..
- कोशिकीय स्तर पर वृद्धि मुख्यतः जीवद्रव्य मात्रा में वृद्धि का परिणाम है। चूँकि जीवद्रव्य की वृद्धि को सीधे मापना कठिन है; अतः कुछ दूसरी मात्राओं को मापा जाता है जो कम या ज्यादा इसी के अनुपात में होता है।
- इसलिए, वृद्धि को विभिन्न मापदंडों द्वारा मापा जाता है।जैसे ताजा भार, वृद्धि, शुष्क भार, लंबाई क्षेत्रफल, आयतन तथा कोशिकाओं की संख्या आदि।
- जैसे की एक पराग नलिका की वृद्धि, लंबाई में बढ़त का एक अच्छा मापदंड है, जबकि पृष्ठाधार पत्ती की वृद्धि को उसके पृष्ठीय क्षेत्रफल की बढ़त के रूप में मापा जा सकता है।
वृद्धि के चरण अथवा वृद्धि की अवस्थाएँ (Phases of Growth)
पौधों में वृद्धि क्षेत्रों (प्रदेशों) को जहाँ कहीं भी वे स्थित हों, निम्न तीन अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है-
(1) कोशिका विभाजन की प्रावस्था,
(2) कोशिका दीर्घन या विवर्धन की प्रावस्था,
(3) कोशिका विभेदन या परिपक्वन की प्रावस्था ।
(1) कोशिका विभाजन की प्रावस्था (Phase of cell division)—
- इस प्रावस्था में कोशिका के अन्दर समसूत्री कोशिका विभाजन होता है जिससे कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है। इस अवस्था में वृद्धि की गति धीमी होती है।
(2) कोशिका दीर्घन या विवर्धन की प्रावस्था (Phase of cell elongation or cell enlargement ) -
- कोशिका विभाजन के फलस्वरूप नई कोशिकाओं का निर्माण होता है और इनमें विभाजन की क्षमता कम हो जाती है। विभिन्न प्रकार की उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप इन कोशिकाओं की लम्बाई, आपतन एवं भार बढ़ने लगता है। इसलिए इस प्रावस्था को दीर्घन प्रावस्था कहते हैं। इस प्रावस्था में वृद्धि तेजी से होती है।
(3) कोशिका विभेदन या परिपक्वन की प्रावस्था (Phase of cell differentiation or cell maturation ) -
- कोशिका दीर्घन के पश्चात् अपना निश्चित आकार ग्रहण कर लेती है और उसके पश्चात् उसमें विभिन्न प्रकार के परिवर्तन देखने को मिलते हैं जिससे वह स्थायी रूप धारण कर लेती है। ये सभी परिवर्तन कोशिकाओं के आनुवंशिक संगठन के अनुसार होते हैं। इस प्रावस्था मैं वृद्धि की गति धीमी तथा स्थिर होने लगती है।
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