चरखारी रियासत का इतिहास एवं प्रमुख राजा | Charkhari Riyasat MP History
चरखारी रियासत का इतिहास एवं प्रमुख राजा
चरखारी रियासत :
- चरखारी नामक स्थान छतरपुर के समीप स्थित है और इसकी स्थापना एवं विकास जैतपुर के राजा जगतराज के द्वारा किया गया था। जगतराज को शिकार खेलने का बड़ा शौक था और वे इसके लिये रंजीत पहाड़ी पर स्थित जंगल में जाते थे तथा प्रायः हिरन जैसे दिखने वाले जानवर चरखरों का शिकार करते थे। जगतराज ने एक तो इस पहाड़ी को चरखेरी का नाम दिया तथा यहाँ पर एक दुर्ग का निर्माण करवाया जो मंगलगढ़ के नाम से जाना गया। यह दुर्ग अपनी तरह का एक मजबूत दुर्ग है। चरखारी पहाड़ी के समीप ही एक गाँव घुटबई मौजूद था जहाँ लोधियों की सत्ता थी और वे इस क्षेत्र में जगतराज के बढ़ते प्रभाव को सहन नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने विशेषतः लोधी रानी बड़ी बाई ने जगतराज को यहाँ से खदेड़ने के लिये बड़ा संघर्ष भी किया। बाद में उनके पुत्र मदनराज ने जगतराज से समझौता कर उनका प्रभाव स्वीकार कर लिया तथा अपने लिये श्री भैया की उपाधि प्राप्त कर ली। जगतराज ने अपने जीते जी अपने राज्य को पुत्रों में बाँट दिया था और इस बँटवारे में चरखारी का क्षेत्र जैतपुर में ही शामिल था, बाद की परिस्थितियों में 1765 ई. में चरखारी जगतराज के ज्येष्ठ पुत्र कीरतसिंह के द्वितीय पुत्र खुमान सिंह को दे दिया गया।
चरखारी के प्रथम राजा
- चरखारी के प्रथम राजा के खुमान सिंह ने लगभग 17 वर्षो (1765-1782 ई.) तक शासन किया और इस दौर में उन्हें भी संघर्ष एवं युद्धों का सामना करना पड़ा। दरअसल हिम्मतबहादुर ने लखनऊ के करामात खाँ की साहायता से 1768 ई. में बुंदेलखण्ड के पूर्वी हिस्से पर आक्रमण किया, किंतु उसे चरखारी, पन्ना एवं बाँदा की संयुक्त सेनाओं का सामना करना पड़ा और मुँगाली के मैदान में शिकस्त खानी पड़ी। इस विजय के फलस्वरूप खुमान सिंह का रूतबा बढ़ गया और इसी भ्रम में उन्होंने बॉदा पर अधिकार करने के लिये 1782 ई. में बाँदा पर आक्रमण कर दिया। पनरोरी के युद्ध में नौने अर्जुनसिंह सुँगरा ने उन्हें न केवल पराजित किया बल्कि मौत के घाट उतार दिया ।
- ऐसा कहा जाता है कि खुमान सिंह के पुत्र विजयबहादुर ने अपने मृत पिता के रक्तरंजित वस्त्र तोषाखाने में सुरक्षित रखवा दिये ताकि वह के राजा और अपने काका गुमान सिंह तथा नौने अर्जुन सिंह से इस मौत का बदला ले सके।
विजयबहादुर
- खुमानसिंह की मृत्यु के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र विजयबहादुर ने सत्ता अपने हाथ में ली तथा 1782 से 1829 ई. तक चरखारी पर शासन किया। इनके शासनकाल में ग्वालियर के सिंधिया मराठों ने चरखारी से चौथ की माँग की और विजय बहादुर द्वारा मना कर दिये जाने पर मराठा सेना उनके पुत्र ईश्वरी सिंह को अगवा कर ग्वालियर ले गई। संकट यहीं समाप्त नहीं हुआ, उधर नौने अर्जुन सिंह 1785 ई. चरखारी पर आक्रमण कर विजय बहादुर को चरखारी से खदेड़ दिया, फलतः उसने झाँसी के झोकन बाग में शरण प्राप्त की। निष्कासित राजा को दंश झेल रहे विजय बहादुर ने अवसर पाते ही हिम्मतबहादुर एवं अली बहादुर को बाँदा पर आक्रमण करने के लिये उकसाया। इस आक्रमण में नौने अर्जुनसिंह मारे गये और बाँदा पर अलीबहादुर का अधिकार हो गया तथा विजयबहादुर को पुनः चरखारी की सत्ता प्राप्त हो गई। हालाँकि बाद में अली बहादुर के उत्तराधिकारी शमशेर बहादुर ने विजय बहादुर को परेशान किया तथा उनसे चौथ की वसूली की।
चरखारी के राजा विजय बहादुर को मराठों एवं शमशेर बहादुर से राज्य की सुरक्षा के लिये अंग्रेज ही एक सहारे के रूप में दिखाई दिये, अतः उन्होंने 29 जुलाई 1804 ई. को कंपनी सरकार के प्रतिनिधि जॉन बेली से मुलाकात कर एक इकरारनामा कर लिया 48 जिसके तहत उन्होंने कंपनी सरकार के समक्ष शपथ ली -
1. वह कंपनी सरकार के शत्रुओं से संपर्क नहीं रखेंगे।
2. वह कभी भी चोरों एवं डाकुओं के साथ संपर्क नहीं रखेगा।
3. वह कभी भी चोरों एवं डाकुओं को अपने राज्य में शरण नहीं देगा ।
4. वह अपने राज्य में स्थित कंपनी सरकार के भगोड़े अपराधियों को पकड़कर कंपनी सरकार को सौंप देगा ।
5. वह अपने राज्य में राजस्व वसूली लायक सिपाहियों नौकर को रखेगें ।
6. उसका एक विश्वस्त साथी सदैव कंपनी सरकार के सेवा में रहेगा
- इस इकरारनामें को कंपनी सरकार ने तुरंत स्वीकार न करते हुये लगभग सात साल बाद 25 मार्च, 1811 को स्वीकृति प्रदान की, क्योंकि इस समझौते में चरखारी राज्य से लगे हुए अन्य राज्यों के साथ सीमा विवाद सामने आ गया था। हालाँकि चरखारी को प्राप्त सनद में राठ, ईशानगर, स्योड़ा, खटोला परगने भी शामिल कर दिये गये थे। विजय बहादुर की उपलब्धियों में ईशानगर का किला, ईशानगर का तालाब, चरखारी का विजयसागर तालाब, मौधा का किले का निर्माण आदि शामिल है।
Post a Comment