छतरपुर रियासत | Chatarpur Riyasat GK in Hindi
छतरपुर रियासत (Chatarpur Riyasat GK in Hindi)
छतरपुर रियासत :
- छतरपुर रियासत का उद्भव पन्ना राज्य से हुआ था तथा इसके संस्थापक सौनेजू पँवार थे। इस दृष्टि से इस रियासत पर शासन करने वाला राजवंश परमार अथवा पँवार राजवंश था। छतरपुर राज्य की स्थिति बुंदेखण्ड के मध्य भाग में स्थित खजुराहो के समीप थी। सौनेजू पँवार ने अपनी शक्ति पन्ना के विद्रोही बुंदेला राजवंशी सरनेत सिंह के कामदार के रूप में सेवा करते हुए संचित की थी। वे सरनेतसिंह के साथ छतरपुरं के समीप स्थित राजनगर में रहते थे और जब सरनेत सिंह की मृत्यु हुई तब उसने नवीन शासक हीरासिंह की अल्पवयस्कता का लाभ उठाते हुए न केवल राजनगर पर अधिकार कर लिया अपितु उसे अपना स्वतंत्र ठिकाना बना लिया। इस समय समूचे बुंदेलखण्ड में अराजकता का वातावरण था तथा हिम्मत बहादुर तथा अली बहादुर ने चारों ओर लूटपाट मचा रखी थी। इन्हीं परिस्थितियों में सौनेजू ने 1790 से 1793 ई. के मध्य अपने आसपास के राज्यों पन्ना, बिजावर एवं चरखारी के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया तथा अली बहादुर को 19000 /- वार्षिक कर देकर छतरपुर को 1795 ई. में अपनी राजधानी बना लिया ।
सौनेजू पँवार ने भी बुंदेलखण्ड के अन्य शासकों की भाँति अंग्रेजों के साथ संपर्क किया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने बुंदेलखण्ड में अपने प्रतिनिधि जॉन बेली के माध्यम से छतरपुर के साथ 4 अप्रैल, 1806 में एक समझौता किया, जिसकी निम्नलिखित धाराएँ थीं -
1. सौनेजू पँवार कंपनी सरकार के विरोधियों के साथ कोई संबंध नहीं रखेगा ।
2. सौनेजू पँवार किसी भी स्थिति में चोर डाकुओं को राज्य में शरण नहीं देगा ।
3. सौनेजू पँवार कंपनी सरकार के भगोड़े अपराधियों को अपने राज्य से पकड़ कर कंपनी सरकार को सौंप देगा।
4. सौनेजू पँवार न तो कंपनी सरकार के विरोधियों से कोई संपर्क रखेगा और न ही कंपनी सरकार के मित्र के साथ कोई शत्रुता रखेगा ।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने उक्त समझौते के माध्यम से सौनेजू पँवार के वचनों को स्वीकार करते हुए छतरपुर रियासत को एक सनद प्रदान की। इस तरह छतरपुर राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के अंतर्गत एक सनद राज्य था। अब कंपनी सरकार छतरपुर राज्य में हस्तक्षेप करने की स्थिति में थी और शीघ्र ही उसे अवसर भी प्राप्त हो गया। जब सौनेजू पँवार ने 1812 ई. में अपने पाँच पुत्रों में राज्य का बँटवारा कर कंपनी सरकार से उसका अनुमोदन चाहा तो कंपनी सरकार ने मामले की जाँच की, किंतु कंपनी जल्द ही उसका निराकरण नहीं कर सकी। इस बीच सौनेजू पंवार की 1816 ई. में मृत्यु हो गई। कंपनी सरकार के निर्णयानुसार सौनेजू पँवार द्वारा किया गया विभाजन विधि संम्मत नहीं था । उसके निर्णयानुसार उसके ज्येष्ठ पुत्र प्रताप सिंह को 4 मई, 1816 को छतरपुर राज्य का शासक मान्य किया गया। प्रताप सिंह ने भी राज्य में सत्ता संघर्ष को टालने के लिए अपने राज्य का पुनः युक्तिसंगत बँटवारा कर दिया तथा 15 जुलाई, 1816 ई. को ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के साथ पुनः एक समझौता किया, जिसमें उसने वचन दिया कि -
1. में कंपनी सरकार के विरोधियों एवं लुटेरों से कोई संपर्क नहीं रखूँगा ।
2. मैं कंपनी सरकार के भगोड़े अपराधियों को अपने राज्य से पकड़कर कंपनी सरकार को सौपूँगा ।
3. मैं राज्य के अंतर्गत आने वाले राजमार्गों एवं घाटों की सुरक्षा करूँगा ।
4. मैं आवश्यकता पड़ने पर कंपनी सरकार को सहायता प्रदान कँगा।
5. मैं अथवा मेरा भाई किसी अन्य राज्य में कोई सेवा नहीं करेगा।
6. मैं जिन क्षेत्रों अथवा गाँवों पर मेरा अधिकार पुरातन सिद्ध नहीं हुआ तो उन पर दावा त्याग दूँगा ।
.7. मैं किसी ऐसे गाँव को आधिपत्य में लेने की चेष्टा करूँगा, जिस पर मेरा कोई दावा नहीं बनता है।
8. मेरा कोई विश्वस्त साथी कंपनी सरकार के सेवा में रहेगा। प्रतापसिंह के अलावा उसके भाइयों ने भी पूरक समझौते किए और अंततः समझौतों पर 11 जनवरी, 1817 ई. को तत्कालीन लार्ड हेस्टिंग्ज की स्वीकृति प्राप्त हो गई।
Post a Comment