जैतपुर राज्य (रियासत) | Jaitpur Riyasat History in Hindi
जैतपुर राज्य (रियासत)
जैतपुर राज्य (रियासत) :
- जैतपुर नामक क्षेत्र केन नदी के पश्चिम में राठ - पनवाड़ी परिक्षेत्र में स्थित था तथा पन्ना नरेश छत्रसाल के अधीन आता था। राजा छत्रसाल ने अपने राज्य के बँटवारे में जैतपुर क्षेत्र अपने द्वितीय पुत्र जगतराज को सौंपा था, जिसने 1732 से 1758 ई. तक जैतपुर की गद्दी पर शासन किया। जगतराज ने अपनी मृत्यु के पूर्व ही जैतपुर राज्य का विभाजन अपने पुत्रों में कर दिया था, जिसके अनुसार जैतपुर की गद्दी उनके ज्येष्ठ पुत्र कीरतसिंह को मिलनी थी, जबकि शेष पुत्रों में से पहाड़सिंह को बाँदा तथा अजयगढ़, वीर सिंह को बिजावर, सरनेत सिंह को बिजावर के समीप दलीपुर, केहर सिंह को टोरिया कुलपहाड़, हेतसिंह को बिजावर के समीप भगवा, खड़कसिंह को कूपिया तथा अर्जुनसिंह सीलौन की जागीरें प्रदान की गई। तीन अन्य पुत्रों खेत सिंह, देवी सिंह एवं कल्याण सिंह को कुछ भी नहीं दिया गया। इसप्रकार इस विभाजन ने जैतपुर के बुंदेला राजवंश में प्रारंभ से ही असंतोष के बीज बो दिये थे। दुर्भाग्य से जगतराज के ज्येष्ठ पुत्र कीरतसिंह की मृत्यु उनके रहते ही हो गई और प्रशासन पर उनके द्वितीय पुत्र पहाड़ सिंह का प्रभाव बढ़ गया। मऊ नामक स्थान पर जब जगतराज की मृत्यु हुई तब पहाड़सिंह ने इस खबर को प्रजा से छुपाकर उनकी बीमारी का स्वाँग रचा और चुपके से जैतपुर के समस्त अधिकारियों को चार गुना अधिक वेतन का लालच देकर अपने पक्ष में कर लिया ।
- जैसे ही स्थिति को अपने काबू में लिया, पहाड़सिंह ने जगतराज की मृत्यु की खबर सार्वजनिक करते हुए जैतपुर की गद्दी पर अधिकार कर लिया। उन्हें कीरत सिंह के ज्येष्ठ पुत्रों गुमान सिंह एवं खुमान सिंह के तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा, क्योंकि जैतपुर की गद्दी पर वास्तविक अधिकार गुमान सिंह का बनता था। दोनों पक्षों में निरंतर संघर्ष होने पर पहाड़ सिंह अपने एक अन्य भाई केहर सिंह की जागीर कुलपहाड़ चले गये, जहाँ केहर सिंह की मध्यस्थता में दोनों पक्षों के मध्य एक समझौता हुआ। इस समझौते के तहत गुमान सिंह को बाँदा -अजयगढ़ क्षेत्र तथा खुमान सिंह को चरखारी का क्षेत्र दे दिया गया। शीघ्र ही 1765 ई. में पहाड़सिंह की भी मृत्यु हो गई और जैतपुर की गद्दी पर गजराज सिंह विराजमान हुए । इन्होंने यद्यपि 24 वर्ष तक शासन किया, किंतु पारिवारिक संघर्ष एवं हिम्मत बहादुर अजी बहादुर द्वारा इनके राज्य में फैलायी गई अराजकता के कारण इनका - कार्यकाल विशेष उपलब्धियों वाला नहीं रहा। गजराज सिंह के बाद उनके पुत्र केशरी सिंह जैतपुर के राजा बने और उन्हें भी हिम्मत बहादुर एवं अजी बहादुर के आक्रमण का सामना करना पड़ा साथ ही चौथ का भुगतान करना पड़ा।
जैतपुर के शासक केशरी सिंह ने मराठों एवं हिम्मत बहादुर तथा अजी बहादुर के आतंक से अपने राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों के साथ मधुर संबंध बनाने का प्रयास किया और उन्हें शा सफलता भी प्राप्त हुई । शीघ्र ही ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने जैतपुर के साथ 13 सितम्बर, 1812 ई. को एक समझौता किया, जिसमें जैतपुर नरेश ने निम्न लिखित इकरार किया -
1. वह कंपनी सरकार के मित्रों को मित्र तथा शत्रु को शत्रु समझेगा।
2. वह अपने राज्य के किसी व्यक्ति द्वारा कंपनी सरकार के क्षेत्र में किसी भी प्रकार के उपद्रव को दबाने के लिये बाध्यकारी होगा।
3. वह अपने राज्य में किसी भी चोर डाकु को शरण नहीं देगा।
4. वह अपने राज्य में यदि कंपनी सरकार का कोई भगोड़ा अपराधी होगा तो उसे पकड़कर कंपनी सरकार को सौंप देगा।
5.वह अपने राज्य में निर्धारित संख्या में ही घोड़े एवं सेना रखेगा।
6. वह जैतपुर राज्य के राजमार्गों एवं घाटों की सुरक्षा का दायित्व का निर्वहन करेगा।
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8. उसका एक विश्वस्त साथी सदैव कंपनी सरकार के पास सेवा करेगा।
जैतपुर राजा द्वारा उक्त इकरार किये जाने पर कंपनी सरकार ने जैतपुर राजा को 52 गाँवों पर शासन संबंधी सनद प्रदान कर दी। 1813 ई. में केशरीसिंह के स्वर्गवास होने पर पारीछत उनके उत्तराधिकारी बने, जिन्होंने 1813 से 1843 ई. तक लगभग तीस वर्षों तक शासन किया।
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