शाहगढ़ रियासत का इतिहास एवं प्रमुख राजा | Saahagarh Riyaasat History in Hindi
शाहगढ़ रियासत का इतिहास एवं प्रमुख राजा
शाहगढ़ रियासत :
- शाहगढ़ क्षेत्र सागर एवं टीकमगढ़ के बीच में स्थित है। शाहगढ़ राज्य का उद्भव पन्ना रियासत से हुआ था और यह एक बुंदेला राज्य था । पन्ना के राजा हृदयशाह (1732-1739 ई.) के निधन के बाद पन्ना में राजगद्दी के संघर्ष छिड़ गया था। नये राजा सभासिंह को अपने ही भाई पृथ्वी राज के विरोध का सामना करना पड़ा था। पृथ्वी राज को मराठा सेनापति गोविंद बल्लाल को समर्थन प्राप्त था, अतः सभासिंह ने मराठों से न उलझते हुए अपने भाई पृथ्वी राज को तीन लाख रूपये वार्षिक आय का क्षेत्र शाहगढ़ 1744 ई. में सौंप दिया। जबकि मराठों ने भी पृथ्वीराज को गढ़ाकोटा का तीन लाख रूपये वार्षिक आय का क्षेत्र प्रदान कर दिया और इसकी सनद पेशवा बाजीराव द्वारा पृथ्वीराज को दी गई। 1772 ई. में पृथ्वीराज की मृत्यु होने पर उनके पुत्र हरिसिंह ने गद्दी संभाली और शाहगढ़ के स्थान पर गढ़ाकोटा को अपनी राजधानी बनाया। इनके उत्तराधिकारी मर्दनसिंह (1785 - 1810 ई.) ने मराठों को चौथ देना बंद कर उनकी शत्रुता मोल ले ली। फलतः मराठों विशेषतः सागर के सूबेदार रघुनाथ राव, जो कि आवा साहेब के नाम से भी जाने जाते थे, 1809 ई. में गढ़ाकोटा पर आक्रमण के लिये रघुजी भौंसले को निर्देश दिये। हालाँकि मर्दन सिंह ने रघुजी भौंसले के विरुद्ध ग्वालियर के सिंधिया से समझौता कर युद्ध में सिंधिया सेना की सहायता प्राप्त की, किंतु इस युद्ध में मर्दन सिंह की मृत्यु हो गई .
- मर्दन सिंह का उत्तराधिकारी अर्जुन सिंह हुआ, जिसने मराठों के साथ युद्ध जारी रखा तथा अंग्रेजों के साथ अपने संपर्क बढ़ाये । उसे यह आशंका थी कि अंग्रेज सागर के मराठों को सहायता प्रदान करेंगे, अंग्रेज बेसिन की संधि के उल्लंघन होने के कारण मराठों से वैसे ही नाराज थे, अतः उन्होंने इस युद्ध में हस्तक्षेप न करने की नीति अपनायी । अर्जुन सिंह ने ग्वालियर के सिंधियाओं की सहायता से रघुजी भौंसले को परास्त कर दिया। इस युद्ध में सिंधिया सेना का नेतृत्व फ्रेंच सेनापति जीन बेप्टिस्ट कर रहा था। युद्ध में सहायता के बदले में अर्जुन सिंह को अपने राज्य के देवरी, गौरझामर, गढ़ाकोटा एवं नाहरमऊ इलाके सिंधिया को देने पड़े। अब पुनः शाहगढ़ राज्य की राजधानी शाहगढ़ को ही बनाया गया.
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