मायस्थेनिया
ग्रेविस एक स्वप्रतिरक्षी रोग (Autoimmune disease) है जिसके कारण
तन्त्रिका-पेशी सन्धि स्थल (Neuro- muscular junction) की चिरकालिक, क्रमिक क्षति
होती है। शरीर का प्रतिरक्षा तन्त्र असंगत ढंग से प्रतिरक्षी उत्पन्न करता है जो
कुछ ACh ग्राहियों के साथ बन्धित होकर उन्हें अवरुद्ध कर देते हैं
जिसके कारण कंकालीय पेशियों के चालक छोर प्लेटों (Motor end plates) पर क्रियाशील ACh ग्राहियों की
संख्या कम हो जाती है। जैसे-जैसे रोग आगे बढ़ता है, अधिक से अधिक ACh ग्राही समाप्त
होते जाते हैं अतः पेशियाँ उत्तरोत्तर कमजोर होती जाती हैं, आसानी से थकने
लगती हैं और अन्ततः कार्य करना बन्द कर देती हैं। चूँकि मायस्थेनिया ग्रेविस के 75
प्रतिशत रोगियों में थायमस की अतिवृद्धि (Hyperplasia) या अर्बुद (Tumor) पाया जाता है।
अतः माना जाता है कि यह व्यतिक्रम थायमस असामान्यता के कारण होता है। मायस्थेनिया
ग्रेविस 10,000 लोगों में से एक को होता है .
यह महिलाओं में
अधिक सामान्य रूप से पाया जाता है तथा इसकी शुरुआत महिलाओं में 20 से 40 वर्ष के
बीच तथा पुरुषों में 50 से 60 वर्ष के बीच होती है। इस रोग में अधिकतर चेहरे एवं
गर्दन की पेशियाँ प्रभावित होती हैं। प्रारम्भ में नेत्र पेशियाँ कमजोर हो जाती
हैं जिससे दोहरी दृष्टि (Double vision) उत्पन्न होती है
तथा गले की पेशियों के कमजोर पड़ जाने के कारण निगलने में परेशानी होने लगती है
तथा धीरे-धीरे रोगी को चबाने तथा बोलने में तकलीफ होने लगती है। धीरे-धीरे अंगों (Limbs) की पेशियाँ भी प्रभावित
होने लगती हैं। श्वसनी पेशियों के प्रभावित होने पर रोगी की मृत्यु हो जाती है।
(2) अपतानिका (Tetany)
सीरम कैल्शियम या
आयनित कैल्शियम के कम हो जाने के फलस्वरूप परिधीय तन्त्रिकाओं की उत्तेजनशीलता में
वृद्धि हो जाती है। इससे उत्पन्न विकार को टिटैनी (Tetany) कहते हैं। इसके
अतिरिक्त मैग्नीशियम क्षीणता (Magnesium depletion) से भी यह रोग
उत्पन्न होता है विशेष रूप से कुअवशोषण (Malabsorption) की दशा में।
बच्चों में इस रोग के कारण हाथ-पैरों में ऐंठन (Carpopedal spasm), खर्गर (Stridor) तथा मरोड़ (Convulsions)
जैसे लक्षण
उत्पन्न होते हैं। हाथ की ऐंठन (Carpal spasm) के कारण हाथ
विशिष्ट स्थिति में आ जाते हैं तथा अँगूठा विपरीत स्थिति में (छोटी अँगुली के
आधारी भाग पर) आ जाता है। ग्लॉटिस की ऐंठन के कारण खर्गर होने लगती है। वयस्कों
में इस रोग के कारण हाथ-पैरों तथा मुख के चारों ओर झुनझुनी ( Tingling)
होने लगती है।
कभी-कभी हाथ-पैरों में कष्टकारी ऐंठन भी होती है। अव्यक्त टिटैनी (Latent
tetany) में रोगी में प्रत्यक्ष टिटैनी (Overt
tetany) के लक्षण प्रकट नहीं होते। ऐसी दशा में इस रोग की पहचान
ट्राउसियू के लक्षण (Trousseau's sign) से की जाती है।
इसके लिए स्फिग्मोमैनोमीटर (Sphygmomanometer) की कफ (Cuff) को रोगी की भुजा
में बाँधकर सिस्टोलिक रक्त दाब (Systolic blood pressure) से अधिक स्फीति (Inflation)
देते हैं जिसके
कारण तीन मिनट के अन्दर हाथ में ऐंठन (Carpal spasm) होने लगती है।
कैल्शियम ग्लूकोनेट का इन्जेक्शन देने से रोगी को आराम मिल जाता है।
(3) पेशीय
दुष्पोषण (Muscular Dystrophy)
पेशीय दुष्पोषण आनुवंशिक पेशी-विनाशक रोगों के एक समूह
को सन्दर्भित करता है जिनके कारण कंकालीय पेशी तन्तुओं का क्रमिक अपकर्षण (Progressive
degeneration) होता है। इस रोग में तन्त्रिका तन्त्र का आवेष्टन (Involvement)
नहीं होता।
क्षीणता (Wasting) एवं कमजोरी (Weakness) सममितीय होती है, पूलिकीयता (Fasciculation)
नहीं होती तथा
कंडरा अभिव्यक्ति (Tendon reflexes) लम्बी अवधि तक
बनी रहती है। दूशान पेशीय दुष्पोषण (Duchenne muscular dystrophy, DMD)पेशीय दुष्पोषण
का सर्वाधिक सामान्य रूप है। यह रोग केवल लड़कों में ही होता है क्योंकि इस रोग से
सम्बन्धित उत्परिवर्ती जीन X गुणसूत्र पर स्थित होती है तथा नर में केवल एक
ही X-गुणसूत्र पाया जाता है। यह व्यतिक्रम 2 से 5 वर्ष की आयु
में प्रकट हो जाता है तथा 12 वर्ष की आयु होते-होते रोगी चलने में असमर्थ हो जाता
है। 20 वर्ष की आयु तक श्वसनीय अथवा हृदयी असफलता के कारण रोगी की मृत्यु हो जाती
है।
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