मनुष्य में गति एवं प्रचलन ,पेशीय ऊतक | MOVEMENTS AND LOCOMOTION IN HUMANS
मनुष्य में गति एवं प्रचलन MOVEMENTS AND LOCOMOTION IN HUMANS
मनुष्य में गति एवं प्रचलन
शरीर में दो प्रकार की क्रियाएँ होती हैं-ऐच्छिक (Voluntary) तथा अनैच्छिक Involuntary)।
- ऐच्छिक क्रियाएँ हमारे संज्ञान तथा नियन्त्रण में होती हैं तथा अनैच्छिक क्रियाएँ हमारी इच्छा एवं संज्ञान के बिना अपने आप होती रहती हैं। श्वास क्रिया, पाचन क्रिया, हृदय स्पन्दन आदि ऐसी ही अनैच्छिक क्रियाएँ हैं। क्रिया चाहे ऐच्छिक हो या अनैच्छिक, इसका सीधा सम्बन्ध किसी न किसी प्रकार की गति (Movement) से होता है तथा गति के लिए पेशीय ऊतक (Muscular tissue) उत्तरदायी होता है।
- सामान्यतया पेशियों में आकुंचन (Flexion), प्रसारण (Extension), अपावर्तन (Abduction), अभिवर्तन (Adduction), घूर्णन (Rotation) तथा पर्यावर्तन (Circumduction) गतियाँ होती हैं। जैसा कि पूर्व में वर्णित किया जा चुका है, मनुष्यों में परिचलन पेशी तन्तुओं (Muscle fibres) की गति पर निर्भर करता है। हालांकि पेशी तन्तु स्वयं केवल छोटे हो सकते हैं परन्तु इन्हें विभिन्न विन्यासों (Configuration) एवं संयोजनों (Combinations) में व्यवस्थित करके किसी भी प्रकार की गति प्राप्त की जा सकती है।
पेशीय ऊतक [MUSCULAR TISSUE]
- नेत्रों की आइरिस (Iris) तथा सीलियरी काय (Ciliary body) की पेशियाँ जो बहिचर्मीय (Ectodermal) उत्पत्ति की होती हैं, को छोड़कर शरीर की समस्त पेशियाँ मध्यचर्म (Mesoderm) से बनती हैं। पेशी लम्बी, सँकरी एवं बेलनाकार अथवा तर्कुरूपी (Spindle shaped) पेशी कोशिकाओं की बनी होती है जिन्हें पेशी तन्तु (Muscle fibres) के नाम से जाना जाता है। पेशी तन्तु ही पेशियों की क्रियात्मक इकाई (Functional unit) होते हैं। ये पेशी तन्तु एक-दूसरे के समानान्तर व्यवस्थित होते हैं।
पेशियों के प्रकार (Types of Muscles)
पेशियों को निम्नलिखित तीन प्रकारों में बाँटा गया है-
(1) कंकालीय या रेखित या ऐच्छिक पेशी (Skeletal or striated or voluntary muscle)
(2) आन्तरांगीय या अरेखित या अनैच्छिक पेशी (Visceral or unstriated or involuntary muscle),
(3) हृदय पेशी (Cardiac muscle) ।
पेशीय ऊतक महत्वपूर्ण तथ्य
पेशीय ऊतक शरीर गतियाँ उत्पन्न करके, शरीर में पदार्थों को संचलित करके तथा शरीर के ताप को सामान्य बनाये रखने के लिए ऊष्मा उत्पन्न करके समस्थैतिकता (Homeostasis) में योगदान करता है।
(1) कंकालीय पेशियाँ (Skeletal Muscles)
- कंकालीय अथवा रेखीय पेशियों में प्रत्येक पेशी तन्तु संयोजी ऊतक के जाल तन्त्र से घिरा होता है जिसे एण्डोमाइसियम Endomycium) कहते हैं। अनेक पेशी तन्तु समानान्तर रूप से व्यवस्थित होकर गुच्छा (Fascicula) बनाते हैं। प्रत्येक गुच्छा तन्तुमय संयोजी ऊतक के आवरण से घिरा होता है जिसे पेरीमाइसियम (Perimycium) कहते हैं। पेशी के सभी गुच्छे संयोजी ऊतक के एक अन्य आवरण से घिरे होते हैं जिसे एपिमाइसियम (Epimycium) कहते हैं। पेशी के दोनों सिरों पर यही एपिमाइसियम कण्डरा (Tendon) का निर्माण करती है जो पेशियों को अस्थियों से जोड़ते हैं। पेशियों की एण्डोमाइसियम, पेरीमाइसियम तथा एपिमाइसियम में कोलैजेन, इलास्टिन, कहीं-कहीं रेटीकुलिन संयोजी ऊतक, फाइब्रोब्लास्ट्स कोशिकाएँ पायी जाती हैं।
कण्डरा तथा कण्डराकला (Tendons and Aponeuroses)-
- पेशियों के सिरे जो पेशियों को अस्थियों अथवा उपास्थियों से जोड़ते हैं, कण्डरा (Tendon) कहलाते हैं। ये सघन कोलैजेन तन्तुओं (Dense collagen fibres) से बनी संयोजी ऊतक की दृढ़, डोरीनुमा रचनाएँ होती हैं जो गहन फेशिया (Deep fascia) अथवा पेशी के बाहरी आवरण एपिमाइसियम का विस्तार हैं। इनमें लचीलापन नहीं होता। शरीर के कुछ भागों जैसे उदरीय भित्ति में, कण्डरा फैलकर चपटी परत (Flat sheet) का निर्माण करता है जिसे कण्डराकला (Aponeuroses) कहते हैं। ये कण्डराकलाएँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न पेशी आवरणों (Muscle sheaths) या अस्थ्यावरणों (Periosteum) से जुड़ी रहती हैं। जैसे पॉमर एपोन्यूरोसिस (Palmar aponeuroses) जो हथेली की त्वचा के नीचे पायी जाती है।
फेशिया (Fascia) -
यह तन्तुमय संयोजी ऊतक का बना आवरण होता है जो कंकालीय पेशियों को ढँकने तथा एक साथ बाँधे रखने का कार्य करता है। फेशिया सतही (Superficial) तथा गहन (Deep) दो प्रकार का होता है। सतही फेशिया (Superficial fascia) त्वचा के चर्म (Dermis) में गहराई में पायी जाती है; जैसे खोपड़ी (Scalp), हथेली तथा तलुवों में पायी जाने वाली फेशिया । इसकी मोटाई विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है। यह सामान्यतया ढीले संयोजी ऊतकों की बनी होती है जिसमें रक्त तथा लसिका वाहिकाएँ, तन्त्रिकाएँ तथा अनेक वसा कोशिकाएँ पायी जाती हैं। गहन फेशिया (Deep fascia) घने संयोजी ऊतक की कई पर्तों की बनी होती है तथा सतही फेशिया के नीचे स्थित होती है। यह पेशियों को लपेटती है तथा उन्हें बाँधती है। इसमें भी रक्त तथा लसिका वाहिकाएँ, तन्त्रिकाएँ तथा कुछ वसा कोशिकाएँ पायी जाती हैं।
कंकालीय पेशियों की स्थूल संरचना (Gross Structure of Skeletal Muscles)
- कंकालीय पेशियाँ विभिन्न आकृतियों में पायी जाती हैं; जैसे-फीताकार (Straplike), तर्कुरूपी (Fusiform), पंखनुमा (Pennate), वृत्ताकार (Circular) आदि। आमाप (Size) में ये छोटी, लम्बी या चौड़ी होती हैं। जैसे छोटी पेशियाँ पसलियों तथा कशेरुकाओं के मध्य, लम्बी पेशियाँ भुजाओं तथा टाँगों में तथा चौड़ी पेशियाँ धड़ में पायी जाती हैं। अधिकांश कंकालीय पेशियाँ मध्य में माँसल (Fleshy) तथा चौड़ी होती हैं जिसे तुन्दा (Belly) कहते हैं। ये पेशियाँ प्रायः कम से कम एक अस्थि-सन्धि के आर-पार इस सन्धि पर सन्धित किसी अस्थि से जुड़ी होती हैं। पेशी के एक सिरे की कण्डरा सन्धि पर अचल (Immovable) अस्थि से जुड़ी होती है तथा दूसरे सिरे की कण्डरा सन्धि पर चल (Movable) अस्थि से जुड़ी होती है। पेशी का अचल - अस्थि से जुड़ा सिरा इसका समीपस्थ (Proximal) सिरा होता है तथा इस सिरे को इसका उद्गम (Origin) कहते हैं। पेशी का चल अस्थि से जुड़ा सिरा इसका दूरस्थ (Distal) सिरा होता है तथा इस सिरे को इसका निवेशन (Insertion) कहते हैं।
पेशियों की क्रिया एवं गतियाँ (Actions and Movements of Muscles)
- कंकाल पेशियों का संकुचन केवल एक ही दिशा में इसके उद्गम की ओर होता है तथा इसके आकुंचन (Contraction) में ही बल होता है। शिथिलन (Relaxation) में नहीं। अतः कंकालीय पेशियाँ आकुंचनी (Flexor) तथा प्रसारक (Extensor) दो प्रकार की होती हैं जो एक-दूसरे के विपरीत कार्य करती हैं। अंगों को मोड़ने वाली पेशियाँ आकुंचनी तथा अंगों को फैलाने और सीधा करने वाली पेशियाँ प्रसारक होती हैं। किसी सन्धि में गति होने के लिए एक प्रकार की पेशियाँ संकुचित होती हैं, जबकि दूसरे वर्ग की पेशियाँ शिथिल होती हैं। इस प्रकार विभिन्न अंगों एवं भागों की गतियों के लिए पेशियों की प्रतिरोधी जोड़ियाँ (Antagonistic pairs) होती हैं। अपवर्तक पेशियाँ (Abductor muscles) अभिवर्तक पेशियों (Adductor muscles) की प्रतिरोधी होती हैं। इसी प्रकार भुजा में पायी जाने वाली बाइसेप्स ब्रैकाई (Biceps brachii) तथा ट्राइसेप्स ब्रैकाई (Triceps brachii) पेशियाँ प्रतिरोधी होती हैं। कुहनी पर हमारी बाँह बाइसेप्स के आकुंचन के कारण कन्धे की ओर उठती है। इस पेशी का उद्गम अंसमेखला की अंसफलक (Scapula) अस्थि पर होता है और निवेशन कुहनी के निकट बाँह की रेडियस (Radius) अस्थि पर। फिर बाँह को वापस गिराने का कार्य ट्राइसेप्स पेशी करती है जिसका उद्गम अंसफलक तथा ह्यूमरस (Humerus) अस्थि के शीर्ष भाग पर तथा निवेशन कुहनी के पश्च भाग में अल्ना (Ulna) अस्थि के सिरे पर होता है।
गतियों के प्रकार के आधार पर पेशियों को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-
(1) आकुंचनी पेशियाँ (Flexor muscles) -इन पेशियों के संकुचन से कंकालीय अवयवों के पास-पास आने के कारण अंग मुड़ते हैं।
(2) प्रसारक पेशियाँ (Extensor muscles) -इन पेशियों के संकुचन से कंकालीय अवयवों के दूर-दूर हो जाने के कारण अंग फैलते एवं सीधे होते हैं।
(3) अपवर्तनी पेशियाँ (Abductor muscles) -ये पेशियाँ किसी अस्थि को शरीर की मध्य रेखा की ओर खींचती हैं।
(4) अभिवर्तनी पेशियाँ (Adductor muscles) - ये पेशियाँ किसी अस्थि को शरीर की मध्य रेखा से दूर करती हैं।
(5) अपाकुंचक पेशियाँ (Protractor muscles) - ये किसी अंग के दूरस्थ भाग को आगे की तरफ खींचती हैं।
(6) आकुंचक पेशियाँ (Retractor muscles) -ये किसी अंग के दूरस्थ भाग को पीछे की तरफ खींचती हैं।
(7) उन्नयनी पेशियाँ (Levator muscles) -ये अस्थि को ऊपर की ओर ले जाती हैं।
(8) अवनमनी पेशियाँ (Depressor muscles) - ये अस्थि को नीचे की ओर लाती हैं। (9) उत्ताननी पेशियाँ (Supinator muscles) -ये कलाई पर हथेली को ऊपर की ओर घुमाती हैं।
(10) अवताननी पेशियाँ (Pronator muscles) - ये कलाई पर हथेली को नीचे की ओर घुमाती हैं।
(11) अवर्तनी पेशियाँ (Rotator muscles) -ये किसी अस्थि को उसके अनुलम्ब अक्ष पर चारों ओर घुमाती हैं।
(12) ताननी पेशियाँ (Tensor muscles) -ये शरीर के किसी भाग को दृढ़ या कठोर बनाती हैं।
(13) अवरोधिनी पेशियाँ (Sphincter muscles) - ये किसी छिद्र को सिकोड़ती हैं।
लाल एवं श्वेत पेशियाँ (Red and White Muscles)
कंकाल पेशियाँ दो प्रकार की होती हैं-लाल पेशियाँ (Red muscles) तथा श्वेत पेशियाँ (White muscles)।
लाल पेशियों (Red Muscles)-
- इस प्रकार की कंकाल पेशियों के पेशी तन्तुओं में लाल वर्णक मायोग्लोबिन (Myoglobin) को अत्यधिक मात्रा पायी जाती है। मायोग्लोबिन को अधिकता के कारण इन पेशियों का रंग अधिक लाल होता है। ये पेशी तन्तु पतले तथा छोटे आकार के होते हैं। मायोग्लोबिन ऑक्सीजन के साथ मिलकर ऑक्सीमायोग्लोबिन (Oxymyoglo bin) बनाती है जिसके कारण इनमें उपस्थित माइटोकॉण्ड्यिा को ऑक्सीजन को प्रचुर आपूर्ति होती है। इस प्रकार के पेशी तन्तुओं में संकुचन धीरे-धीरे परन्तु लम्बी अवधि के लिए होता है अतः इन्हें मन्दगति तन्तु (Slow fibres) भी कहते हैं। ये पेशी तन्तु शरीर की उन पेशियों में पाये जाते हैं जिनका सम्बन्ध धीमे परन्तु लम्बो अवधि के संकुचन से होता है। जैसे शरीर की संस्थित (Posture) बनाये रखने वाली पेशियाँ।
(2) श्वेत पेशियाँ (White muscles)-
इस प्रकार की कंकाल पेशियों के पेशी तन्तुओं में मायोग्लोबिन की मात्रा बहुत कम होती है। ये पेशी तन्तु लम्बे होते हैं तथा इनमें संकुचन तीव्र गति से परन्तु अल्प समय के लिये होता है अत: इन्हें द्रुतगति तन्तु (Fast fibres) भी कहते हैं। इन पेशियों में रक्त आपूर्ति लाल पेशियों की तुलना में कम होती है। परन्तु सार्कोप्लाज्मिक जाल (Sacroplasmic reticulum) बहुत व्यापक (Extensive) होता है। जल्दी-जल्दी काम करने या तेज दौड़ने आदि से सम्बन्धित शरीर के भागों की गति इन्हीं के संकुचन से होती है। जैसे नेत्रगोलक (Eyeball) में श्वेत पेशियाँ पायी जाती हैं।
पेशीय ऊतक महत्वपूर्ण तथ्य
- मृत्योपरान्त पेशियों का कठोर एवं असंकुचनशील हो जाना रिगर मॉर्टिस (Rigor mortis) कहलाता है।
- क्षमता से अधिक काम लेने से पेशी तन्तु क्रमशः मोटे हो जाते हैं इसे पेशीय अतिवृद्धि (Muscular hypertrophy) कहते हैं। इसके विपरीत पेशी को लम्बे समय तक काम में न लेने पर पेशी तन्तु पतले हो जाते हैं जिसे पेशीय क्षति (Muscular atrophy) कहते हैं।
- पोलियो विषाणु पेशियों को कमजोर बना देते हैं। इस विषाणुजनक पेशी रोग को पोलियो माइलाइटिस (Poliomyelitis)
- कँपकँपी (Shivering) कंकाल पेशियों के क्षणिक अनैच्छिक संकुचन से होती है।
- बालों की जड़ों से सम्बन्धित त्वचीय डर्मिस की अरेखित पेशियों को एरेक्टर पिलाई (Arrector pilli) कहते हैं।
Post a Comment