वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट 2023 प्रमुख तथ्य | ASER Details in Hindi
वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट 2023 प्रमुख तथ्य
वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट 2023 प्रमुख तथ्य
18वीं शिक्षा की
वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual
Status of Education Report - ASER) 2023 जारी की गई, जिसमें छात्रों
द्वारा की जाने वाली गतिविधियों, उनकी बुनियादी और व्यावहारिक पढ़ने तथा गणित क्षमताओं एवं
डिजिटल जागरूकता व कौशल पर चर्चा की गई।
शिक्षा की वार्षिक स्थिति
रिपोर्ट (ASER) क्या है?
- ASER एक वार्षिक, नागरिक-नेतृत्व वाला घरेलू सर्वेक्षण है जिसका उद्देश्य यह
समझना है कि ग्रामीण भारत में बच्चे स्कूल में नामांकित हैं या नहीं और क्या वे
सीख रहे हैं?
- ASER भारत के सभी ग्रामीण ज़िलों में वर्ष 2005 से प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है। यह भारत में नागरिकों के नेतृत्व वाला सबसे बड़ा सर्वेक्षण है।
- ASER सर्वेक्षण 3-16 वर्ष की आयु के बच्चों की नामांकन स्थिति और 5-16 वर्ष की आयु के बच्चों को राष्ट्रीय, राज्य तथा ज़िला स्तर पर बुनियादी शिक्षा एवं अंकगणितीय स्तर के प्रतिनिधि अनुमान उपलब्ध कराता है।
ASER 2023 की मुख्य बातें क्या हैं?
नामांकन दर:
- कुल मिलाकर, 14-18 वर्ष के 86.8% बच्चे किसी शैक्षणिक संस्थान में नामांकित हैं।
- हालाँकि उम्र के हिसाब से उल्लेखनीय अंतर दिखाई देता है, 14 साल के 3.9% और 18 साल के 32.6% बच्चों ने नामांकन नहीं कराया है।
- 14-18 आयु वर्ग के अधिकांश छात्र कला/मानविकी स्ट्रीम में नामांकित हैं, आधे से अधिक (55.7%) ग्यारहवीं कक्षा या उच्चतर में इस स्ट्रीम में पढ़ रहे हैं।
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science, Technology, Engineering, and Mathematics -STEM) स्ट्रीम में पुरुषों (36.3%) की तुलना में कम महिलाएँ केवल 5.6% ही व्यावसायिक प्रशिक्षण या संबंधित पाठ्यक्रम ले रहे हैं। व्यावसायिक प्रशिक्षण कॉलेज स्तर के छात्रों (16.2%) के बीच अधिक प्रचलित है।
- अधिकांश युवा छह महीने या उससे कम अवधि के अल्पावधि पाठ्यक्रम ले रहे हैं।
बुनियादी योग्यताएँ:
- लगभग 25% युवा अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा 2 स्तर का पाठ धाराप्रवाह नहीं पढ़ सकते हैं।
- आधे से अधिक लोग विभाजन की समस्याओं (3 अंक में से 1 अंक) से जूझते हैं, 14-18 वर्ष के केवल 43.3% बच्चे ही ऐसी समस्याओं को सही ढंग से हल कर पाते हैं।
- भाषा और अंकगणित कौशल:
- महिलाओं (76%) ने अपनी क्षेत्रीय भाषा में मानक II स्तर का पाठ पढ़ने में पुरुषों (70.9%) से बेहतर प्रदर्शन किया जबकि पुरुषों ने अंकगणित एवं अंग्रेज़ी पढ़ने में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
- केवल 57.3% अंग्रेज़ी में वाक्य पढ़ने में सक्षम थे तथा उनमें से लगभग तीन-चौथाई उनका अर्थ समझने में सक्षम थे।
डिजिटल जागरूकता और कौशल:
- कुल युवाओं में से लगभग 90% के पास घर में स्मार्टफोन है तथा 19.8% महिलाओं की तुलना में 43.7% पुरुषों के पास स्वयं का स्मार्टफोन है।
- पुरुष अमूमन डिजिटल कार्यों में महिलाओं से बेहतर प्रदर्शन करते हैं एवं शिक्षा स्तर व बुनियादी पढ़ने की दक्षता की सहायता से डिजिटल कार्यों में यह प्रदर्शन बेहतर हो सकता है।
मूलभूत संख्यात्मक कौशल:
- 14-18 आयु वर्ग के 50% से अधिक छात्रों को प्राथमिक विभाजन की समस्याओं का सामना करना पड़ता है तथा लगभग 45% को एक बच्चे के सोने व जागने के समय के आधार पर उसके सोने के घंटों की संख्या की गणना करने जैसे कार्यों में परेशानी का सामना करना पड़ता है।
- अपर्याप्त मूलभूत संख्यात्मक कौशल बजट प्रबंधन, छूट लागू करने तथा ब्याज दरों अथवा ऋण भुगतान की गणना सहित रोज़मर्रा की गणना में युवाओं की दक्षता में बाधा डालते हैं।
अनुशंसाएँ:
- 14-18 आयु वर्ग के लिये पहलों के कार्यान्वन पर ध्यान केंद्रित करने के साथ मूलभूत साक्षरता एवं संख्यात्मक कौशल में अंतराल को पाटने के लिये सरकारी प्रयासों की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 अकादमिक रूप से पिछड़े के लिये 'कैच-अप' (Catch-up) कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल देती है।
- न केवल शैक्षणिक प्रदर्शन के लिये अपितु उनकी दैनंदिन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये युवाओं के बीच मूलभूत साक्षरता तथा संख्यात्मक कौशल में सुधार लाने के उद्देश्य से पहल की आवश्यकता है।
डिजिटल शिक्षा:
स्मार्टफोन की उपलब्धता:
- लगभग 90% भारतीय युवाओं के पास अपने घर में स्मार्टफोन है तथा वे इसका उपयोग करना जानते हैं। यह इस जनसांख्यिकीय के बीच व्यापक डिजिटल कनेक्टिविटी को इंगित करता है।
डिजिटल साक्षरता में
लैंगिक अंतराल:
- डिजिटल साक्षरता में महत्त्वपूर्ण लैंगिक असमानता है। रिपोर्ट के अनुसार लड़कों की तुलना में लड़कियाँ स्मार्टफोन अथवा कंप्यूटर का उपयोग करने में कम दक्ष थी।
- लड़कों (43.7%) के पास स्वयं का स्मार्टफोन होने की संभावना लड़कियों (19.8%) की तुलना में दोगुनी से भी अधिक थी।
- निजी स्मार्टफोन स्वामित्व में एक उल्लेखनीय लैंगिक अंतराल है। लड़कों के पास अपना स्मार्टफोन होने की संभावना लड़कियों की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है।
- विभिन्न डिजिटल कार्यों में लड़कों ने लड़कियों से बेहतर प्रदर्शन किया।
ऑनलाइन सुरक्षा जागरूकता:
- लड़कियों की तुलना में लड़के ऑनलाइन सुरक्षा सेटिंग्स से अधिक परिचित हैं। यह ऑनलाइन सुरक्षा प्रथाओं में लड़कियों को शिक्षित तथा सशक्त बनाने के लिये लक्षित प्रयासों की आवश्यकता का सुझाव देता है।
शिक्षा के लिये
स्मार्टफोन का उपयोग:
- लगभग दो-तिहाई लोग शैक्षणिक उद्देश्यों के लिये स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, जैसे कि पढ़ाई से संबंधित ऑनलाइन वीडियो देखना, शंका समाधान करना या नोट्स का आदान-प्रदान करना।
मूल्यांकन के लिये सीमित
कनेक्टिविटी:
- हालाँकि सर्वेक्षण का उद्देश्य स्मार्टफोन का उपयोग करके डिजिटल कौशल का आकलन करना था, लेकिन सभी युवा अच्छी कनेक्टिविटी वाला स्मार्टफोन नहीं ला सकते थे। लड़कियों की तुलना में लड़कों द्वारा मूल्यांकन के लिये स्मार्टफोन लाने की अधिक संभावना थी, जो पहुँच में विसंगतियों का संकेत देता है।
गैर-नामांकित युवाओं के
बीच शैक्षणिक गतिविधियाँ:
- एक चौथाई गैर-नामांकित युवाओं ने अपने स्मार्टफोन पर शैक्षणिक गतिविधियों में संलग्न होने की सूचना दी, जो औपचारिक शैक्षणिक व्यवस्था के बाहर सीखने में सहायता में डिजिटल उपकरणों की भूमिका पर बल देते हैं।
भारत में प्रारंभिक शिक्षा के सामने आने वाली समस्याएँ
स्कूल का बुनियादी ढाँचा
और सुविधाएँ:
- प्रतिधारण दर (Retention rates) में सुधार के बावजूद, स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता को लेकर चिंताएँ हैं। जबकि 95% स्कूलों में पीने का पानी और शौचालय की व्यवस्था है, 10% से अधिक स्कूलों में बिजली की व्यवस्था का अभाव है।
- इसके अतिरिक्त, डिजिटलीकरण की कमी है, 60% से अधिक स्कूलों में कंप्यूटर की कमी है और 90% में इंटरनेट सुविधाओं तक पहुँच नहीं है।
निजी स्कूलों की ओर
बदलाव:
- पिछले कुछ वर्षों में, निजी स्कूलों की ओर रुझान बढ़ा है। सरकारी डेटा इंगित करता है कि प्राथमिक श्रेणी में सरकारी स्कूलों की हिस्सेदारी वर्ष 2006 में 87% से घटकर मार्च 2020 में 62% हो गई है।
शिक्षक की कमी और
गुणवत्ता:
- स्कूलों में शिक्षकों की कमी है और छात्र-शिक्षक अनुपात(student-teacher ratio) अधिक है। संविदा शिक्षकों पर निर्भरता देखी गई है और बड़े पैमाने पर शिक्षकों की अनुपस्थिति है।
- शिक्षा की गुणवत्ता अलग-अलग होती है, जिसमें अच्छी तरह से वित्त पोषित, औपचारिक स्कूलों और अल्प-संसाधन वाले, अनौपचारिक स्कूलों के बीच स्पष्ट विभाजन होता है।
सामाजिक विभाजन:
- जाति-वर्ग, ग्रामीण-शहरी, धार्मिक और लैंगिक विभाजन सहित सामाजिक विभाजन मौजूद हैं, जो प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं।
भारत बुनियादी शिक्षा को
कैसे बढ़ावा दे सकता है?
वित्त तथा संसाधन आवंटन
में वृद्धि:
- सरकार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 में उल्लिखित सकल घरेलू उत्पाद के अनुशंसित दिशा में 6% आगे बढ़ते हुए शिक्षा के लिये अधिक धन आवंटित करना चाहिये।
- बुनियादी ढाँचे के विकास, शिक्षक प्रशिक्षण और स्कूलों में आवश्यक सुविधाओं के प्रावधान के लिये वित्त पोषण को प्राथमिकता देना।
शिक्षक भर्ती एवं
प्रशिक्षणः
- उच्च छात्र-शिक्षक अनुपात को कम करने के लिये पर्याप्त संख्या में योग्य शिक्षकों की भर्ती एवं प्रशिक्षण करना।
- शिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु निरंतर व्यावसायिक विकास के लिये कार्यक्रम लागू करना।
ड्रॉपआउट दरों को संबोधित
करना:
- सामाजिक-आर्थिक कारकों, बुनियादी ढाँचे की कमी और शिक्षा की गुणवत्ता सहित छात्रों के स्कूल छोड़ने के मूल कारणों की पहचान करें तथा उनका समाधान करें।
- छात्र प्रतिधारण को प्रोत्साहित करने के लिये छात्रवृत्ति कार्यक्रम और परामर्श पहल जैसे लक्षित हस्तक्षेप लागू करें।
बुनियादी ढाँचे का विकास:
- स्कूल के बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करें, यह सुनिश्चित करें कि सभी स्कूलों में बिजली, स्वच्छ पेयजल और उचित स्वच्छता सुविधाएँ जैसी बुनियादी सुविधाएँ हों।
- स्कूलों को कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा प्रदान करके शिक्षा में प्रौद्योगिकी के एकीकरण को बढ़ावा देना।
शिक्षा की गुणवत्ता पर
ध्यान देना:
- घूर्णी याद करने की तुलना में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के महत्त्व पर ज़ोर दें।
- बाल-केंद्रित शिक्षण विधियों और मूल्यांकन रणनीतियों को लागू करें जो महत्त्वपूर्ण सोच तथा समस्या-समाधान कौशल को प्रोत्साहित करें।
जाँचना और परखना:
- शिक्षा नीतियों और हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये मज़बूत निगरानी तथा मूल्यांकन तंत्र स्थापित करें।
- सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने और तदनुसार रणनीतियों को समायोजित करने के लिये डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि का उपयोग करें।
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