सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) की श्रेणी में 1983 में शामिल किया गया ।
आगरा का किला
उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थित है। आगरा के किले को कभी-कभी लाल किला भी कहा जाता
है। न सिर्फ लाल रंग, बल्कि दिल्ली
स्थित लाल किले से इसकी वास्तुशिल्प शैली और डिजाइन भी काफी मिलती है। दोनों ही
किले का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है।। यह मूलतः एक ईंटों का किला था, जो सिकरवार वंश के राजपूतों के पास था। इसका
प्रथम विवरण 1080 ई० में आता है, जब महमूद गजनवी
की सेना ने इस पर कब्ज़ा किया था।
आगरा का किला ( Agra Fort)
सिकंदर लोदी (1487-1517), दिल्ली सल्तनत का
प्रथम सुल्तान था जिसने आगरा की यात्रा की तथा इसने इस किले की मरम्म्त 1504 ई० में करवायी व
इस किले में रहा था। सिकंदर लोदी ने इसे 1506 ई० में राजधानी बनाया और यहीं से देश पर शासन किया। बाद
में उसके पुत्र इब्राहिम लोदी ने गद्दी नौ वर्षों तक संभाली,पानीपत के बाद
मुगलों ने इस किले पर भी कब्ज़ा कर लिया साथ ही इसकी अगाध सम्पत्ति पर भी। इस
सम्पत्ति में ही एक हीरा भी था जो कि बाद में कोहिनूर हीरा के नाम से प्रसिद्ध
हुआ। तब इस किले में इब्राहिम के स्थान पर बाबर आया। उसने यहां एक बावली बनवायी।
सन 1530 में यहीं
हुमायुं का राजतिलक भी हुआ। हुमायुं इसी वर्ष बिलग्राम में शेरशाह सूरी से हार गया
व किले पर उसका कब्ज़ा हो गया। इस किले पर अफगानों का कब्ज़ा पांच वर्षों तक रहा, जिन्हें अन्ततः
मुगलों ने 1556 में पानीपत का
द्वितीय युद्ध में हरा दिया।
इस की केन्द्रीय
स्थिति को देखते हुए, अकबर ने इसे अपनी
राजधानी बनाना निश्चित किया व सन 1558 में यहां आया। उसके इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा है कि यह
किला एक ईंटों का किला था,
जिसका नाम
बादलगढ़ था। यह तब खस्ता हालत में था व अकबर को इसे दोबारा बनवाना पड़ा, जो कि उसने लाल
बलुआ पत्थर से निर्माण करवाया। इसकी नींव बड़े वास्तुकारों ने रखी। इसे अंदर से
ईंटों से बनवाया गया, व बाहरी आवरण
हेतु लाल बलुआ पत्तह्र लगवाया गया। इसके निर्माण में चौदह लाख चवालीस हजार कारीगर
व मजदूरों ने आठ वर्षों तक मेहनत की, तब सन 1573 में यह बन कर तैयार हुआ। इस किले को अर्धचन्द्राकार आकृति
में बनाया गया है और यह यमुना नदी के सामने स्थित है। इसमें परकोटे हैं, जिनके बीच भारी
बुर्ज बराबर अंतराल है।
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