गरौंली राज्य का इतिहास | Garoli Rajya History in Hindi
गरौंली राज्य का इतिहास (Garoli Rajya History in Hindi)
गरौंली राज्य :
- गरौली का भौगोलिक क्षेत्र नौगाँव के समीप धसान नदी के किनारे पलेरा क्षेत्र में स्थित है। यह क्षेत्र पूर्व में ओरछा एवं बाद में पन्ना राज्य का हिस्सा था। इस प्रकार यह एक बुंदेला राज्य था। 18वीं सदी के अंत में यहाँ उदयादित्य के वंशज एवं भगवंत सिंह के पुत्र गोपालसिंह ने इस क्षेत्र में भारी लूटपाट मचाई थी ।
- तत्कालीन पन्ना नरेश किशोर सिंह तथा अजयगढ़ के राजा बख्तसिंह ने गोपाल सिंह को शांत करने के उद्देश्य से उसे कोटरा की जागीर दे दी। हालाँकि जब 1807 ई. में ही अजयगढ़ के शासक ने अंग्रेजों के साथ इकरारनामा किया और उनसे सनद प्राप्त की तो उसने चालाकी से कोटरा को अपने राज्य में दर्शा दिया, जिससे गोपालसिंह पुनः क्रुद्ध हो गया और उसने डंगई क्षेत्र में फिर लूटपाट मचानी प्रारंभ कर दी। फलतः अंग्रेजों ने हस्तक्षेप करते हुए पन्ना, अजयगढ़ एवं जसौ राज्यों के शासकों की सहमति से गरौंली की जागीर गोपालसिंह को दिलवा दी।
- गोपालसिंह ने तत्काल ही अपनी जागीर की सुरक्षा का प्रबंध करने के दृष्टिकोण से अंग्रेजों के साथ संबंध स्थापित किये तथा बुंदेलखण्ड में ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के प्रतिनिधि जॉन रिचर्डसन से 24 फरवरी, 1812 ई. को एक समझौता कर लिया, जिसमें उसने अंग्रेजों को वायदा किया कि -
1. वह अथवा उसके वंशज अब भविष्य में लूटपाट एवं डाकाजनी नहीं करेंगे।
2 वह कभी-भी चोरों एवं डाकुओं के साथ संपर्क नहीं रखेगा।
3. वह कभी-भी चोरों एवं डाकुओं को अपने राज्य में शरण नहीं देगा।
4. वह अपने राज्य में स्थित कंपनी सरकार के भगोड़े अपराधियों को पकड़कर कंपनी सरकार को सौंप देगा।
5. वह कंपनी सरकार की अनुमति के बगैर राज्य के बाहर नहीं जायेगा।
6. उसका एक विश्वस्त साथी
सदैव कंपनी सरकार के सेवा में रहेगा।
- कंपनी सरकार ने उक्त शर्तों के पालन के आधार पर फरवरी, 1812 में गरौंली राज्य की सनद गोपाल सिंह को प्रदान कर दी। इस राज्य में गरौली के अलावा करतौल, रानीपुरा, कनौरा, सितौरा, अमानपुर, रिछौरा, भड़यापुरा, कुदवारों, लछनियाँ, सिलारपुर, पड़रिया, पठरया, पचवारा, सिलाहट बहोर, गंजकरारा एवं भटौरा आदि 17 गाँव शामिल किये गये ।
- अंग्रेजों के साथ हुए इस समझौते को पन्ना नरेश किशोर सिंह ने चुनौती देते हुये अपील की कि क्योंकि गरौंली का क्षेत्र पन्ना राज्य का एक हिस्सा था अतः वह उसे वापस मिलना चाहिये, किंतु अंग्रेजों ने उसकी दलीलों को ठुकरा दिया तथा अंतिम रूप से गरौली का क्षेत्र गोपाल सिंह के पास रहने दिया गया।
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