खनियाधाना बुंदेलखण्ड के पश्चिम में स्थित था। वर्तमान में यह शिवपुरी जिले के अंतर्गत आता है। इसे जागीर के रूप में सर्वप्रथम ओरछा नरेश उदोतसिंह ने 1724 ई. में अपने पुत्र अमरसिंह, जो अमरेश के नाम से जाने जाते थे, को प्रदान की थीं। इस जागीर में कुल 49 गाँव थे तथा इसका वार्षिक राजस्व 120000 रु. था। अमरेश ने 1724 से 1751 ई. तक खनियाधाना पर एक जागीरदार के रूप में कार्य किया। 1751 ई. में मराठा पेशवा बालाजी बाजीराव ने खनियाधाना को एक स्वतंत्र राज्य की सनद जारी कर दी। इस प्रकार खनियाधाना एक बुंदेला राज्य के रूप में स्थापित हुआ। अमरेश को अपने काल में मराठों के कई आक्रमणों का सामना करना पड़ा था, बाद में उसने मराठों के प्रभाव को स्वीकार कर लिया। उसने ओरछा राज्य के अंतर्गत आने वाले मोहनगढ़ इलाके पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। अमरेश के तीन पुत्रों में से एक मान सिंह को ओरछेश महारानी ने गोद लेकर ओरछा का राजा बनाया था। जबकि ज्येष्ठ पुत्र महाराज सिंह अपने पिता की मृत्यु होने पर खनियाधाना के राजा बने। महाराज सिंह ने 1772 से 1806 ई. तक कुल 34 वर्ष तक शासन किया था। इसके शासनकाल में ओरछेश विक्रमाजीत के कामदार माखन खाँ ने मोहनगढ़ दुर्ग पर आक्रमण कर महाराज सिंह को वहाँ से खदेड़ दिया था। महाराज सिंह की लूटपाट संबंधी प्रवृति एवं अराजक गतिविधियों ने ओरछेश को यह कार्यवाही करने के लिये विवश कर दिया था। महाराज सिंह के बाद खनियाधाना की गद्दी पर उनका पुत्र जवाहर सिंह बैठा। अपने पूर्वजों की भाँति जवाहर सिंह का कार्यकाल भी साधारण रहा।
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