मध्यकालीन बघेलखण्ड (13वीं सदी से 1809 ई. तक) | Baghelkhand History

 मध्यकालीन बघेलखण्ड (13वीं सदी से 1809 ई. तक)

मध्यकालीन बघेलखण्ड (13वीं सदी से 1809 ई. तक) | Baghelkhand History
 

 मध्यकालीन बघेलखण्ड (13वीं सदी से 1809 ई. तक)  

  • आदिकाल से ही बघेलखण्ड का समस्त भू-भाग पहाड़ों, घाटियों और कंदराओं से युक्त था और लगभग पूरा क्षेत्र घनघोर जंगलों से आच्छादित रहा है। इसलिए यहाँ के जंगलों में विभिन्न प्रकार के वन्य प्राणी विचरण करते थे। इस क्षेत्र में प्राचीन धार्मिक स्थल के रूप में अमरकंटक स्थित है, जहाँ पर नर्मदा नदी का उद्गम है। नर्मदा नदी को पुराणों में 'रेवा' नाम से अंकित किया गया है और इस क्षेत्र को 'रेवाखण्ड' लिखा गया है। इसी 'रेवा' से रीवा (Rewa) नामक नगर बसाकर बघेल राजा विक्रमाजीत (1605-1624ई) ने वहाँ अपनी राजधानी स्थापित की थी।

 

बघेलखण्ड भौगोलिक स्थिति, सीमा और संरचना 

  • बघेलखण्ड 22.30° और 25.12° उत्तरी अक्षांशा तथा 80.32° और 82.51° पूर्वी देशांतर के मध्य स्थिीत है। 16वीं शताब्दी में जब बघेल-सत्ता अपने पूर्ण उत्थान पर थी, उस समय बघेलखण्ड के अन्तर्गत रीवा, मैहर, नागौद, सोहावल, कोठी, जसो, बरौंधा और मध्य भारत के बघेलखण्ड-एजेन्सी की पाँच चौबों की जागीरें शामिल थीं।

 

प्राकृतिक दृष्टि से बघेलखण्ड तीन भागों में विभाजित है - 

(1) तरिहार 

  • तरिहार का शाब्दिक अर्थ है निचला मैदान। यह भू-भाग विन्ध्य पहाड़ के ठीक उत्तर में स्थित है। जिसका उत्तरी सिरा गंगा - यमुना के मैदान से मिला हुआ है। इसकी लम्बाई पूर्व से पश्चिम की ओर लगभग 40 मील और चौड़ाई उत्तर से दक्षिण लगभग 20 मील है। अर्थात् इसका कुल क्षेत्रफल 800 वर्गमील के लगभग है। यह क्षेत्र निचला होने के कारण तरिहार कहलाता है। इस क्षेत्र में बहने वाली प्रमुख दो नदियाँ टमस और महाना है, जो अपनी सहायक नदियों के साथ इस क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा प्रदान करती हैं और पठारी क्षेत्र में पहुँचकर जल प्रपात बनाती हैं। इस क्षेत्र में गिंजवा और लताड़ नामक दो पहाड़ियाँ भी हैं, जिनकी उँचाई क्रमशः 1328 फीट और 1378 फीट है। विन्ध्य क्षेत्र के इतिहासविद् प्रो. निजामी के अनुसार तरिहार उत्तर में गंगा यमुना के संगम से लेकर दक्षिण में विन्झ पर्वत तक और पश्चिम में केन नदी से लेकर पूर्व में सोन नदी तक विस्तृत है। 

(2) उपरिहार 

  • उपरिहार का तात्पर्य है ऊँचा मैदान। विन्ध्य और कैमोर पर्वत के मध्य का भू-भाग उपरिहार कहलाता है। यह पूर्व से पश्चिम लगभग 100 मील लम्बा और उत्तर से दक्षिण लगभग 40 मील चौड़ा क्षेत्र है। उपरिहार एक समतल पठार है, जो उच्च प्रदेशों और पहाड़ियों से वर्षा के द्वारा बहकर आने वाली 'रमन' से उर्वरा मैदान बन गया है। यह दक्षिण में कैमोर से उत्तर में विन्ध्य की ओर ढालू है। इसमें टमस और उसकी सहायक नदियाँ बहती हैं। प्रमुख जल प्रपात भी इसी क्षेत्र में हैं, जैसे - टमस नदी से पूरवा, बीहर नदी से चचाई, महाना नदी से क्योटी और ओड्डा नदी से बहुती जल प्रपात। 
  • कैमोर की पर्वत श्रेणियाँ जबलपुर जिले से प्रारम्भ होकर पूर्व में बिहार के सासाराम तक जाती हुई सोन और टमस नदी की घाटियों को पृथक करती हैं। कैमोर की उत्तरी भुजा (विन्ध्य) पन्ना की नर्वत श्रेणियों से मिलकर बाँदा होते हुए मिर्जापुर के विन्ध्याचल में समाप्त हो जाती है।

 

(3) पहार-डहार 

  • कैमोर पर्वत के दक्षिण का भू-भाग, जो पूर्णतः पहाड़ों, जंगलों और प्राकृतिक दृश्यों से भरा पड़ा है, पहार-उहार के नाम से जाना जाता है। इसका क्षेत्रफल लगभग 8422 वर्गमील है। इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ सोन, नर्मदा और जोहिला हैं। पवित्र तीर्थ स्थल अमरकंटक भी इसी क्षेत्र में स्थित हैं। 
  • अमरकंटक से निर्गत होकर नर्मदा नदी कपिलधारा और दुग्धधारा नामक दो जल प्रपात निर्मित करती है। वास्तव में अमरकंटक एक रमणीय स्थल है। यहाँ पर सोनमूड़ा, माई की बगिया जैसे कई मनमोहक दृश्य हैं। 
  • कैमोर पर्वत के समानान्तर दक्षिणी ओर कई पर्वत श्रेणियाँ है, जिनमें विन्ध्याचल की निचली श्रेणी केहेंजुआ भी है। इन्हीं पर्वत श्रृंखलाओं के ऊपर बांधौगिरि है, जिसमें बान्धवगढ़ दुर्ग अवस्थित है। सुदूर दक्षिण में मैकल पर्वत श्रेणियाँ है, जो विन्ध्याचल और सतपुड़ा को मिलाती है।

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