तन्त्रिका आवेग क्या होते हैं | Nerve Impulse Details in Hindi
तन्त्रिका आवेग क्या होते हैं
तन्त्रिका आवेग क्या होते हैं
प्रोसर (Prosser) के मतानुसार:-
'तन्त्रिका आवेग किसी उद्दीपन के फलस्वरूप तन्त्रिका कोशिका या एक्सॉन भाग में होने वाली भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं का वह योग है, जो तन्त्रिका तन्तु में एक क्रियात्मक तरंग उत्पन्न करता है।'
- जब कभी कोई तन्त्रिका न्यूनतम उद्दीपन को ग्रहण करती है, तो इससे उत्तेजना (excitation) या संवेदना (stimulation) उत्पन्न होती है।
- सामान्यतया तन्त्रिका आवेग केवल एक ही दिशा में गमन करता है, परन्तु दिशा किसी भी ओर हो सकती है। जेम्स के अप्रगामी संवहन नियम (law of forward conduction) के अनुसार, यदि किसी तन्त्रिका को मध्य से उत्तेजित किया जाए, तो तन्त्रिका आवेग एक विद्युत तरंग (electric wave) के रूप में तन्त्रिका के दोनों सिरों की ओर संवहन दर्शाता है।
- तन्त्रिका आवेग 'आल या नन' (all or none) सिद्धान्त के अनुसार, कार्य करता है अर्थात् प्रारम्भ होने के पश्चात् तन्त्रिका आवेग की गति उद्दीपन की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है, जब किसी न्यूरॉन को सीमात्मक उद्दीपन या उससे अधिक मान का उद्दीपन मिलता है, तो वह न्यूरॉन अपनी पूर्ण क्षमतानुसार उत्तेजना प्रदर्शित करता है, परन्तु उद्दीपन अपर्याप्त होने पर कोई उत्तेजना नहीं होती है।
तन्त्रिका आवेग का प्रेषण (Conduction of Nerve Impulse)
- न्यूरॉन का एक्सॉन एक खोखले बेलन के समान होता है, जिसमें उपस्थित कोशिकाद्रव्य एक्सोप्लाज्म कहलाता है। एक्सॉन के चारों ओर उपस्थित प्लाज्मा झिल्ली एक्सोलेमा कहलाती है। यह लिपोप्रोटीन की बनी होती है तथा 100 Å मोटी होती है। इस एक्सोलेमा पर अनेक 7-10 Å व्यास के छिद्र उपस्थित रहते हैं, जिनसे जल एवं अन्य पदार्थ आसानी से विनिमय कर जाते हैं अर्थात् एक्सोलेमा एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली (semipermeable membrane) की भाँति कार्य करती है।
- तन्त्रिका तन्तु पर तन्त्रिका आवेग का प्रेषण 'झिल्ली सिद्धान्त' (membrane theory) द्वारा समझाया जा सकता है। इस सिद्धान्त के अनुसार, तन्त्रिका आवेग का चालन एक विद्युत रासायनिक (electrochemical) घटना है, जिसके अन्तर्गत विद्युत विभव (electrical potential) का रासायनिक विभव में परिवर्तन होता है। अन्य कोशिकाओं के समान तन्त्रिका कोशिकाएँ अर्थात् न्यूरॉन भी तरल माध्यम में उपस्थित होती है। यह तरल माध्यम अन्तराली द्रव (interstitial fluid) कहलाता है।
तन्त्रिका आवेग के उत्पादन के प्रेषण को निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता है।
विराम कला विभव Resting Membrane Potential
जब तन्त्रिका आवेग का संचरण नहीं होता है, तब एक्सॉन का बाहरी तल, भीतरी तल की अपेक्षा अधिक धन विद्युती होता है। इस तरह एक्सोलेमा के दोनों ओर पाए जाने वाला आवेग का अन्तर विभवान्तर (potential difference) कहलाता है।
यह अन्तर झिल्ली के दोनों ओर सोडियम व पोटैशियम आयन (Na* व K+) के असमान वितरण के कारण होता है।
- विश्रामावस्था में Na+ सक्रिय रूप से तन्त्रिका तन्तु के अन्दर उपस्थित एक्सोप्लाज्म से बाहर अन्तरालीय द्रव की ओर प्रवाहित होते रहते हैं। इसे सोडियम पम्प कहते हैं। इसके फलस्वरूप बाहर की तरफ इनकी सान्द्रता लगभग 10 गुणा अधिक एवं अन्दर की ओर कम होती है। इस प्रकार एक्सोप्लाज्म में उपस्थित K+ की सान्द्रता बाहर अन्तरालीय द्रव से लगभग 30 गुना अधिक होती है। इसी के साथ न्यूरॉन के कोशिकाद्रव्य में अनेक CI उपस्थित रहते हैं, जो 'प्लाज्मा झिल्ली से विसरित नहीं हो पाते हैं अथवा बहुत ही कम मात्रा में विसरित होते हैं।' सोडियम आयन (Na) की उपस्थिति के कारण एक्सोलेमा की बाहरी सतह पर धन आवेश (positive charge) होता है तथा अन्दर की ओर क्लोराइड आयन (CI) की उपस्थिति के कारण ऋण आवेश (negative charge) उपस्थित होता है। यद्यपि बाहरी. अन्तरालीय द्रव से K' लगातार अन्दर की ओर प्रवेश करते रहते हैं, परन्तु ये एक्सोप्लाज्म में उपस्थित CI आयन को उदासीन नहीं कर पाते हैं तथा अन्दर की ओर कुल आवेश ऋणात्मक बना रहता है। इस तरह से चालन न करने वाले न्यूरॉन के बाहरी एवं भीतरी तलों पर आवेश में जो परिशुद्ध अन्तर होता है, उसे विराम कला विभव (resting membrane potential) कहते हैं। विभिन्न जन्तुओं में विराम कला विभव का मान अलग-अलग होता है।
सक्रिय कला विभव Active Membrane Potential
- जब एक्सॉन को कोई भी यान्त्रिक या विद्युत उद्दीपन मिलता है, तो एक्सोलेमा तुरन्त ही अध्रुवित (depolarised) हो जाती है, जिससे पोटैशियम पम्प बन्द हो जाता है। इस स्थिति में एक्सॉन भित्ति की पारगम्यता (permeability) सोडियम आयनों (Na+) के लिए अचानक बढ़ जाती है। यह वृद्धि पोटैशियम आयनों की अपेक्षा 10 गुना अधिक होती है, जिससे सोडियम आयन बाहर उपस्थित अन्तरालीय द्रव से अन्दर एक्सोप्लाज्म में विसरित होना प्रारम्भ करते हैं। सोडियम आयनों का गमन अन्दर की ओर इतना अधिक होता है, कि एक्सॉन भित्ति न केवल अध्रुवीय होती है, अपितु यह अन्दर की ओर धनावेशित हो जाती है। इस प्रकार प्राप्त स्थिति विश्रामावस्था के ठीक विपरीत होती है तथा इसे उत्क्रम विभव (reversible - potential) या उत्क्रम ध्रुवीयकरण अर्थात् विध्रुवण (depolarisation) कहते हैं।
- इस स्थिति में विराम कला विभव उस स्थान पर लुप्त हो जाता है तथा एक नया विभव उत्पन्न होता है. जो सक्रिय कला विभव कहलाता है। इस क्रिया में पूर्व विभव प्लाज्मा झिल्ली के अन्दर की सतह की ओर 70mV से शून्य की ओर होता है। इस स्थिति में विभव के आने पर ही इसे विध्रुवीय कहा जाता है। इसके पश्चात् यह विभव सोडियम आयन्स के लगातार अन्दर प्रवेश करने के कारण बढ़ता रहता है तथा बढ़कर + 30mV हो जाता है। अतः एक्सोलेमा पर सक्रिय कला विभव + 30mV के बराबर होता है।
- यह परिवर्तन केवल 0.001 सेकण्ड के लिए ही होता है तथा एक्सोलेमा के एक बहुत ही छोटे भाग पर उत्पन्न होता है। इसी के साथ न्यूरॉन का शेष भाग पूर्व की तरह विराम कला विभव अर्थात् ध्रुवीय अवस्था में ही रहता है।
पुनःध्रुवण Repolarisation
- विध्रुवण की क्रिया के सम्पन्न हो जाने के पश्चात् सोडियम आयन (Na+) अधिकाधिक मात्रा में अन्तरालीय द्रव से एक्सोप्लाज्म के अन्दर नहीं स जा पाते किन्तु बहुत अधिक संख्या में पोटैशियम आयन (K) एक्सोलेमा द्वारा बाहर की ओर जाना आरम्भ कर देते हैं। धनात्मक आवेग के लगातार बाहर की ओर जाने पर एक्सोलेमा भीतर की ओर ऋणात्मक तथा बाहर की ओर धनात्मक होता जाता है। इस प्रकार न्यूरॉन की प्लाज्मा झिल्ली पुनः अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है, यह क्रिया पुनः ध्रुवण कहलाती है। इस समय कला विभव का मान - 70 से 85mV होता है।
मायलीकृत तन्त्रिका तन्तु में आवेग प्रेषण
- मायलीन आच्छद (myelin sheath) लिपिड की बनी एक झिल्ली होती है, जिसमें उच्च विद्युत प्रतिरोधकता (high electric resistance) पायी जाती है, जिस कारण से यह एक अत्यन्त प्रभावशाली अवरोधक के समान कार्य करती है। इस आच्छद के कारण विद्युत उत्तेजनशील एक्सॉन की कला का बाह्य वातावरण से सम्पर्क रेनवियर की पर्व सन्धियों पर सीमित हो जाता है। आवेग मायलीन युक्त तन्तुओं में एक पर्व सन्धि से दूसरी पर्व सन्धि पर कूदती हुई आगे बढ़ती है, जबकि मायलीन रहित तन्तुओं में सतत् तरंग की तरह प्रेषित होती है। आवेग का एक पर्व सन्धि से दूसरी पर्व सन्धि पर इस प्रकार प्रेषण वल्गी चालन (saltatory action) कहलाता है। इस चालन में सोडियम आयन (Na+) के प्रवेश से उत्पन्न विध्रुवीय तरंग पर्व सन्धि पर ही सीमित रहती है, परन्तु सम्पूर्ण व पर्व की लम्बाई पर स्थानीय परिपथ क्रिया (local circuit action) के कारण विध्रुवीकरण हो जाता है। मायलीन आच्छद तन्त्रिका आवेग की गति को तीव्र करता है एवं संलग्न तन्तुओं में आवेग क्षय को रोकता है।
- रेनवियर पर्व सन्धि पर स्थित झिल्ली 500 गुणा अधिक पारगम्य होती है। किसी भी मायलीन युक्त तन्त्रिका तन्तु में आवेग का संचारण मायलीने रहित एक्सॉन में, तन्तु का व्यास अधिक होने पर आन्तरिक प्रतिरोधकता कम हो जाती है, जिससे प्रेषण वेग (conduction velocity) अधिक होती है।
सिनैप्स एवं सिनैप्टिक प्रेषण (Synapse and Synaptic Transmission)
सिनैप्स एवं सिनैप्टिक प्रेषण (Synapse and Synaptic Transmission)
- तन्त्रिका तन्त्र में न्यूरॉन्स सदैव रेखीय या शाखित अनुक्रम में पाए जाते हैं। दो निरन्तर पाए जाने वाले न्यूरॉन्स के मध्य की सन्धि को सिनैप्स कहते हैं। सिनैप्स एक ऐसा स्थान है, जहाँ पर एक न्यूरॉन समाप्त होता है तथा दूसरा न्यूरॉन प्रारम्भ होता है अर्थात् सिनैप्स एक ऐसी जगह है, जहाँ दो न्यूरॉन्स एक-दूसरे से क्रियात्मक रूप से जुड़े रहते हैं। शरीर में उपस्थित अधिकांश सिनैप्स एक न्यूरॉन के एक्सॉन तथा दूसरे न्यूरॉन के डेन्ड्राइट के मध्य उपस्थित रहते हैं।
- न्यूरॉन के एक्सॉन सिरे या बटन अर्थात् प्रिसिनैप्टिक सिरे (presynaptic knob) के रूप में समाप्त होते हैं। इस प्रकार एक्सॉन के अन्तिम सिरे की झिल्ली को प्रिसिनैप्टिक झिल्ली (presynaptic membrane) कहते हैं एवं सिनैप्स के दूसरी ओर स्थित न्यूरॉन के डेन्ड्राइट या साइटॉन की झिल्ली को पोस्ट-सिनैप्टिक झिल्ली (postsynaptic membrane) कहते हैं। सिनैप्टिक विदर द्वारा दोनों झिल्लियाँ अलग-अलग रहती हैं। इसमें ऊतकीय द्रव भरा होता है। यह विदर 200-400 Å दूरी का स्थान होता है। सिनैप्टिक घुण्डी का आकार लगभग 0.5-2.0 µ होता है। प्रिसिनैप्टिक घुण्डी में सिनैप्टिक आशय उचित मात्रा में उपस्थित होते हैं, जिसमें प्रमुख रूप से एसीटाइलकोलीन नामक रासायनिक पदार्थ होता है, जो रासायनिक प्रेषी पदार्थ (chemical transmitter) की तरह कार्य करता है। इससे तन्त्रिका आवेग एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक प्रेषित किया जाता है।
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