बुंदेलखंड में विभिन्न धर्मों को मानने वाले मतावलंबी रहते थे। इनमें हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध , इस्लाम धर्म प्रमुख थे। बाद में भारत पर अंग्रेजों के आधिपत्य के कारण बुंदेलखंड अंचल में भी उनका हस्तक्षेप हुआ और यहां के राजदरबारों में ईसाई धर्म को मानने वाले कुछ अंग्रेज लोगों का प्रभाव स्थापित होने लगा और कुछ ईसाई परिवार भी इस क्षेत्र के अंतर्गत् निवास करने लगे। इनमें से कुछ सैनिक उद्देश्य से यहां रह रहे होते थे, तो कुछ यहां के राजदरबार के अधीन विभिन्न सेवाओं में संलग्न थे। इस प्रकार बुंदेलखंड मध्य एवं आधुनिक काल में एक लघु भारत का एक रूप बन रहा था।
हिन्दू धर्म –
बुंदेलखंड अंचल में आलोच्य काल में प्रमुख धर्म के रूप में हिन्दू धर्म ही विद्यमान था। यहाँ की सभी रियासतों एवं मराठा क्षेत्रों में हिन्दू धर्म का प्रचलन था। ओरछा, दतिया, चंदेरी, पन्ना, छतरपुर, समथर एवं अन्य छोटी रियासतों में शासक एवं शासित दोनों वर्गों द्वारा सनातन धर्म को ही मान्यता दी गई थी। यद्यपि इस काल में हिन्दू धर्म के विभिन्न संप्रदायों का भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। ओरछा, दतिया एवं पन्ना के राजा माधवगौड़ीय होने के कारण यहाँ राधावल्लभ संप्रदाय का बड़ा महत्व था और शासक वर्ग द्वारा जिस धार्मिक संप्रदाय को महत्व प्रदान किया जाता है, स्वाभाविक रूप से जनता की धार्मिक भावनाओं पर उसका प्रभाव पड़ता है। इस अवधि में समूचे बुंदेलखंड में कृष्णमार्गी संप्रदाय का प्रभाव बहुलता से दिखायी देता है। इसके अतिरिक्त श्रीराम भक्ति का भी इस क्षेत्र में प्रचलन था। ओरछा राज्य एवं आसपास के क्षेत्रों में ओरछा के रामराजा के प्रति प्रबल धार्मिक आस्था मौजूद थी। बुंदेलखंड में शिव एवं शक्ति की उपासना का भी जोर था। भगवान शिव एवं देवी भगवती के मंदिरों की बड़ी संख्या में स्थापना इस तथ्य की ओर इंगित करती है।
विभिन्न अखाड़ों के माध्यम से शिव एवं वैष्णव भक्ति की जाती थी, ये अखाड़े प्रायः गिरि साध् शुओं के थे। गिरि साधु दशनामी साधुओं में से एक थे तथा वैष्णव रामानुजी संप्रदाय के अनुयायी थे। इन्होंने दतिया में एक विशाल मठ का निर्माण किया था, जो शिवगिरि का मठ कहलाता है, यद्यपि इस मठ की स्थापना राजा दलपतराव के काल में हो चुकी थी, किंतु आलोच्य अवधि में इस मठ का महत्व अत्यन्त बढ़ चुका था। तत्कालीन कवि पद्माकर, जानकीदास, सीताराम, राय शिवप्रसाद आदि इसी मठ में एकत्र होकर साहित्यिक गोष्ठियों करते थे। गुसांई साधुओं एवं पुरी साधुओं द्वारा भी अपने अखाड़ों के माध्यम से धार्मिक कार्य संपंन किये जाते थे। पुरी साधुओं का एक बड़ा अखाड़ा उपरॉय गाँव, दतिया में स्थित है। राजा छत्रसाल के काल में पन्ना में स्वामी प्राणनाथजी द्वारा प्रचलित संप्रदाय प्रणामी अथवा धामी संप्रदाय ने बुंदेलखंड के अन्य क्षेत्रों में अपना विस्तार किया तथा इस संप्रदाय को मानने वाले अनुयायियों की संख्या पन्ना के अलावा ओरछा, टीकमगढ़, छतरपुर, दतिया सेंवढ़ा, समथर आदि क्षेत्रों में भी बढ़ने लगी। इस संप्रदाय से संबंधित मंदिरों का निर्माण होने लगा, ये मंदिर धामी मंदिर कहलाये।
जैन धर्म -
बुंदेलखंड में कई स्थानों पर जैन धर्म का प्रभाव था। इस काल में सागर, ललितपुर, चंदेरी, टीकमगढ़, छतरपुर एवं दतिया आदि क्षेत्रों में जैन धर्म का विस्तार देखा जा सकता है। ये क्षेत्र प्रारंभ से जैन साधकों की प्रिय साधना स्थली रहे है, इसी कारण इन क्षेत्रों में जैन मंदिरों एवं शिखरों का निर्माण हुआ है। दतिया के निकट सोनागिरि पहाड़ी पर सौ से अधिक जैन मंदिर निर्मित किये गये है। इनमें से अधिकांश मंदिरों का निर्माण 18-19 वीं सदी में हुआ था। इनमें सबसे प्राचीन चंद्रप्रभुजी का मंदिर है।
इस्लाम धर्म –
मुगल शासकों की सेवा करते हुए बुंदेला शासकों के द्वारा अपने राज्य में जिन मुस्लिम परिवारों को प्रशासनिक अथवा सैन्य कार्यों में सहायता के लिये आमंत्रित किया था, उनमें से कई परिवार निर्धारित अवधि तक कार्य करने के पश्चात् वापस अपने-अपने मूल स्थानों की ओर चले गये, जबकि कुछ अन्य परिवारों ने बाद में बुंदेलखंड की विषम परिस्थितियों की वजह से इस अंचल को छोड़ दिया। किन्तु मुगल सल्तनत के कमजोर पड़ने पर मुस्लिम धर्मावलम्बियों ने क्षेत्रीय शक्तियों को अपना स्वामी बना लिया और इस धरती को हमेशा-हमेशा के लिये अपना लिया। ये परिवार मुख्यतः अवध, रुहेलखंड, कश्मीर, फारस, नरवर, धौलपुर, दिल्ली, मुरादाबाद, अलीगढ़, हैदराबाद, खानदेश आदि क्षेत्रों से आये थे।
भारत में मुगल सत्ता के उत्कर्ष के दौर में मुस्लिम धर्मावलम्बियों का सैन्य गतिविधियों में बड़ा योगदान रहता था और वे सैन्य विभाग के प्रत्येक विषय में पारंगत होते थे। 18वीं सदी के प्रारंभ में केंद्रीय मुगल सत्ता के कमजोर होने से इन मुस्लिम योद्धाओं, प्रशिक्षकों तथा कर्मकारों को काम के लिये अन्य क्षेत्रों की ओर रुख करना पड़ा। बुंदेलखंड के राजाओं को अपने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ाने तथा उसे सुगठित करने के लिये ऐसे कुशल मुस्लिम योद्धाओं की आवश्यकता थी, अतः उन्होंने सईस, शुतुरसवार, तीरदांज, गोलंदाज, तलवारबाज, कराहिया, शालिहोत्री, महावत, अस्पसवार आदि कुशल कर्मकारों एवं योद्धाओं को अपने राज्य में आमंत्रित कर बसाया। इस कार्य में ओरछा नरेश विकमाजीत एवं दतिया नरेश इंद्रजीत, शत्रुजीत तथा राजा पारीछत का विशेष योगदान था। इसी प्रकार इस अंचल के लोगों को यूनानी इलाज उपलब्ध कराने के लिये स्थानीय बुंदेला राजाओं ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से यूनानी चिकित्सा पद्धति में पारंगत हकीमों को अपने राज्य में आमंत्रित किया। दतिया के राजा इंद्रजीत एवं शत्रुजीत के काल में दतिया राज्य में कश्मीर से हकीम आगा मुहम्मद का परिवार तथा नरवर से हजरत दोस्त मोहम्मद के परिवारों ने स्थायी निवास किया। शालिहोत्री एवं कराहिया मुस्लिम परिवार वस्तुतः सैन्य गतिविधियों में संलग्न पशुओं का उपचार करते थे और उन्हें पशु रोग विशेषज्ञ कहा जा सकता है।
उक्त परिवारों के अतिरिक्त इस अवधि में ओरछा, दतिया, चंदेरी एवं पन्ना आदि बुँदेला रियासतों में पहलवानी, संगीत, नृत्य, वास्तुकला, चित्रकला आदि कलाओं में पारंगत मुस्लिम परिवारों ने स्थानीय राजाओं का आश्रय प्राप्त किया और अपनी विद्याओं का कौशल क्षेत्र के लोगों को न केवल दिखाया बल्कि अपनी उस्तादी से उन्हें शिक्षा भी प्रदान की। 18वीं सदी के अंत में इन राज्यों में रंगसाज, रफूगर, खराद, लकड़ी का काम, खिलौने आदि बनाने का काम करने वाले मुस्लिम कर्मकार परिवार आकर बसने लगे थे। बुंदेलखंड में आकर बसने वाले मुस्लिम परिवारों ने अपने व्यवहार से हिन्दू परिवारों के साथ बेहतर सामंजस्य स्थापित किया और धार्मिक भिन्नता के बावजूद एकजुट होकर रहने के उदाहरण प्रस्तुत किये। आलोच्य अवधि में एक भी ऐसी घटना का उल्लेख प्राप्त नहीं होता, जिसमें हिन्दू-मुस्लिमों के मध्य किसी विवाद का जन्म हुआ हो और आपस में तनाव की स्थिति निर्मित हुई हों।
ईसाई धर्म -
यद्यपि ईसाई धर्म का प्रचार कम्पनी सरकार की स्थापना के साथ ही प्रारंभ हो गया था, किंतु देशी रियासतों में उनकी सरकार न होने के कारण यह क्षेत्र इस धर्म के प्रभाव से बचे रहे। बाद में जब लार्ड वेलेजली ने सहायक संधि के माध्यम से देशी रियासतों के साथ संधियां कीं और उन पर ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित किया तो यह क्षेत्र भी ईसाई धर्म से अछूता न रह सका। वस्तुतः ब्रिटिश भारत सरकार ने देशी रियासतों के दरबारों में अपने रेजीडेंट एवं कुछ अॅग्रेज सैनिक तैनात कर रखे थे, जो इन क्षेत्रों में निवास करने लगे थे। इसके अतिरिक्त ईसाई मिशनरियों के द्वारा भी इन क्षेत्रों में अपने धर्म के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया जा रहा था। बुंदेलखंड में हालाँकि ईसाई धर्म का विस्तार न के बराबर हुआ। कुछ क्षेत्रों में इनके धार्मिक स्थल चर्च एवं गिरजाघरों की स्थापना अवश्य की गई।
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