मूत्र विसर्जन क्या होता है ?|उत्सर्जन के सहायक अंग | Urination or Micturition
मूत्र विसर्जन क्या होता है ? Urination or Micturition
मूत्र विसर्जन क्या होता है ? Urination or Micturition
- मूत्राशय में एकत्रित मूत्र को शरीर से बाहर उत्सर्जित करने की प्रक्रिया मूत्रण कहलाती है। यह एक प्रतिवर्ती क्रिया है, जिसके फलस्वरूप मूत्राशय की अरेखित पेशियों में संकुचन होता है जो मस्तिष्क केन्द्र (brain centre) को प्रेरित करता है। मस्तिष्क केन्द्र में यह प्रेरणा आन्तरिक संकोचक (internal sphincter) तक पहुँचती है और यह खुल जाता है। इसके खुलने के कारण मूत्राशय में एकत्र मूत्र मूत्रमार्ग की सहायता से शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है। मूत्रण की प्रक्रिया ऐच्छिक रूप से प्रारम्भ और समाप्त होती है।
मूत्र Urine
वृक्कों द्वारा उत्सर्जित द्रव और घुलित वर्ज्य पदार्थों द्वारा मूत्र का निर्माण होता है।
एक सामान्य वयस्क मनुष्य 24 घण्टे में 1-1.8 लीटर मूत्र का त्याग करता है। मृत्र का आयतन निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता हैं
(i) द्रव का अन्तग्रहण
(ii) शारीरिक सक्रियता का स्तर
(iii) भोजन का प्रकार
(iv) वातावरणीय तापमान
- मूत्र हल्का पीला, पारभासी द्रव है। मूत्र का रंग इसके सान्द्रण पर निर्भर करता है। क्षतिग्रस्त RBC के हीमोग्लोबिन का व्युत्पन्न 'यूरोक्रोम' वर्णक, मूत्र के रंग को निर्धारित करता है। मूत्र, रुधिर प्लाज्मा की अपेक्षा अतिपरासरणीय होता है। मूत्र का आपेक्षिक घनत्व 1.001 से 1.035 के मध्य होता है अर्थात् जल से थोड़ा अधिक होता है। मूत्र का pH मान 6 होता है, जो भोजन पर निर्भर करता है। मूत्र के एकत्र होने पर यूरिया विघटित होकर (जीवाणुओं द्वारा) अमोनिया में बदल जाता है, जो मूत्र में विशिष्ट, तीव्र दुर्गन्ध उत्पन्न करते हैं।
उत्सर्जन के सहायक अंग (Accessory Organs of Excretion)
वृक्क के अतिरिक्त कुछ अन्य अंग भी उत्सर्जन में सहायक हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(i) त्वचा (Skin)
- त्वचा की स्वेद ग्रन्थियाँ अपने चारों ओर की रुधिर केशिकाओं के रुधिर से जल और कुछ CO₂, यूरिया, लवण लेकर पसीने (sweat) के रूप में इनका बहिष्कार करती हैं। स्वेद ग्रन्थियाँ सीवम के साथ कुछ हाइड्रोकार्बन, मोम, स्टेरॉल, वसीय अम्ल, आदि को उत्सर्जित करती हैं।
(ii) यकृत (Liver)
- यकृत अमोनिया को यूरिया में बदलता है। यूरिया अमोनिया की तुलना में कम हानिकारक होता है। यकृत कोशिकाएँ हीमोग्लोबिन के विखण्डन से पित्त वर्णक बिलिरुबिन और बिलिवर्डिन (biliverdin) बनाती हैं। इसके अतिरिक्त पित्त में उत्सर्जी पदार्थ कॉलेस्टेरॉल, कुछ निम्नीकृत स्टेरॉइड हॉमॉन्स, औषधियाँ, आदि होती हैं। ये उत्सजीं पदार्थ पित्त रस द्वारा ग्रहणी में पहुँच जाते हैं।
(iii) फुफ्फुस (Lungs)
- श्वसन क्रिया के फलस्वरूप मुक्त CO₂ और जलवाष्प फेफड़ों द्वारा शरीर से निष्कासित होती हैं।
(iv) प्लीहा (Spleen)
- ये क्षतिग्रस्त और मृत लाल रुधिराणुओं को नष्ट करता है। प्लीहा मृत लाल रुधिराणुओं के हीमोग्लोबिन का विखण्डन करके पित्त वर्णक बिलिवडींन और बिलिरुबिन का निर्माण करता है।
(v) आँत (Intestine)
- यह उत्सर्जन क्रिया में स्वतः भाग नहीं लेती है। यकृत और प्लीहा द्वारा बने अपशिष्ट पदार्थ पित्तरस के माध्यम से आँत में पहुँचते हैं, जो अपचयित भोजन के साथ विष्ठा के रूप में शरीर से निकाल दिए जाते हैं।
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