गौतमीपुत्र शातकर्णी कौन था? उसकी सैनिक सफलताओं का वर्णन कीजिए। Gautamiputra Satakarni? Describe his military successes.

 गौतमीपुत्र शातकर्णी कौन था? उसकी सैनिक सफलताओं का वर्णन कीजिए?
Who was Gautamiputra Satakarni? Describe his military successe
गौतमीपुत्र शातकर्णी कौन था? उसकी सैनिक सफलताओं का वर्णन कीजिए। Gautamiputra Satakarni? Describe his military successes.



गौतमीपुत्र शातकर्णी कौन था 

  • गौतमीपुत्र शातकर्णि (106 ई.) आंध्र सातवाहन वंश का प्रतापी शासक कहलाता हैं। इसकी कई उपलब्धियों का वर्णन प्राप्त होता हैं। जैसे- वेककटक विन्ध्य नरेश, त्रिसमुद्र, राजाराज, अद्वितीय प्रथम भी कहा गया हैं। इसने शकशासक नहपान को हराया था। स्वंय को कृष्ण एवं बलराम व संकर्षक की उपाधि से अभिजित करता था। प्रारंभिक राजाओं द्वारा महाराष्ट्र में स्थापित राज्य दुसरी शदी के आरम्भ में शक वंश के क्षत्रप नरेश नहपान के उदभव के साथ कुछ समय के लिए समाप्त हो गया था। नहपान का समय 119 ई0 से 125 ई० के मध्य माना जाता हैं। महाराष्ट्र सातवाहनों का मूल प्रदेश था, किन्तु उन्हें क्षहरातों के दबाव से दक्षिण विस्थापित होना पड़ा। 


  • गोतमीपूत्र शातकर्णी के नासिक गुहा लेख से जानकारी मिलती हैं कि महाराष्ट्र गोतमीपूत्र शातकर्णी के अधीन था उसने क्षहरात्रों को बाहर किया नासिक से प्राप्त सिक्कों की निधि जिसे शातकर्णी ने दुबारा ढलवाया। उसके राज्यारोहण से पूर्व सातवाहन को शको ने आघात पहुंचाया परंतु गोतमीपूत्र. ने इनकी शक्ति को नष्ट किया तथा सातवाहन वंश को पूर्नजीवित करने का कार्य किया। सर्वप्रथम उसने क्षहरातों पर आक्रमण कर अपनी खोई राजलक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए अभियान किया। इस सैनिक अभियान में क्षहरात नरेश नहपान तथा ऊषावदात न केवल परास्त हुए वरन् वीरगति को प्राप्त हुए। उसने नहपान की मुद्राओं को पुनरांकित कराया। क्षहरातों का विनाश गौतमीपुत्र की ऐसी महान सफलता थी जिसके फलस्वरूप सातवाहनों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा में अकस्मात वृद्धि हुई। इस सफलता से उत्साहित होकर उसने विशाल क्षेत्र पर विजय अभियान किया उनमें ऋषिक - अस्मक मुलक, सुराष्ट्र, कुकुर, अपरान्ह अनूप विदर्भ आकर अवन्ति आदि स्थलों पर पुनः सातवाहन सत्ता स्थापित हुई।

 

शातकर्णी (गौतमीपूत्र की उपलब्धियाँ ) 

  • विभिन्न स्त्रोतों से ज्ञात होता हैं कि गौतमीपुत्र शातकर्णि एक योग्य, कुशल एवं दूरदर्शी शासक होने के साथ ही जनता में लोकप्रिय एवं आदर का पात्र था। गुणी होने के साथ ही वह अत्यंत रूपवान तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी था। वह बलिष्ठ शरीर एवं लम्बी भुजाओं वाला व्यक्ति था। अपनी माता का अत्यंत आदर करता था। साहसी एवं शक्तिशाली होने के साथ ही वह अत्यंत दयालु शासक भी था। नासिक अभिलेख से उसके द्वारा दिए गए दानो के विषय में पता चलता है। 
  • गौतमीपुत्र एक प्रजावत्सल शासक था तथा उसी के अनुरूप् वह कार्य करता था। प्रज्ञा की खुशी के लिए वह उत्सव एवं समाज भी करवाता था। गौतमीपुत्री ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था तथ उसके विकास के लिए उसने प्रयत्न भी किए। गौतमीपुत्र यद्यपि ब्राह्मण-धर्म का अनुयायी था किन्तु वह धार्मिक क्षेत्र में असहिष्णु था। गौतमीपुत्र ने विन्ध्यपति व राजराजा, आदि उपाधियां धारण की थीं। उसकी मृत्यू 130 ई. में हुई।

 

गौतमीपुत्र शातकर्णि  सैनिक सफलताओं का वर्णन

  • गौतमीपुत्र शातकर्णि सातवाहन वंश का सबसे प्रतापी शासक था। वह साम्प्रज्यवादिता में विश्वास रखता था, अतः विभिन्न परिणामस्वरूप उसने अपने साम्रज्य की सीमाओं को दूर-दूर तक विस्तृत किया। 
  • गौतमीपुत्र शातकर्णि के शासक बनने से पूर्व शकों ने सातवाहनों के अनेक प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था। 
  • गौतमीपुत्र शकों का परास्त करके न केवल खोए हुए प्रदेशों को प्राप्त किया वरन् अपने साम्प्रज्य का विस्तार भी किया। शकों को परास्त करने से उसका गुजरातसौराष्ट्र, पश्चिमी राजपूताना, मालवा, बरार तथा उत्तरी कोंकण पर अधिकार हो गया। 
  • नासिक अभिलेख से ज्ञात होता हैं कि गौतमीपुत्र शकों यवनों, पल्लवों एवं क्षहरातों का विनाश कर सातवाहनों की प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित की। नासिक अभिलेख में गौतमीपुत्र द्वारा जीते हुए प्रदेशों की सूची भी दी गई है जिससे ज्ञात होता हैं कि उसने क्षहरातों का विशेष रूप से नाश किया था। 
  • नासिक से चांदि के सिक्कों में जो भाण्ड मिला हैं, उसमें नहपान (क्षहरात शासक) के ऐसे भी सिक्के हैं जिनको गौतमीपुत्र ने अपनी राजमुद्रा से पुनः अंकित किया हैं। अतः क्षहरातों पर इसकी विजय प्रमाणित हो जाती हैं।

 

  • नासिक के गुहालेख में गौतमीपुत्र शातकर्णि की विजयों का उल्लेख करते हुए कहा गया है, "उसके वाहनों ने तीन समुद्रों का जल पिया...... उसका राज्य ऋषिक (गोदावरी नदी का तटवर्ती प्रदेश), मूलक ( पैठन का निकटवर्ती क्षेत्र) कुकुर (उत्तरी काठियावाड़), अपरान्त, अनूप, विदर्भ, अवन्ति तक विस्तृत था। इस प्रकार स्पष्ट है कि अपनी विजयों के द्वारा उसने अपने साम्राज्य का विस्तार किया। गौतमीपुत्र का साम्राज्य पूरब में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक तथा उत्तर में सौराष्ट्र एवं मालवा से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक विस्तृत था।

 

  • वह प्रजा के सुख में सुखी व दुःख में दुखी होता था। पौर जननिविसेस सम दुःख दुःखस निर्भिकता उसकी विशेषता थी बड़ो के प्रति व माँ के प्रति विनम्र व आज्ञाकारी था गोतमीपूत्र को तीन समुद्रो का स्वामी कहा हैं उसने अपराजित लोगों को पराजित किया हैं उसे दाताओं का दाता व शत्रु के प्रति उदार रहने वाला बताया. 


शातकर्णि क्षत्रिय -

  • हाथी गुफा अभिलेख में शातकर्णि का उल्लेख मिलता है, साथ ही राजशेखर द्वारा रचित काव्यमीमांस तथा वात्सायन के काम सूत्र में भी वर्णन मिलता है। हाल - यह आंध्र सातवाहन का वंशावली के क्रम में 19 वें नम्बर का शासक था, इसने गाथा सप्तसदी की रचना की जो एक प्रेम गाथा है। इसका सेनापति विजयानंद था जो कि लंका व्यापार के लिये जाता था वहां की राजकुमारी लीलावती के बारे मे हाल को बताता है तथा हाल उससे विवाह कर लेता हैं।




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