पेशवा बाजीराव प्रथम की गतिविधियाँ
पेशवा बाजीराव प्रथम की गतिविधियाँ
- बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के पश्चात् उसके द्वारा शाहू की कठिन परिस्थितियों में की गई सेवाओं को ध्यान में रखते हुए उसके उन्नीस वर्षीय पुत्र बाजीराव को शाहू द्वारा पेशवा पद पर नियुक्त किया गया। बाजीराव प्रथम द्वारा मात्र धन प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं वरन् विस्तार की नीति से अभियान आरम्भ किया गया, जो दिल्ली से प्राप्त अधिकार पत्र का तर्क संगत परिणाम था। क्योंकि स्वराज्य पर मराठों का अधिकार मान्य हो चुका था।
- बाजीराव द्वारा 1721 ई. में सेना को मालवा में भेजा गया। 1722 ई. में दशहरे के पश्चात बाजीराव सातारा से निकलकर जलगाँव पहुँचा व अपने एक सेनापति उदाजी पवार को गुजरात जाने का आदेश देकर वहाँ पर उसे कुछ प्रदेश मोकासां व सरेजाम देने का वचन भी दिया।
- मुगल शासन की ओर से 1722 ई. में गिरधर बहादुर को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया गया था।
- पेशवा जनवरी 1723 में बुरहानपुर के रास्ते हंडिया तक पहुँच गया। इस अभियान में नर्मदा पार मकड़ाई होता हुआ फरवरी माह में वह बोलाई पहुँचा व निजामुलमुल्क प्रथम से सामना करने हेतु रुक गया। इस समय निजामुल्मुल्क गुजरात की ओर हैदर कुली खाँ को निकाल बाहर करने हेतु जा रहा था। इसी दौर में मालवा से गुजरते हुए 13 फरवरी 1723 ई. को उसनें बाजीराव से भेंट की जो परिणाम शून्य रही। 15 फरवरी को पायघाट होने हुए पेशवा खानदेश लौट आया। उसने अपने सिपहसालारों को आदेशित किया था कि मालवा क्षेत्र में जितना संभव हो अधिकार कर लिया जाय। पश्चिम दिशा में कंठाजी कदम तथा पिलाजी गायकवाड़ झाबुआ क्षेत्र में शिवगढ़ तक पहुँच कर चौथ वसूल कर रहे थे। यहाँ सुजाल सिंह शासन कर रहा था।
- 25 फरवरी 1723 ई. की बाजीराव ने होशंगाबाद के मार्ग से पुनः मालवा में अभियान करके 15 मई 1723 ई. को भोपाल के नवाब दोस्त मुहम्मद को पराजित किया। निजाम ने, जो मुगल साम्राज्य का वजीर भी था, गिरधर बहादुर के स्थान पर अपने सम्बन्धी अजिमुल्लाह को मालवा का नायब सूबेदार नियुक्त कर अपनी जागीर अवध की ओर 7 दिसम्बर 1723 ई. को लौट गया। अर्थात् अभी तक मराठे नर्मदा के दक्षिण क्षेत्र व खानदेश में स्थापित हो चुके थे।
- निजाम ने 1724 ई. में मालवा में मराठों को निकाल बाहर करने की योजना की सूचना सम्राट को भी दी व इस हेतु वह उज्जैन पहुँच गया। दूसरी ओर पेशवा पुनः सातारा से चलकर खानदेश होता हुआ अकबरपुर घाट पार कर नर्मदा किनारे निमाड़ क्षेत्र के बड़वाह तक पहुँच गया। वास्तव में निजामुलमुल्क आसफजहाँ इस समय दक्षिण में स्वतंत्र राज्य की स्थापना का प्रयास कर रहा था। उसकी शक्ति को दबाने हेतु मुगल सम्राट ने मुबारिजखान को दक्षिण में भेजा जिसके सहयोग के लिए मराठा राजा शाहू को भी आग्रह किया गया। शाहू द्वारा शर्त रखी गई कि यदि मालवा व गुजरात से चौथ वसूली का विधिवत् अधिकार दिया जाए तो वह शाही सेना को सहयोग करेगा।"
- बाजीराव ने स्थिति का लाभ उठाते हुए बड़वाह से निकलकर महेश्वर होकर नालछा में निजाम से 1 मई 1724 ई. में भेंट की। दोनों पक्षों में हुई संधि के अनुसार दक्षिण के छः सूबों से मराठों को चौथ व सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार निजाम ने स्वीकार किया जिसके बदले मराठे उसे मुगल सम्राट से संघर्ष की स्थिति में सहयोग देंगे। निजाम तब दिल्ली लौट गया। इस बीच झाबुआ, पेटलावद भी जीत लिया गया।'.
- मराठों के अधिकार मध्यप्रदेश में इस हद तक दृढ़ हो चुके थे कि जुलाई 1724 ई. में पेशवा द्वारा उदाजी पवार को धार व झाबुआ का मोकासा देकर कम्पेल उसकी निजी सेना (पागा) हेतु दिया गया तथा इंदौर उसके भाई चिमणाजी अप्पा को सेना रखने हेतु दिया गया।
- 1723 से 1725 ई. तक मराठा अभियानों के परिणाम स्वरूप मालवा में उनकी शक्ति दृढ़ होती गई। दूसरे, उदाजी व तुकोजी पवार, मल्हार राव होल्कर, राणोंजी शिंदे, कंठाजी कदम समान सैन्याधिकारी प्रकाश में आये। मध्यप्रदेश में अब इंदौर, उज्जैन व धार से चौथ वसूली हेतु अधिकारी नियुक्त किये गये।
- इंदौर के मुगल अधिकारी नंदलाल मण्डलोई को उदाजी पवार को सहयोग देने हेतु लिखा गया पत्र इस तथ्य की पुष्टि करता है जिसमें लिखा गया था कि पवार को चौथ वसूली हेतु पूर्ण सहयोग आपके द्वारा दिया जाए।
- जून 1725 ई. में गिरधर बहादुर दोबारा मालवा में सूबेदार नियुक्त किया गया ताकि मराठों को रोका जा सके, उसके सहयोग हेतु उसके चचेरा भाई दयाबहादुर को भी भेजा गया।
- अब मराठों की तीन सैनिक टुकड़ियाँ पश्चिम मध्यप्रदेश में अकबरपुर घाट को पार करते हुए प्रविष्ट हुई। एक अंबाजीपंत पुरन्दरे के नेतृत्व में मंदसौर तक प्रदेश को तहस-नहस करते हुए पहुँची, दूसरी संतोजी भोंसले व तीसरी केशो महादेव व कृष्णाजी हरी के नेतृत्व में माण्डू तक पहुंच गई। शाहू द्वारा गिरधर व दया बहादुर को चेतावनी दी गई कि उसके द्वारा मराठा सैन्याधिकारियों को वसूली करने में बाधा पहुँचाई जा रही है। परन्तु दोनों भाई गिरधार व दया बहादुर ने बात अनसुनी कर दी। यहाँ मराठे पश्चिमी मध्यप्रदेश से भी आगे बूँदी व कोटा (राजस्थान) की सीमा तक बढ़ रहे थे जिन्हें दया बहादुर ने रोकने का प्रयास किया। दो मराठा अधिकारी केशव महादेव व रघुजी भोंसले मुगल अधिकारियों से मेलमिलाप करने की सोच रहे थे परन्तु संताजी भोंसले, कृष्णाजी हरि व अंबाजी पंत पुरंदरे के आने पर अब मराठा सेनाओं ने बदनावर व नौलाई (बड़नगर) की ओर कूच किया।
- बरसात के पश्चात् 1726 ई. में मालवांचल की ओर उदाजी पवार के नेतृत्व में एक सेना भेजी गई जिसे चौथ व सरदेशमुखी वसूलने के अधिकार प्राप्त थे। शेखी महादेव व रामचन्द्र मल्हार को उसे सहयोग देने हेतु भेजा गया। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि मुगल अधिकारी संरबुसन्दखान, गिरधर बहादुर व दया बहादुर तथा माण्डू, सारंगपुर, उज्जैन व मंदसौर के फौजदारों को भी कहा गया कि वे इस कार्य में सहयोग करेंगे।
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