सुंदरबन, विश्व
का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र है, जो
बंगाल की खाड़ी में गंगा, ब्रह्मपुत्र
तथा मेघना नदियों के डेल्टा पर स्थित है।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र उष्णकटिबंधीय
तथा उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भूमि एवं समुद्र के बीच एक पारिस्थितिकी तंत्र
है।
सुंदरबन के वनस्पति एवं जीव:
यह क्षेत्र विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक
तंत्रों का समर्थन करता है, जिनमें
दलदल (खारे एवं स्वच्छ जल की वनस्पति) एवं अंतर-ज्वारीय मैंग्रोव शामिल हैं।
सुंदरबन, विभिन्न
प्रकार की प्रजातियों के आवास हेतु एक अभयारण्य है, जिसमें
दुर्लभ एवं वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त वन्यजीव जैसे खारे पानी के मगरमच्छ, वॉटर मॉनिटर लिज़र्ड, गंगा डॉल्फिन तथा ओलिव रिडले कछुए शामिल हैं।
सुंदरबन संरक्षण:
सुंदरबन का 40% भाग भारत में तथा शेष भाग
बांग्लादेश में स्थित है।
इसे वर्ष 1987 भारत में और वर्ष 1997 में
बांग्लादेश में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
जनवरी 2019 में रामसर अभिसमय के अंर्तगत भारत
की सुंदरबन आर्द्रभूमि को 'अंतर्राष्ट्रीय
महत्त्व की आर्द्रभूमि' के
रूप में मान्यता प्रदान की गई थी।
प्रोजेक्ट टाइगर:
सुंदरबन के विशिष्ट शिकारी
(रॉयल बंगाल टाइगर), इस
क्षेत्र में अत्यधिक चराई को कम करने के साथ पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के
लिये जानवरों की संख्या को नियंत्रित करते हैं।
बाघों की सुरक्षा पौधों एवं जानवरों की अन्य
प्रजातियों के लिये एक विशाल आवास को भी सुरक्षित करती है, जो सुंदरबन में एक स्वस्थ वन पारिस्थितिकी
तंत्र को बनाए रखने में योगदान देते हैं।
वर्ष 2011 में भारत एवं बांग्लादेश द्वारा
सुंदरबन की निगरानी तथा संरक्षण की आवश्यकता को देखते हुए, सुंदरबन के संरक्षण पर एक समझौता ज्ञापन पर
हस्ताक्षर किया।
सुंदरबन का भविष्य
महासागरों का बढ़ता स्तर:
जलवायु परिवर्तन का
परिणाम, महासागरों के बढ़ते जलस्तर से निचले स्तर के
मैंग्रोव के जलमग्न होने का खतरा उत्पन्न कर सकता है। खारे जल की अधिकता के
परिणामस्वरूप उनका संतुलन बाधित होता है और यह स्थिति चक्रवातों के दौरान तूफान के
प्रति उन्हें अधिक संवेदनशील बनाती है।
चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि:
जलवायु
परिवर्तन भी चक्रवात पुनरावृत्ति और तीव्र तूफानों से जुड़ा हुआ है। ये चक्रवात
मैंग्रोव को हानि पहुँचा सकते हैं, जिससे
भौतिक क्षति हो सकती है, साथ
ही उनके अस्तित्व के लिये महत्त्वपूर्ण तलछट प्रणाली बाधित हो सकती है।
नकदी एवं खाद्य फसलें:
नकदी फसलों (ऑयल पाम)
अथवा खाद्यान्न उत्पादन (धान) जैसी कृषि के लिये मैंग्रोव वनों का रूपांतरण इनको
नष्ट कर सकता है।
इससे न केवल इन पारिस्थितिक तंत्रों के लिये
उपलब्ध क्षेत्र कम हो जाता है, बल्कि
वर्तमान पारिस्थितिक तंत्र भी खंडित हो जाते हैं, जिससे
जैवविविधता प्रभावित होती है।
पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की हानि:
मैंग्रोव
वन मत्स्य प्रजातियों के लिये तटरेखा संरक्षण तथा मत्स्य पालन के लिये प्राकृतिक
तालाबों जैसी महत्त्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करते हैं। वनों की कटाई इन सेवाओं को
बाधित करती है, जिससे तटीय समुदायों के साथ-साथ मत्स्य पालन
भी प्रभावित होता है।
वन्यजीवों को खतरा:
जलवायु परिवर्तन के कारण
मैंग्रोव आवासों के नष्ट होने से संकटापन्न या लुप्तप्राय प्रजातियाँ नष्ट हो रही
हैं।
मैंग्रोव विविध मोलस्क और क्रस्टेशियंस के
लिये सुरक्षित आश्रय स्थल हुआ करते थे, हालाँकि, इन प्रजातियों की प्रजनन प्रथाओं और संदूषित
निर्वहन के कारण वे लुप्त हो रहे हैं।
प्रदूषकों का प्रभाव:
आस-पास के शहरी
क्षेत्रों एवं संपूर्ण सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्र से ब्लैक कार्बन कणों से
युक्त प्रदूषक सुंदरबन की वायु गुणवत्ता को न्यून कर रहे हैं, जिससे इसके पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़
रहा है।
ये वायु प्रदूषक सुंदरबन मैंग्रोव
पारिस्थितिकी तंत्र की पारिस्थितिकी एवं जैव-भू-रसायन विज्ञान को विशेष रूप से
प्रभावित करते हैं।
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