नादिरशाह का आक्रमण और मध्यप्रदेश |बाजीराव प्रथम की मृत्यु | Bajirao First Death

 नादिरशाह का आक्रमण और मध्यप्रदेश 

नादिरशाह का आक्रमण और मध्यप्रदेश |बाजीराव प्रथम की मृत्यु | Bajirao First Death


 

 नादिरशाह का आक्रमण और मध्यप्रदेश

  • दोराहा सराय की संधि की शर्तें मनवाने हेतु बाजीराव के दिल्ली में राजदूत बाबूराव मल्हार करवे द्वारा लाख कोशिशों के बावजूद निजाम ऐसा नहीं कर सका। 3 फरवरी 1739 ई. को नादिरशाह द्वारा करनाल में मुगल सम्राट की पराजित किया और 17 फरवरी को उसने सम्राट को बंदी बनाया। जिसकी सूचना जयपुर में लौटे बाबूराव बर्वे ने बाजीराव प्रथम को पहुंचाई। नादिरशाह के आक्रमण से दिल्ली में लूट-खसोट विनाश का तांडव मचा था। 
  • बाजीराव तब धरणगाँव (खानदेश) में था। परन्तु उसके सिपहसालार चिमणाजी अप्पाशिंदे,, होल्कर बसई (बेसिन) का घेरा डाले हुए थे। बाजीराव को नादिरशाह के दक्षिण की तरफ बढ़ने की आशंका थी उसने चिमणाजी अप्पा को रघुजी भोंसले के साथ आने को कहा। व बुंदेलखण्ड के बुंदेलों को भी सचेत रहने को कहा। मराठा दूत महादेव भट हिंगणेबाबुराव मल्हार बरवे व दीक्षित आदि ने जाटराजदूत व बुंदेलों को संगठित करनें का प्रयास किया। 1 मार्च 1739 को मोहम्मद शाह को नादिरशाह ने दिल्ली का तख्त बहाल कर शाहू व पेशवा को सम्राट की आज्ञा मानने को कहा। बाजीराव द्वारा सम्राट को 101 मोहरें तोहफे में भिजवाई गई व उसके द्वारा वस्त्रालंकार व पेशवा के अधिकार की स्वीकृति दी। नादिरशाह 52 दिनों तक भारत में रुककर 5 मई 1739 ई. को लगभग 20 करोड़ की संपत्ति के साथ अपने देश लौट गया। 
  • बुरहानपुर से पेशवा व बेसिन से चिमणाजी अप्पा भी पुणे लौट गये। 27 फरवरी 1740 ई. की संधि द्वारा निजाम आसफजहाँ ने हंडिया खातेगाँव का क्षेत्र मराठों को सौंप दिया।

 

बाजीराव प्रथम की मृत्यु 

  • 7 मार्च 1740 ई. को बाजीराव हंडिया व खरगौन पर अधिकार हेतु चल पड़ा। चिमणाजी अप्पा व बालाजी आंग्रे बंधुओं के संघर्ष को समाप्त करने हेतु गये। 27 अप्रैल 1740 को नर्मदा में स्नान के उपरान्त ज्वर से पीड़ित बोजीराव प्रथम का रावेर खेड़ में दुखद निधन हो गया। रिचर्ड टेम्पल के शब्द सटीक है कि 'He lived in the Camp And died out of it,' उसका स्मारक रावेर खेड़ी में समाधि के रूप में है। 
  • बाजीराव की मृत्यु के पश्चात् उसके युवा उत्तराधिकारी को 25 जून 1740 ई. को पेशवा पद बहाल किया गया। उसने अपने पिता के विपरीत कूटनीति का सहारा लेकर मालवा (पश्चिमी मध्यप्रदेश) की समस्या निपटानी चाही। मार्च 1741 ई. में वह ग्वालियर पहुँचा। जयसिंह ने अपना दुख व असमर्थता व्यक्त की परन्तु वह मालवा की सनद हाथों में पाना चाहता था।

 

  • बाजीराव की मृत्यु के पश्चात् उसके युवा उत्तराधिकारी को 25 जून 1740 ई. को पेशवा पद बहाल किया गया। उसने अपने पिता के विपरीत कूटनीति का सहारा लेकर मालवा (पश्चिमी मध्यप्रदेश) की समस्या निपटानी चाही। मार्च 1741 ई. में वह ग्वालियर पहुँचा। जयसिंह ने अपना दुख व असमर्थता व्यक्त की परन्तु वह मालवा की सनद हाथों में पाना चाहता था।

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