पिलाजी जाधव का बुंदेलखण्ड प्रयाण| Pilaji Jadhav Bundelkhand

पिलाजी जाधव का बुंदेलखण्ड प्रयाण| Pilaji Jadhav Bundelkhand
 

 पिलाजी जाधव का बुंदेलखण्ड प्रयाण




पिलाजी जाधव का बुंदेलखण्ड प्रयाण

  • मराठों ने नरवरदतियाओरछा से चौथ वसूलने हेतु 28 दिसम्बर 1733 ई. को पिलाजी जाधव ने ताप्ती पार कर नरवर व ओरछा में व्यवस्था की व मदावर से तीन लाख वसूल किये राणोंजी शिंदे व मल्हारजी होल्कर मालवा से आकर जाधव से मिले। सम्राट द्वारा मीरबक्श शमशुद्दौला को बुंदेलखण्ड भेजकर मराठों को दबाना चाहा किन्तु पिलाजी अप्रैल 1734 ई. में चंदेरी की ओर से दक्षिण चला गया। गोविंद बल्लाल से रुपये 50,000 सातारा भिजवाये। 
  • पेशवा पुत्र बालाजी बाजीराव की नेतृत्व में एक सेना पिलाजी जाधवव्यंकटराव घोरपड़े के साथ नवम्बर 1734 ई. में वर्षा ऋतु के पश्चात बुंदेलखण्ड की ओर चल पड़ी। यहाँ नर्मदा पार कर ओरछा राज्य के अमोला में सेना पहुँची और यहाँ से झाँसी व कुरई। छत्रसाल का पुत्र हृदयेशमल्हारजीराणोंजी शिंदे सभी मिल गये। जाधव पर वजीर कमरूद्दीन व शिंदे होल्कर पर मीर बक्श शमशुद्दौला खान ए-दौरान को बढ़ने के लिए कहा गया। सवाई जयसिंहमारवाड़ का अजयसिंह व कोटा का दुर्जन साल हाड़ भी आगे बढ़ा। कमरूद्दीन पच्चीस हजार की फौज लेकर आया। दोनों दलों में छुटपुट झड़पें हुई जिसमें मराठों को तीन सौ ऊँट व घोड़े प्राप्त हुए थे। 14 फरवरी 1735 ई. को मराठों ने मुगल सेना पर आक्रमण किया और उसे चारों तरफ से घेर लिया। वजीर ने ओरछा के दुर्ग में आश्रय लिया। इधर पिलाजी जाधव भदावर व ग्वालियर की ओर गया जहाँ वहाँ फौजदार ने समर्पण किया।
  • ग्वालियर से मराठा सेना ने शिवपुरी व कोलार आधीन किया वजीर ने मराठों को ओरछा से निकलकर अटकानें का व्यर्थ प्रयास किया। पिलाजी ने रुपये पाँच लाख अस्वीकार कर अपने माल असबाब व परिजनों के साथ पुणे लौट आया। पिलाजी की वीरता से प्रसन्न होकर छत्रपति द्वारा उसे 17 नवम्बर 1734 ई. को पोहरीहवेलीशिवपुरी व नरवर का मोकासा प्रदान किया गया। 
  • 1735 ई. में बाजीराव नन्दुरबार होता हुआ ओरछा पहुँचा जहाँ राजा रामचन्द्र ने उसका स्वागत कर पाँच तोपें प्रदान की। और बाजी भीवराव रेटरेकर की चौथ प्रदान की। करोली के शासक गोपाल सिंह ने भी मराठों के सम्मुख तोपें भेंटकर समर्पण सूचित किया। सुकलोरागुजरोला पचोरउचाटनतवाड़ा में शर्तें तयकर चौथ वसूली की गई। भदावर में बाजी भीवराव ने चौथ वसूली। सिन्धु नदी पार कर कन्हेर गढ़ पहुँचा। बाजीराव पेशवा द्वारा 1737 ई. में चम्बल पार कर भदावर पर आक्रमण किया। सना को दो भागों में बाँटकर अटेर पर भी आक्रमण किया गया। पराजित शासक अनिरूद्ध ने समर्पण कर रुपये 20 लाख व 6 हाथी दिये।  
  • बाजीराव के प्रतिनिधी गोविंद बल्लाल खेर द्वारा 1738 ई. में सागर का दुर्ग विजित कर नरगिर से सागर में सत्ता केन्द्र स्थानान्तरित किया। 
  • बुंदेलखण्ड व पूर्व में मालवा के आधीन होने से ये उत्तर में मराठा विस्तार के आधार बन गये व मराठा संप्रभुता स्थापित हुई। अब कालपी के मार्ग से उत्तर में रोहिलखण्ड का मार्ग प्रशस्त हो गया। पानीपत युद्ध की संभावना यहीं से बढ़ी परन्तु साथ ही साथ महादजी शिंदे दिल्ली में वकील उल मुतालिक बनाया जा सकता था। 1740 ई. से आगे बीस वर्षों में मराठा शक्ति अटक से कटक तक प्रसारित हो सकी। मालवांचल में पवारहोल्करशिंदे यहाँ सरेजामदार बन गये। इंदौरधारदेवासग्वालियरसागरदमोहजादौनझाँसी मराठा केन्द्र बाजीराव प्रथम की दूरदर्शिता का परिणाम रहे।

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