जगन्नाथ मंदिर के संबंध में मुख्य तथ्य |ओडिशा शैली (कलिंग वास्तुकला) |Jagannatha Temple Fact in Hindi

जगन्नाथ मंदिर के संबंध में मुख्य तथ्य 

जगन्नाथ मंदिर के संबंध में मुख्य तथ्य |ओडिशा शैली (कलिंग वास्तुकला) |Jagannatha Temple Fact in Hindi



जगन्नाथ मंदिर के संबंध में मुख्य तथ्य 

  • पुरी का जगन्नाथ मंदिर राज्य (भारत) में सबसे प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों में से एक है, यह भगवान जगन्नाथ, जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा के लिये समर्पित है।
  • इसे "व्हाइट पैगोडा" के रूप में जाना जाता है, यह चार धाम तीर्थयात्रा के चार तीर्थ स्थलों में से एक है।
  • यह ओडिशा के स्वर्णिम त्रिभुज का भी हिस्सा है, जिसमें राज्य के तीन प्रमुख पर्यटन स्थल शामिल हैं जो एक त्रिभुज बनाते हैं और एक दूसरे से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं।
  • अन्य दो स्थलों में भुवनेश्वर (मंदिरों का शहर) और कोणार्क का सूर्य मंदिर (काला पैगोडा) शामिल हैं।
  • इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में गंग राजवंश के प्रसिद्ध राजा अनंत वर्मन चोडगंग देव द्वारा किया गया था।
  • यह कलिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें विशिष्ट घुमावदार मीनारें, जटिल नक्काशी और अलंकृत मूर्तियाँ हैं।
  • जगन्नाथ मंदिर के चार द्वार इसकी चारदीवारी के मध्य बिंदुओं पर स्थित हैं तथा चारों दिशाओं की ओर मुख किये हुए हैं। इनका नाम अलग-अलग जानवरों के नाम पर रखा गया है।

द्वार

दिशा

मान्यतामोक्ष (जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति) प्राप्त करना।

सिंहद्वार (सिंह द्वार)

पूर्व

हस्तिद्वार (हाथी द्वार)

उत्तर

लक्ष्मी (धन) का प्रतीक

अश्वद्वार 

दक्षिण

मनुष्य को काम (वासना) से छुटकारा पाने में सहायता करता है।

व्याघ्रद्वार

पश्चिम

व्यक्ति को उसके धर्म (उचित व्यवहार और सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत आने वाला लौकिक नियम) का स्मरण कराता है।

 

  • इसे 'यमनिका तीर्थ' भी कहा जाता है जहाँ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति के कारण पुरी में मृत्यु के देवता 'यम' की शक्ति समाप्त हो गई है।

ओडिशा शैली (कलिंग वास्तुकला)

  • यह नागर शैली की उप-शैली है जिसका विकास कलिंग साम्राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में हुआ। इसकी कुछ विशेषताएँ इस प्रकार थीं:
  • इसमें बाहरी दीवारों को जटिल नक्काशी से भव्य रूप से सजाया जाता था जबकि अंदर की  दीवारों पर कोई नक्काशी नहीं की जाती थी।
  •  द्वारमंडप में स्तंभों का उपयोग नहीं किया जाता था। छत को सहारा देने के लिये लोहे के गर्डरों का उपयोग किया जाता था।
  • ओडिशा शैली में शिखर को रेखा देउल के नाम से जाना जाता था। इनकी छतें प्रायः लंबवत् होती थीं जो अंतिम छोर पर अंदर की ओर वक्रित होती थीं।

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