शहरी शासन क्या है? |Urban Governance GK in Hindi
शहरी शासन (Urban Governance) क्या है?
शहरी शासन (Urban Governance) क्या है?
- शहरी शासन से तात्पर्य उन प्रणालियों, प्रक्रियाओं और अभ्यासों से है, जिनके माध्यम से शहरों का प्रबंधन एवं विकास किया जाता है।
- इसमें निर्णय-निर्माण ढाँचे और संस्थान शामिल हैं जो शहरी नियोजन, सेवा वितरण शहरी क्षेत्रों के समग्र प्रशासन का मार्गदर्शन करते हैं।
- शहर निवासियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने, शहरी प्रत्यास्थता को बढ़ाने और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये प्रभावशील शहरी प्रशासन महत्त्वपूर्ण है।
शहरी शासन के प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:
हितधारक: इसमें स्थानीय सरकारें, नागरिक, व्यवसाय और गैर-सरकारी संगठन (NGOs) शामिल हैं।
नीतियाँ और विनियमन: इसमें भूमि उपयोग, क्षेत्रीकरण,
आवास, परिवहन और पर्यावरण प्रबंधन को नियंत्रित करने वाले कानून, नीतियाँ एवं विनियमन शामिल हैं।
सेवा वितरण: इसमें जल आपूर्ति, अपशिष्ट प्रबंधन, परिवहन और सार्वजनिक सुरक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं का प्रबंधन शामिल
है।
सहभागी शासन: यह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये
निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नागरिकों की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
संवहनीयता: यह सामाजिक समता और पर्यावरण संरक्षण के साथ आर्थिक विकास
को संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
भारत में शहरी शासन की वर्तमान व्यवस्था क्या है?
- 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा संविधान में एक नया भाग IX-A जोड़ा गया और स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के रूप में नगर निगमों सहित शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) के गठन का उपबंध किया गया।
- इसने संविधान में अनुच्छेद 243P से 243ZG तक और एक नई बारहवीं अनुसूची का योग किया।
- इसने राज्यों को शहरी नियोजन, भूमि उपयोग का विनियमन, जलापूर्ति और मलिन बस्ती उन्नयन सहित 18 कार्यों की ज़िम्मेदारी ULBs को सौंपने का अधिकार दिया।
शहरी स्थानीय सरकार में आठ प्रकार के शहरी स्थानीय निकाय शामिल हैं:
नगर निगम (Municipal
Corporation): नगर निगम आमतौर पर बड़े शहरों, जैसे बैंगलोर,
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि में पाए जाते हैं।
नगरपालिका (Municipality):
छोटे शहरों के लिये नगरपालिका का
प्रावधान है, जिन्हें प्रायः नगर परिषद, नगर समिति, नगर बोर्ड जैसे विभिन्न नामों से
पुकारा जाता है।
अधिसूचित क्षेत्र समिति (Notified Area Committee): तेज़ी से विकास कर रहे क़स्बों और
बुनियादी सुविधाओं से वंचित क़स्बों के लिये अधिसूचित क्षेत्र समितियाँ स्थापित की
जाती हैं।
नगर क्षेत्र समिति (Town Area Committee): नगर क्षेत्र समिति छोटे शहरों में पाई जाती है जो न्यूनतम प्राधिकार
रखती है।
छावनी बोर्ड (Cantonment Board): यह आमतौर पर छावनी क्षेत्र में रहने वाली नागरिक आबादी के लिये
स्थापित किया जाता है।
टाउनशिप (Township):
यह शहरी सरकार का एक अन्य रूप है जो
किसी औद्योगिक संयंत्र के पास स्थापित कॉलोनियों में रहने वाले कर्मचारियों और
श्रमिकों को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करता है।
पोर्ट ट्रस्ट (Port Trust): ये बंदरगाह के प्रबंधन एवं देखभाल के लिये तटीय क्षेत्रों में
स्थापित किये जाते हैं।
विशेष प्रयोजन एजेंसी (Special Purpose Agency): ये एजेंसियाँ नगर निगमों या
नगरपालिकाओं से संबंधित निर्दिष्ट गतिविधियों या विशिष्ट कार्यों का कार्यभार
संभालती हैं।
शहरी प्रशासन में सुधार के लिये क्या कदम उठाए गए हैं?
स्मार्ट सिटी मिशन (SCM):
- यह एक केंद्र-प्रायोजित योजना है, जिसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था। यह 100 शहरों को आवश्यक अवसंरचना और स्वच्छ एवं संवहनीय वातावरण प्रदान करने का लक्ष्य रखता है, ताकि ‘स्मार्ट सोल्यूशंस’ के माध्यम से वहाँ के नागरिकों को एक सभ्य गुणवत्तापूर्ण जीवन प्रदान किया जा सके।
- इसका उद्देश्य सतत् एवं समावेशी विकास के माध्यम से नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
प्रदूषण नियंत्रण के लिये धन का आवंटन:
- दिसंबर 2023 में ऐसे 131 शहरों (मिलियन प्लस सिटीज़/नॉन-अटेनमेंट सिटीज़) की पहचान की गई जो लगातार पाँच वर्षों से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) को पार कर गए हैं और तदनुसार वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये इन शहरों के लिये धन आवंटन के साथ-साथ शहर विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्ययोजनाएँ (City Specific Clean Air Action Plans) तैयार की गई हैं।
प्रधान मंत्री आवास योजना (PMAY):
- यह सरकार के ‘वर्ष 2022 तक सभी के लिये आवास अभियान’ के अंतर्गत आता है, जिसका क्रियान्वयन आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
- यह EMI के माध्यम से पुनर्भुगतान के दौरान गृह ऋण की ब्याज दर पर सब्सिडी प्रदान कर शहरी गरीबों के लिये गृह ऋण को वहनीय बनाता है।
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U):
- इसे वर्ष 2014 में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा शहरी क्षेत्रों में सफाई, स्वच्छता और उचित अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये एक राष्ट्रीय अभियान के रूप में लॉन्च किया गया था।
ऑनलाइन शासन वितरण के लिये शहरी मंच/उपयोग प्लेटफॉर्म (Urban Platform for Delivery of Online
Governance- UPYOG):
- यह ऑनलाइन माध्यम से नगरपालिका सेवाएँ प्रदान करने के लिये सृजित राष्ट्रीय संदर्भ मंच है, जो नेशनल अर्बन इनोवेशन स्टैक (National Urban Innovation Stack- NUIS) सिद्धांतों का उपयोग करता है।
अमृत योजना:
- कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन/अमृत (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation- AMRUT) वर्ष 2014 में लॉन्च किया गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर घर में जल की सुनिश्चित आपूर्ति के साथ नल और सीवरेज कनेक्शन उपलब्ध हो।
शहरी शासन में विद्यमान चुनौतियाँ कौन-सी हैं?
स्वायत्तता का अभाव:
- शहरी शासन भारतीय संविधान के तहत राज्य सूची का विषय है। इसलिये, ULBs का प्रशासनिक ढाँचा और विनियमन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
- इसके अलावा, विशेषज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि देश भर में शहरी स्थानीय निकायों के पास शहर प्रबंधन के मामले में स्वायत्तता का अभाव है और शहर स्तर के कई कार्यों का प्रबंधन अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं (राज्य द्वारा प्रबंधित और उसके प्रति जवाबदेह) द्वारा किया जाता है।
वित्तीय संसाधनों का ह्रास:
- आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के अनुसार, भारत में संपत्ति कर संग्रह दर (संपत्ति कर और जीडीपी का अनुपात) विश्व में न्यूनतम है।
- 221 नगर निगमों के RBI सर्वेक्षण (2020-21) से पता चला है कि इनमें से 70% से अधिक निगमों के राजस्व में गिरावट आई है, जबकि उनके व्यय में लगभग 71.2% की वृद्धि हुई।
- RBI की रिपोर्ट में संपत्ति कर के सीमित कवरेज तथा नगर निगम के राजस्व को बढ़ाने में इसकी विफलता पर भी प्रकाश डाला गया है।
- इन निकायों को कराधान संबंधी विभिन्न शक्तियाँ भी हस्तांतरित नहीं की गई हैं, जिसके कारण नगर निगमों की वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ रहा है।
- जबकि कर उनके राजस्व का मुख्य स्रोत है, इससे प्राप्त आय उनकी ज़िम्मेदारियों के सापेक्ष अपर्याप्त है।
एजेंसियों की बहुलता:
- प्रत्यक्ष राज्य पर्यवेक्षण के तहत विशेष प्रयोजन एजेंसियों का निर्माण, जहाँ वे शहरी स्थानीय सरकारों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, शासन को जटिल बनाता है।
- नगर निकायों द्वारा इन एजेंसियों पर नियंत्रण रखे बिना उन्हें वित्तपोषण प्रदान करना है, जैसा कि राज्य परिवहन निगम और जल आपूर्ति विभाग जैसी संस्थाओं के मामले में देखा गया है।
- इसके अलावा, समानांतर एजेंसियाँ और योजनाएँ, जैसे कि सांसद/विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास निधि, स्थानीय सरकारों की वित्तीय स्वायत्तता को कमज़ोर करती हैं, इच्छित संघीय ढाँचे को विकृत करती हैं और शहरी शासन एवं सेवा वितरण को जटिल बनाती हैं।
अनियोजित शहरीकरण :
- उपयुक्त योजना-निर्माण के बिना, नगरपालिका सेवाएँ गुणवत्ता और मात्रा दोनों के मामले में जनसंख्या की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने में संघर्षरत नज़र आती हैं।
- स्थानीय निकायों की प्रशासनिक क्षमता सीमित है, जिसके कारण भूमि के अकुशल उपयोग, अपर्याप्त आवास विकास, मलिन बस्तियों का बढ़ना, अनाधिकृत कॉलोनियों की स्थापना और जलापूर्ति, सीवेज, बिजली एवं यातायात जैसी सुविधाओं की अपर्याप्तता जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली में 1,799 अनाधिकृत कॉलोनियाँ हैं, जिनमें से 1,638 में पानी की पाइपलाइनें बिछाई जा चुकी हैं और जल की आपूर्ति की जा रही है, जबकि 48 अन्य में कार्य काम चल रहा है या आरंभ होने वाला है।
पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:
- शहरों में प्रदूषण का उच्च स्तर और अकुशल अपशिष्ट प्रबंधन निवासियों के लिये प्रमुख समस्याओं में से एक है।
- शहरी भारत में प्रतिवर्ष लगभग 42.0 मिलियन टन म्यूनिसिपल ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जो लगभग 1.15 लाख मीट्रिक टन प्रतिदिन (TPD) है, जिसमें से 72% बेंगलुरु, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद जैसे 423 टियर-I शहरों में उत्पन्न होता है।
- हाल के एक अध्ययन के अनुसार, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के दायरे में शामिल 45% शहरों में वर्ष 2024 के ग्रीष्मकाल में PM2.5 में वृद्धि देखी गई।
- शहरी पर्यावरण में गिरावट से सार्वजनिक स्वास्थ्य और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे जीवन की समग्र गुणवत्ता कम हो जाती है।
निम्न सार्वजनिक भागीदारी:
- अपेक्षाकृत उच्च साक्षरता और शैक्षिक स्तर के बावजूद, शहर के निवासी प्रायः शहरी सरकारी निकायों के कार्यकरण में सीमित रुचि रखते हैं।
- इसके अलावा, अपशिष्ट प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण में लोगों की भागीदारी का अभाव है।
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