पेशवा बाला जी बाजीराव की गतिविधियाँ | Peshwa Balaji Bajirao in MP

पेशवा बाला जी बाजीराव की गतिविधियाँ 

पेशवा बाला जी बाजीराव की गतिविधियाँ | Peshwa Balaji Bajirao in MP

पेशवा बाला जी बाजीराव की गतिविधियाँ 

  • निजाम द्वारा अपने पुत्र अजिमुल्ला को मालवा में सूबेदार का पद दिलवाया गया। दूसरे, बाजीराव की मृत्यु के कारण दिल्ली दरबार पुनः निजाम का पक्ष पोषक बन गया। तीसरे, नादिरशाह के आक्रमण से मालवांचल में भी प्रशासन व्यवस्था संज्ञा शून्य हो चुकी थी। अब बालाजी के दिल्ली स्थित दूत से उसे शीघ्र उत्तर की ओर प्रस्थान का आग्रह किया व आश्वस्त किया कि सवाई जयसिंह इस कार्य में उनकी सहायता करेगा। तब बालाजी ने सेना बुले व पिलाजी जाधवराव के पास रखी। 
  • मुगल दरबार व शासन का खोखलापन स्पष्ट था। नादिरशाह के आक्रमण के समय राजपूतों की तटस्थता उनके अलिप्त रहने का प्रमाण थी हिंगणे दफ्तर के पत्र में लिखा है कि राजपूत राजा अपने-अपने ठिकानें पर बने रहें। अतः यही समय था सम्राट पर दबाव डाला जाता तभी होल्कर रामपुरा पर आग उगल रहा था। शिंदे, विठ्ठल शिवदेवगढ विंचुरकर, नारों शिवदेस को निजाम का विरोध करने को कहा गया। रामपुरा में धूम मचाने पर होल्कर को चेतावनी दी गई कि व जयसिंह को क्रोधित न होने देवे। हिंगणे को रायामल से भेंट करने को कहा गया। पेशवा पाटन होता हुआ 1 मार्च 1741 ई. को ग्वालियर व भदावर पहुँचा। इसके पूर्व मराठों ने धार का दुर्ग विजित कर लिया था। 

  • मराठों की सेना आने के भय से सम्राट ने जयसिंह, शम्सुद्दीन खान व अज़मत खान को क्रमशः रुपये 70005000 प्रतिदिन के हिसाब से स्वीकृत कर भेजा। मराठों की सफलता को देख जयसिंह ने उन्हें बातचीत के लिए बुलवाया। हिंगणे दफ्तर का पत्राचार सिद्ध करता है कि जयसिंह की दिली ख्वाहिश थी कि मराठों से संधि हो जाए क्योंकि मालवांचल पर मराठों का अधिकार वह स्वीकार कर चुका था।

 

धौलपुर भेंट 

सिरोंज व भिलसा होते हुए पेशवा शिंदे, होल्कर व पवार के साथ 11 मई 1741 ई. को धौलपुर पहुँचा व जयसिंह आगरा की ओर से पहुँचा। बालाजी बाजीराव व चिमणाजी अप्पा के नाम से सनद् बनाई गई। 

1. छः माह के अंदर मालवांचल पेशवा को बहाल किया जावेगा। 

2. अब कोई भी अन्य मराठा अधिकारी नर्मदा पार कर आक्रमण नहीं करेगा व नर्मदा पार मुगल प्रदेश में लूटपाट नहीं मचाई जाएगी। 

3. मराठा का पाँच सौ सवारों की स्तर का अधिकारी सम्राट के पास रहेगा। 

4. पेशवा चार हजार घुड़सवारों की एक सेना सम्राट की सेवा में रखेगा जो विद्रोही जमींदारों आदि को दण्डित करेगा। इन्हें यह हिदायत दी गई कि अनुदान प्राप्त या धार्मिक आधार पर आवंटित भूखण्डों पर कर वसूली आदि नहीं करेंगें। 

5. इस सेना का व्यय सम्राट की तरफ से होगा। 

6. पेशवा को चम्बल के पूर्वी व दक्षिणी क्षेत्रों से नजराना प्राप्ति का अधिकार रहेगा।

7. मुगल सम्राट के प्रति पेशवा वफादारी रखेगा। यह शर्त सम्राट के मिथ्याभिमान की पुष्टि के लिए थी। 

 

  • 6 जुलाई 1741 ई. को पेशवा मालवा का नायब सूबेदार नियुक्त हुआ। बालाजी मालवांचल पर अधिकार को अपना हक समझता था। पेशवा को स्वीकृत 15 लाख के साथ और 6 लाख देने का अभिवचन भी दिया गया जो स्पष्ट करता है कि बादशाह के अधिकार का दिखावा किया जा रहा था। 7 सितम्बर 1741 ई. को पुनः आदेश पारित किया गया

 

1. संपूर्ण मालव क्षेत्र (पश्चिमी मध्यप्रदेश) पेशवा को दिया गया। 

2. इस क्षेत्र के प्रशासन व शांति व्यवस्था बनाये रखने का दायित्व पेशवा का था। 

3. पेशवा को इस क्षेत्र के फौजदारी अधिकार प्राप्त थे। 

4. पश्चिम मध्यप्रदेश (मालवा) के नगर, ग्राम, सड़कों आदि की सुरक्षा यात्रियों आदि की सुरक्षा सूबेदार (गवर्नर) का दायित्व था। 

5. पेशवा को किश्तों में पंद्रह लाख (15 लाख) रुपये दिये जाने के थे। राणोंजी शिंदे, मल्हारराव होल्कर, यशवंतराव पवार ने जमानतदार के रूप में हस्ताक्षर किये जबकि सम्राट मुहम्मदशहा की ओर से सवाई जयसिंह ने जमानती हस्ताक्षर किये। इस मध्य पेशवा ने बंगाल व ओडिशा क्षेत्र में अपना अधिकार स्थापित करने हेतु अभियान किये व 'सनद' प्राप्ति हेतु 'मालवे' में आया। 1743 ई. में आंशिक परिवर्तन के साथ जिसमें पेशवा को 12000 बारह हजार की सेना बादशाह के पास रखना था, जयसिंह व निजामुलमुल्क ने सनद पुनः अंता करवाई।"

 6. यह मात्र औपचारिकता थी वास्तवकि रूप में मध्यप्रदेश के मालवांचल निमाड़, मध्यप्रदेश से सटे खानदेश व बुंदेलखण्ड क्षेत्र 1732-38 ई. के मध्य ही पेशवा बाजीराव प्रथम के काल में मराठा प्रभाव में आ चुके थे।

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