केन-बेतवा लिंक परियोजना की मुख्य विशेषता क्या हैं |Ken-Betwa Link Project GK in Hindi

 

केन-बेतवा लिंक परियोजना की मुख्य विशेषता क्या हैं |Ken-Betwa Link Project GK in Hindi

केन और बेतवा नदियों के बारे में मुख्य तथ्य

केन नदी: 

  • केन नदी मध्य प्रदेश के जबलपुर में कैमूर पहाड़ियों की उत्तर-पश्चिमी ढलान पर अहिरगवां गाँव के पास से निकलती है।
  • यह नदी उत्तर प्रदेश में फतेहपुर के निकट चिल्ला गाँव में यमुना में मिल जाती है।
  • केन नदी दुर्लभ साझर पत्थर के लिये जानी जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में बावस, देवर, कैथ, कोपरा और बेयरमा शामिल हैं।

बेतवा नदी:  

  • बेतवा, मध्य प्रदेश में विंध्य श्रेणी से निकलती है, बुंदेलखण्ड से होकर बहती है, और उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में यमुना से मिलती है।
  • बेतवा की प्रमुख सहायक नदियाँ नुआन, उर और धसान हैं। प्राचीन काल में बेतवा को वेत्रवती के नाम से जाना जाता था।

 

 केन-बेतवा लिंक परियोजना (Ken-Betwa Link Project- KBLP) 

  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मध्य प्रदेश के खजुराहो में केन-बेतवा लिंक परियोजना (Ken-Betwa Link Project- KBLP) की आधारशिला रखी।
  • नदियों को आपस में जोड़ने हेतु राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) के एक हिस्से के रूप में 45,000 करोड़ रुपए की इस पहल का उद्देश्य बुंदेलखंड में जल आपूर्ति की कमी को दूर करना है।
  • KBLP के साथ-साथ प्रधानमंत्री ने दौधन बाँध सिंचाई परियोजना की आधारशिला रखी, जो क्षेत्र की 11 लाख हेक्टेयर भूमि को लाभ पहुँचाएगी।
  • प्रधानमंत्री ने ओंकारेश्वर में मध्य प्रदेश का पहला फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट का भी उद्घाटन किया, जो नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

केन-बेतवा लिंक परियोजना की मुख्य विशेषता क्या हैं?

  • KBLP, NPP के तहत भारत की पहली पहल है, जिसे वर्ष 1980 में नदियों को आपस में जोड़ने हेतु तैयार किया गया था, जिसे केन-बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण द्वारा कार्यान्वित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य मध्य प्रदेश में केन नदी से अधिशेष जल को उत्तर प्रदेश में बेतवा नदी में स्थानांतरित करना है, यह दोनों यमुना की सहायक नदियाँ हैं।

परियोजना के चरण:

  • प्रथम चरण: दौधन बाँध परिसर, निम्न-स्तरीय और उच्च-स्तरीय सुरंगों, केन-बेतवा लिंक परियोजना और बिजलीघरों का निर्माण।
  • चरण II: ओर्र/ओर नदी (बेतवा की एक सहायक नदी) पर स्थित लोअर ओर्र बाँध, बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना और कोटा बैराज का निर्माण

लाभ:

  • प्रतिवर्ष 6.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई।
  • 62 लाख लोगों को पेयजल आपूर्ति।
  • परियोजना में जल विद्युत उत्पादन (100 मेगावाट) और सौर ऊर्जा (27 मेगावाट) के प्रावधान शामिल हैं।

बुंदेलखंड का महत्त्व: 

  • बुंदेलखंड एक भौगोलिक क्षेत्र है, जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 ज़िलों में फैला हुआ है।
  • बुंदेलखंड लंबे समय से सूखाग्रस्त और जल की कमी से जूझ रहा है, जिससे रोज़गार हेतु लोगों का पलायन हो रहा है।
  • KBLP पेयजल तक पहुँच को सुनिश्चित करता है, विश्वसनीय सिंचाई के साथ कृषि तथा क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देता है, जिससे प्रवासन में कमी आती है।

आलोचकों द्वारा उठाई गई पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:

  • आलोचकों ने परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव पर चिंता व्यक्त की है, विशेष रूप से पन्ना टाइगर रिज़र्व पर, जिसका 10% से अधिक मुख्य क्षेत्र जलमग्न हो सकता है।
  • आलोचकों का तर्क है कि इस परियोजना से बाघों, गिद्धों और अन्य प्रजातियों सहित  वन्यजीव आवासों को काफी नुकसान हो सकता है।
  • 23 लाख से अधिक वृक्षों के काटे जाने की आशंका है, तथा निर्माण गतिविधियों से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।
  • सरकारी प्रतिक्रिया: सरकारी तंत्र द्वारा आश्वासन दिया गया कि परियोजना निर्माण में पन्ना टाइगर रिज़र्व के वन्य जीवन के संरक्षण पर विचार किया जाएगा तथा स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर परियोजना के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिये विकास और संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करते हुए उपाय लागू किये जाएंगे।

भारत में नदी-जोड़ो परियोजनाओं की उत्पत्ति

सर आर्थर कॉटन (19 वीं शताब्दी): 

  • नदियों को जोड़ने का विचार सर्वप्रथम ब्रिटिश इंजीनियर सर आर्थर कॉटन द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिसका उद्देश्य नौवहन और सिंचाई के लिये गंगा और कावेरी को जोड़ना था।
  • पेरियार परियोजना, जिसका निर्माण वर्ष 1895 में किया गया था, एक प्रमुख सिंचाई परियोजना है जो केरल में पेरियार नदी बेसिन से जल को तमिलनाडु में वैगई नदी बेसिन तक ले जाती है।

राष्ट्रीय जल ग्रिड: 

  • तत्कालीन केंद्रीय सिंचाई मंत्री डॉ. के.एल. राव ने 1970 के दशक में राष्ट्रीय जल ग्रिड के निर्माण का प्रस्ताव रखा था।
  • इसका उद्देश्य जल-अधिशेष क्षेत्रों से जल-कमी वाले क्षेत्रों में जल स्थानांतरित करना है।

गारलैंड नहर: 

  • कैप्टन दिनशॉ जे दस्तूर ने एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जल के पुनर्वितरण के लिये गारलैंड नहर का प्रस्ताव रखा।

राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (1980): 

  • वर्ष 1980 में तैयार की गई, जिसका उद्देश्य अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण था।
  • वर्ष 1982 में नदियों को जोड़ने के लिये जल संतुलन और व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिये राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) की स्थापना की गई थी।

नदियों को जोड़ने के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) क्या है?

  • सिंचाई मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय) द्वारा वर्ष 1980 में तैयार की गई NPP का उद्देश्य जल के अंतर-बेसिन हस्तांतरण के माध्यम से जल संसाधनों का विकास करना है।
  • NPP के अंतर्गत नदियों को जोड़ने का कार्य NWDA को सौंपा गया है।

घटक: योजना के दो मुख्य घटक हैं: 

  • हिमालयी नदियाँ और प्रायद्वीपीय नदियाँ विकास।
  • 30 लिंक परियोजनाएँ: प्रायद्वीपीय घटक के अंतर्गत 16, हिमालयी घटक के अंतर्गत 14
  • प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक: दक्षिणी और मध्य भारत में नदियों को जोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। प्रमुख परियोजनाओं में महानदी-गोदावरी, गोदावरी-कृष्णा और केन-बेतवा लिंक शामिल हैं।
  • हिमालयी नदी विकास घटक: इसका उद्देश्य गंगा एवं ब्रह्मपुत्र की पूर्वी सहायक नदियों के अधिशेष जल को पश्चिमी क्षेत्रों की ओर मोड़ना है। इससे संबंधित उल्लेखनीय परियोजनाओं में कोसी-घाघरा एवं गंडक-गंगा लिंक शामिल हैं।

महत्त्व: 

  • यह राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में जल की कमी को दूर करने पर केंद्रित है।
  • इससे सिंचाई में सुधार, कृषि उत्पादकता में वृद्धि तथा खाद्य सुरक्षा में वृद्धि होगी।
  • इससे माल ढुलाई के लिये अंतर्देशीय जलमार्गों को बढ़ावा मिलने के साथ भूजल की कमी को कम करने तथा समुद्र में प्रवाहित होने वाले मीठे जल का उपयोग करने के क्रम में सतही जल के उपयोग को महत्त्व मिलेगा।

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