अभिलेख प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के लिये प्रामाणिक और प्रत्यक्ष
स्रोत हैं, जो बाद के प्रक्षेपों और पूर्वाग्रहों से मुक्त साक्ष्य
प्रस्तुत करते हैं।
अंकित तिथियाँ और घटनाएँ
सटीक ऐतिहासिक समय-सीमा स्थापित करने में सहायता करती हैं।
राजनीतिक इतिहास पर
अंतर्दृष्टि:
अभिलेख प्राचीन भारत में शासकों, राजवंशों, विजयों, संधियों और
प्रशासन के बारे में बहुमूल्य विवरण प्रदान करते हैं।
प्रशासनिक प्रणालियाँ:
अभिलेखों में अक्सर राजस्व प्रणालियों, भूमि अनुदान, कराधान और
न्यायिक ढाँचे के बारे में जानकारी शामिल होती है।
उदाहरण के लिये, रुद्रदामन के
जूनागढ़ (गिरनार) अभिलेख में सुदर्शन झील बाँध के निर्माण और मरम्मत का वर्णन है, जो जल प्रबंधन
में प्रशासनिक प्राथमिकताओं का प्रमाण प्रदान करता है।
भाषाई विकास:
अभिलेख
भाषाओं, लिपियों और साहित्यिक शैलियों के विकास का दस्तावेज़ीकरण
करते हैं।
प्राकृत, ग्रीक और अरमाइक
भाषाओं में उत्कीर्ण अशोक के अभिलेख भाषाई विविधता और शासन को प्रभावी ढंग से
संप्रेषित करने के लिये स्थानीय लिपियों के उपयोग पर प्रकाश डालते हैं।
सामाजिक-आर्थिक संरचनाएँ:
व्यापार प्रथाओं, सामाजिक मानदंडों, जाति प्रणालियों और
आर्थिक विवरणों की जानकारी प्रायः अभिलेखों से प्राप्त होती है।
अभिलेखों से प्राचीन
धर्मों, मंदिर निर्माण, अनुष्ठानों और
शाही संरक्षण के बारे में विवरण पता चलता है।
प्राचीन भारत के कुछ
महत्त्वपूर्ण अभिलेख
राजनीतिक अभिलेख:
जूनागढ़ (गिरनार) अभिलेख
(रुद्रदामन): दूसरी सदी का एक संस्कृत अभिलेख जिसमें रुद्रदामन की उपलब्धियों का
विवरण है और चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यपाल पुष्यगुप्त द्वारा सुदर्शन झील बाँध के
निर्माण का उल्लेख है।
भितरी स्तंभ अभिलेख:
हूणों के विरुद्ध स्कंदगुप्त की सैन्य सफलता और उसके प्रशासनिक सुधारों का वर्णन
करता है।
प्रशासनिक और भूमि अनुदान
अभिलेख
पहाड़पुर अभिलेख
(बुद्धगुप्त):
बांग्लादेश में पाए गए इस अभिलेख में गुप्त काल के दौरान भूमि
अनुदान और धार्मिक संरक्षण पर प्रकाश डाला गया है।
मंदसौर अभिलेख:
हूणों पर
यशोधर्मन की विजय का विवरण,
तथा क्षेत्र में
स्थिरता बहाल करने में उनकी भूमिका पर बल दिया गया है।
ग्वालियर अभिलेख (राजा
भोज प्रथम):
इसमें ब्राह्मणों को दिये गए अनुदानों का वर्णन है और अग्रहारों का
उल्लेख है, जो कि
गुर्जर-प्रतिहारों के अधीन सामाजिक-आर्थिक प्रथाओं को दर्शाता है।
बाँसखेड़ा ताम्रपत्र:
हर्षवर्धन द्वारा हस्ताक्षरित, यह उनके वंश, प्रशासन और शासन के बारे में विवरण प्रदान करता है।
देवपरा प्रशस्ति:
बंगाल
की विजय सेना की उपलब्धियों की जानकारी मिलती है, तथा उस समय के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में
अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
कश्मीर (POK) में गिलगित के पास ब्राह्मी लिपि में लिखा एक चौथी शताब्दी का संस्कृत अभिलेख
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर
(POK) में गिलगित के
पास ब्राह्मी लिपि में लिखा एक चौथी शताब्दी का संस्कृत अभिलेख प्राप्त हुआ है।
गिलगित से प्राप्त अभिलेख
में उल्लेख है कि पुष्पसिंह ने अपने गुरु (नाम आंशिक रूप से लुप्त हो गया है) की
योग्यता के लिये महेश्वरलिंग की स्थापना की थी।
इससे पहले वर्ष 2024 में, पेशावर के पास 10वीं शताब्दी का
संस्कृत और शारदा लिपि (कश्मीर में संस्कृत और कश्मीरी के लिये प्रयुक्त) अभिलेख
खोजा गया था, जिसमें छठी
पंक्ति में "दा(धा)रिनी ("Da(Dha)rini")" के उल्लेख के साथ
बौद्ध धारिणी मंत्रों का संदर्भ दिया गया था।
बौद्ध धारिणी पवित्र
मंत्रों या जापों को संदर्भित करता है, जिनका उपयोग बौद्ध धर्म में सुरक्षा, शुद्धिकरण और
आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इन
मंत्रों में आध्यात्मिक शक्ति होती है और इन्हें अक्सर कल्याण को बढ़ावा देने के
लिये अनुष्ठानों में गाया जाता है। धारिणी में आमतौर पर पवित्र शब्दांश (syllables) या वाक्यांश (Phrases) होते हैं।
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