प्राचीन काल में सामाजिक ढाँचे का पुनर्गठन | ताँबा, काँस्य और लोहे की खोज के बाद समाज में परिवर्तन | Social Structure in Ancient History

 

प्राचीन काल में  सामाजिक ढाँचे का पुनर्गठन 

Social Structure in Ancient History 

प्राचीन काल में  सामाजिक ढाँचे का पुनर्गठन | Social Structure in Ancient History


प्राचीन काल में  सामाजिक ढाँचे का पुनर्गठन

  • ताँबाकाँस्य और लोहे की खोज ने पाषाण कालीन युग का अन्त कर दिया। इन धातुओं की खोज मानव जाति के लिए इतनी उपयोगी सिद्ध हुई कि इसने मानव जीवन के रहन-सहन के ढंग को ही बदल दिया। इन खोजों ने मानव जीवन से जुड़े सभी पहलुओं को प्रभावित किया। मानव की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। कृषि उपज बढ़ने से जीवन स्तर उच्च हुआ। सामाजिक और आर्थिक जीवन में आधारभूत बदलाव आए। सम्पत्ति का उदय हुआ। जिसके पास अधिक खेतपशु व उन्नत औजार आदि थेउन्होंने अपेक्षाकृत गरीब लोगों पर अपना आधिपत्य जमाना शुरू कर दिया।

 

ताँबाकाँस्य और लोहे की खोज के बाद समाज में परिवर्तन 

 

कृषि के क्षेत्र में प्रभाव (Effects in the Field of Agriculture )
 

  • धातु के नये उपकरणों के दूरगामी परिणाम निकले। सर्वप्रथमकृषि के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। अब नये प्रकार के हल बनाये गये जिनके निचले हिस्से में धातु की सख्त और नुकीली 'हलवानीलगाई जाने लगी। इससे भूमि को गहराई तक जोतना सम्भव हो सका । हल के लिए "जूए" (योक) का आविष्कार हुआ जिसमें बैलों को जोता जाने लगा और बैलों की सहायता से हल खिंचवाये जाने लगे। इससे बैलों का महत्त्व बढ़ा। पशुओं के गोबर का खाद के रूप में प्रयोग किया जाने लगा जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई।

 

 सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में परिणाम (Effect in Social and Economic Field)

 

विशिष्ट वर्गों का विकास - 

  • धातु के क्षेत्र में होने वाले नवीन आविष्कारों ने सामाजिकआर्थिक और अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित किया। इन आविष्कारों ने समाज में बहुत से विशिष्ट वर्गों को विकसित किया जिनमें लुहारबढ़ईकुम्हारसुनारठठेरे आदि मुख्य थे। इन वर्गों के सदस्यों ने खाद्यान्न उत्पादन पर अधिक ध्यान न देकर अपनी विशिष्ट सेवाओं का लाभ उठाने के लिये उन्हें अपनी जीविका का मुख्य साधन बना लिया। सामान्य किसान को उनकी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए उन्हें पारिश्रमिक देना पड़ा जिसके लिए उसे अधिक उत्पादन करना पड़ा। अर्थात् अब मानव श्रम का विभाजन हो गया। परिणामस्वरूप समाज में जातियाँ और उपजातियाँ अस्तित्व में आने लगीं।

 

निजी सम्पत्ति की वृद्धि -

  • इस युग की एक सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी निजी सम्पत्ति की वृद्धि । निजी सम्पत्ति के सर्वप्रथम रूप पशुदासजमीन और काश्त करने के औजार थे। इन पर अपना स्वामित्व प्रकट करने के लिए मुद्राएँ (सील्स) अस्तित्व में आईं और सम्पत्ति की रक्षा के लिए नियमकानून आदि की आवश्यकता अनुभव हुई।

 

शासक वर्ग का उदय -

  • नियम एवं कानून बनाने तथा उनका पालन करवाने की आवश्यकता ने शासकों और योद्धाओं के वर्ग को विकसित किया। इससे राज्य निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया। सर्वाधिक सम्पत्ति और दासों का स्वामी अपने समूह का मुखिया बन बैठा और कालान्तर में मुखिया लोग राजा बन गये।

 

 लेखन कला का आविष्कार - 

  • संभवतः नियमों एवं कानूनों तथा मानव अनुभव को संचित करने तथा आने वाली पीढ़ी को उसे प्रदान करने के लिए लेखन का आविष्कार हुआ। इससे आने वाली पीढ़ियों को काफी लाभ पहुँचा।

 

 स्त्रियों की स्थिति -

  • इस युग में स्त्रियों की स्थिति को भारी धक्का लगा। धातु से सम्बन्धित आविष्कार पुरुष वर्ग की देन थी जिससे स्त्रियों की तुलना में उसकी अवस्था अच्छी हो गई। अब समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था कायम हो गई। पुरुष परिवार का मुखिया अथवा स्वामी बन गया। परिवार की सम्पूर्ण सम्पत्ति पर उसका स्वामित्व कायम हो गया। इसी के साथ पैतृक वंशानुगत उत्तराधिकार की परम्परा भी चल पड़ी।

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