राजनीतिक सिद्धांत की उपयोगिता |Uses of Political Theory

 

राजनीतिक सिद्धांत की उपयोगिता (Uses of Political Theory)

राजनीतिक सिद्धांत की उपयोगिता |Uses of Political Theory


 

राजनीतिक सिद्धांत की उपयोगिता (Uses of Political Theory)

राजनीति में राजनीतिक सिद्धांत का अपना ही विशेष महत्त्व रहा है हालांकि पिछली शताब्दी के अंतिम दशक तक कुछ विद्वानों द्वारा राजनीतिशास्त्रराजनीतिक दर्शनराजनीतिक सिद्धांत तथा राजनीति को एक-दूसरे के पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है लेकिन 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में शुरू हुई व्यवहारवादी क्रांति के कारण राजनीतिक विद्वान ने इन सभी शब्दावलियों को स्पष्ट शब्दरुचि देने में सफलता प्राप्त की। अतः आज इन शब्दों को एक निश्चित अर्थ के रूप में ही प्रयोग किया जाता है। जहाँ तक राजनीतिक सिद्धांत का प्रश्न हैइसका अर्थ जानने के लिए इसे दो भागों में विभक्त किया जाता है। राजनीति के लिए Politics (पॉलिटिक्स) शब्द का प्रयोग किया जाता है। राजनीति में सामान्यतः औपचारिक संरचनाओं जैसे- राज्य शासक व शासन तथा उनके परस्पर संबंधों का अध्ययन तो किया जाता है साथ ही साथ अनौपचारिक संरचनाओं जैसे राजनीतिक दलदबाव समूहयुग संगठन, - आदि का अध्ययन भी किया जाता है। अतः राजनीति का संबंध संकीर्ण न होकर विस्तृत है। जनमत

 

'सिद्धांतको अंग्रेजी में Theroy ( थ्योरी) कहा जाता है। इस शब्द की उत्पत्ति वस्तुतः ग्रीक भाषा के शब्द थ्योरिया (Theoria) से हुई है जिसका अर्थ है 'भावनात्मक चिंतनजिसका अभिप्राय हैएक ऐसी मानसिक दृष्टि जो कि एक वस्तु के अस्तित्व और उसके कारणों को प्रकट करती है लेकिन वर्णन मात्र ही सिद्धांत नहीं कहलाता। इस विषय में आर्नोल्ड ब्रेस्ट का कहना है कि किसी भी विषय के संबंध में एक लेखक की पूरी की पूरी सोच या समझ शामिल रहती है। उनमें तथ्यों का वर्णनउनकी व्याख्यालेखक का इतिहास बोधउसकी मान्यताएँ और वे लक्ष्य शामिल हैं जिनके लिए किसी भी सिद्धांत का प्रतिपादन किया जाता है।

 

अतः कहा जा सकता है कि राजनीतिक विद्वानों द्वारा जिस विषय से संबंधित सिद्धांत का निर्माण किया जाता है। उस विषय के बारे में उसको उसका पूर्ण ऐतिहासिक ज्ञान रखना पड़ता हैसाथ ही साथ पूर्ण तथ्यों को एकत्रित कर वह मूल्यांकन करते हुए निष्कर्षो को जन्म देता है। 


राजनीतिक सिद्धांत को विभिन्न लेखकों ने अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया है जैसे-

 

कार्ल पोपर के अनुसार सिद्धांत एक प्रकार का जाल है जिससे संसार को पकड़ा जा सकता है ताकि उसे समझा जा सके। यह एक अनुभवपूरक व्याख्या के प्रारूप की अपने मन की आँख पर बनाई गई रचना है। "

 

एन्ड्यू हेकर के अनुसार - " राजनीतिक सिद्धांत में तथ्य और मूल्य दोनों समाहित हैं। वे एक-दूसरे के पूरक हैं। " डेविड हैल्ड - "राजीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन से संबंधित अवधारणाओं और व्यापक अनुमानों का एक ऐसा ताना-बाना है जिसमें शासन राज्य और समाज की प्रकृति व लक्ष्यों और मनुष्यों की राजनीतिक क्षमताओं का विवरण शामिल है। "

 

बर्नाड क्रिक- " राजनीतिक सिद्धांत साधारणतया राजनीतिक जीवन से उत्पन्न दृष्टिकोण व क्रियाओं की व्याख्या करने का प्रयास करता है। "

 

इस प्रकार उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि राजनीतिक सिद्धांत में मुख्य तीन तत्त्वों का समावेश होता है। प्रथम तत्त्व अवलोकन कहलाता है जिसके अन्तर्गत कोई सिद्धांतशास्त्री राज्य और शासन से संबंधित तथ्यों व आंकड़ों को एकत्रित कर उसमें से उपयुक्त घटनाओं और तथ्यों का चयन करता है जिनका प्रयोग वह अपने विचारों की पुष्टि के लिए करता है। उदाहरण के तौर पर प्लेटोहॉब्सलॉकमैक्यावलीमार्क्स आदि सभी विद्वानों ने तत्कालीन परिस्थितियों का विवेचन इस कारण किया क्योंकि वे उन परिस्थितियों से असंतुष्ट थे तथा उनमें से कोई

 

मार्ग निकालना चाहते थे। हॉब्स ने अपने समय की अराजकता की परिस्थिति को देखते हुए निरंकुश राजतंत्र का समर्थन किया था। दूसरा तत्त्व व्याख्या से संबंधित हैइसके अन्तर्गत जिन तथ्यों और घटनाओं को सिद्धांतशास्त्रियों द्वारा एकत्रित किया जाता है उसमें से अनुचित और अनावश्यक सामग्री को दूर किया जाता है जिसके पश्चात् उचित सामग्री को विभिन्न श्रेणी में विभक्त कर उसका विश्लेषण किया जाता है और तत्पश्चात् 'कारणऔर 'कार्यके बीच संबंध स्थापित किया जाता है। इससे जो निष्कर्ष प्राप्त होते हैं उसे ही सिद्धांत कहा जाता है। अतः इस प्रकार अवलोकन में जहाँ सिर्फ तथ्यात्मकता तक सीमित रहता है वही अन्तर्गत तथ्यों के चयन से परे जाकर एक सिद्धांत का रूप धारण कर लेती है। वास्तव में किसी भी सिद्धांत की वैज्ञानिकता इस बात पर निर्भर करती है कि तथ्यों के चयन और व्याख्या में कितनी विलासता और ईमानदारी का पालन किया जाता है। राजनीति का सिद्धांत का अंतिम तत्त्व मूल्यांकन है। तथ्य और मूल्य का सिद्धांत निर्माण की प्रक्रिया में विशेष महत्त्व है। जिसमें किसी एक के अभाव में सिद्धांत का निर्माण संभव नहीं है। इसीलिए सिद्धांतशास्त्रियों को एक साथ वैज्ञानिक और दार्शनिक दोनों की भूमिका निभानी पड़ती है। जिसके अन्तर्गत उसे जहाँ एक तरफ तथ्यों और घटनाओं को एकत्रित करना होता है वहीं दूसरी ओर मूल्यों के रूप में अपने आदर्शों व लक्ष्यों को निर्धारित करना होता है। हालांकिलोकतंत्रमताधिकारस्वतंत्रतासमानता और न्याय का मूल्यांकन करते समय वह अपने रुचियों से बँधा होता है लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाला सिद्धांतशास्त्री स्वयं की रुचि और आदर्शों को एक तरफ रखकर वैज्ञानिक विधियों के आधार पर सिद्धांत का निर्माण कर सकता है। इतना होते हुए भी दोनों परिस्थितियों में मूल्य निर्धारण का महत्त्व कम नहीं होता।

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