भारत में विदेशी विनियोग | विदेशी पूँजी के प्रति भारत सरकार की नीति |Foreign investment in India

भारत में विदेशी विनियोग 
Foreign investment in India

भारत में विदेशी विनियोग | विदेशी पूँजी के प्रति भारत सरकार की नीति |Foreign investment in India



भारत में एफ. डी. आई. के मूल देश

 

  • यदि हम भारत में एफ.डी.आई. के मूल देशों का अवलोकन करते हैं तो सूची के सर्वोच्च स्थान पर सर्वाधिक अप्रत्याशित प्रविष्टि मॉरीशस की है। हिंद महासागर में स्थित यह द्वीप भारत में विदेशी विनियोग का सबसे बड़ा स्रोत है। ऐसा नहीं है कि मॉरीशस के पास पूँजी का बहुत अधिक अतिरेक है किंतु द्वीप में कर की दरें बहुत कम हैं तथा भार के साथ दोहरे करारोपण से बचाव की संधि हुई है। इसे ही 'कर 'स्वर्ग' (Tax Heaven) कहा जाता है। इस प्रकार कंपनियाँ न्यून कर की दरों से लाभ उठाने तथा भारत में विनियोग करने के लिए मॉरीशस में पंजीकृत हैं।

 

  • मॉरीशस के पश्चात् सिंगापुर है । सिंगापुर से विनियोग प्रमुख रूप से दूर संचारसेवाओं के समुद्र पार होनेऊर्जा एव तेल परिशोधन शालाओं में हैं। सिंगापुर से भारत एवं एशिया के अन्य देशों में बढ़ता हुआ विनियोग एशियाई क्षेत्रीय विनियोग की प्रवृत्ति का एक भाग है।

 

  • भारत में परंपरागत विनियोक्ता यू.एस.ए.यू.के.जापानजर्मनी एवं अन्य यूरोपीय देश हैं. 

 

विदेशी पूँजी के प्रति भारत सरकार की नीति

 

  • विदेशी व्यापार के समान विदेशी पूँजी द्वारा विनियोग से संबंधित भारत की नीति को दो चरणों में विभाजित किया जा सकता है: 1991 से पूर्व एवं 1991 के पश्चात् 1991 से पूर्व एफ.डी.आई. पर अनेक नियंत्रण थे। बहु-राष्ट्रीय कंपनियों को भारतीय भागीदार बनाना आवश्यक होता था तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ सममूल्य अंशों में केवल 40 प्रतिशत तक ही विनियोग कर सकती थीं। इस नीति के कारणउदाहरण के लिएएक बार आई. बी. एम. एवं कोका-कोला कंपनी को भारत से बाहर जाना पड़ा। 


  • किंतु 1991 के बाद समूमूल्य अंशों में 51 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग (एफ.डी.आई.) की अनुमति प्रदान कर दी गई जिसका अर्थ यह होता है कि बहु-राष्ट्रीय कंपनी की नियंत्रणात्मक रुचि हो सकती है। अधिकांश एफ.डी.आई को प्राथमिकता क्षेत्रों में स्वतः के रूप में अनुमति प्रदान की गई जिसमें (मध्यवर्ती एवं पूँजीगत वस्तुएँ सम्मिलित हैं)। सीमा के बाहर अन्य एफ.डी.आई. के लिए विदेशी विनियोग प्रोत्साहन बोर्ड' (एफ.आई.पी. बी.) से अनुमति लेनी पड़ती थी।

 

  • किंतु एफ.डी.आई. पर अब भी कुछ नियंत्रण हैं। फुटकर व्यापार में अधिक अंशों की एफ.डी.आई. केवल एकाकी ब्राँड दुकानों के ही अनुमति होती है। बहुब्राँड फुटकर व्यपार जैसे वालमार्ट में सरकार ने हाल ही में (2011 के अंत में) नीति परिवर्तन की घोषणा की। किंतु इस नीति के बड़े पैमाने पर विरोध ने सरकार को इसे निलंबित करने पर बाध्य कर दिया। भारत में अब भी विदेशी पूँजी के प्रति अत्यधिक अविश्वास है।

 

गैर-विनियोग विदेश नियंत्रित उत्पादन

 

  • अनेक बातों में से एक जिस पर एफ.डी.आई. से संबंधित अत्यधिक चर्चा की जाती है वह मेजबान देश में आर्थिक गतिविधियों का विदेशी नियंत्रण है। किंतु यह ध्यान देने योग्य है कि मेजबान देश की आर्थिक गतिविधियों पर विदेशी प्रभाव बिना किसी पूँजी विनियोग के भी भली-भाँति हो सकता है यह संबंधों के अनेक नए रूपों में होता है। ठेका युक्त विनिर्माण एवं खेती सेवाओं का बहिस्रोतीकरण तथा फ्रैंचाइज अथवा लाइसेंस प्रदान करना वैश्विक उत्पादन का एक निरंतर बढ़ता हुआ रूप वैश्विक उत्पादन नेटवर्क (जी. पी. एन.) के अंतर्गत ठेकायुक्त उत्पादन या वैश्विक उत्पादन श्रृंखला (जी.वी.जी.) का है। जी.पी. एन. उत्पादन के अंतर्गत विक्रेता अपने उत्पाद को बाजार में वस्तुओं के रूप में नहीं बेचते हैं न तो वे बहु-राष्ट्रीय कंपनी शाखाओं के माध्यम से उत्पादित किए जाते हैं। इसके बजाय उत्पादक उन्हें क्रेताओं से ठेके के आधार पर उत्पादन करते हैं। यह स्थिति अनेक श्रम प्रधान वस्तुओं सिले सिलाए वस्त्रों या चमड़े की वस्तुओं के उत्पादन में अनेक बार होती है।

 

  • इस प्रकार के ठेकायुक्त वैष्विक उत्पादन में क्रेता उत्पादन को बहुत विस्तार में स्पष्ट करते हैं। डिजाइनरंगवस्त्रसहायक वस्तुओं के प्रकार बहुत स्पष्ट होते हैं। माल की पूर्ति का समय निश्चित होता है। अतः कीमतें भी निश्चित होती हैं। इस प्रकार के श्रृंखला या नेटवर्क उत्पादन के अंतर्गत क्रेताओं को उत्पादन सुविधाओं में कोई भी विनियोग नहीं करना पड़ता है तथा कथित शासन के रूप क्रेताओं को उत्पादन पर नियंत्रण करने में सक्षम बनाते हैं।

 

  • इस प्रकार ठेका युक्त उत्पादन सिले- सिलाए वस्त्रों एवं चमड़े के उत्पादों जैसे सापेक्षिक रूप में सरल क्षेत्रों से आगे लैपटॉप एवं अन्य कंप्यूटरों जैसे जटिल इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों तक विस्तृत हो गए हैं। प्रारंभ में क्रेता या ठेकेदार इस प्रकार के ठेकायुक्त उत्पादन में श्रम दशाओं के लिए कोई उत्तरदायित्व नहीं लेते थे। उनका तर्क था कि यह विक्रेताओं या उत्पादकों का उत्तरदायित्व होता हैकिंतु ठेकायुक्त उत्पादन से क्रेताओं को अत्यधिक लाभ होने के कारण विकसित देशों में नागरिक आंदोलनों ने इस बात पर जोर दिया है कि इन श्रम दशाओं के लिए क्रेताओं का उत्तरदायित्व होना चाहिए।

 

  • कम से कम कुछ श्रम दशाओं के लिए इस उत्तरदायित्व ने श्रम दशाओं के राज्य शासन के अतिरिक्त निगमित शासन के रूपों को जन्म दिया है। बहुचर्चित श्रम दशाओं से संबंधित बात बाल श्रमिकों की है। संचार माध्यम के दबावसामान्य जन आंदोलन तथा सरकार ने उत्पादन के कार्यशाला केंद्रों या मुख्य कारखानों से बाल श्रमिकों को अधिकांशतः हटा दिया है। किंतु अन्वेषणों से यह प्रदर्शित होता है कि इससे पूर्ति श्रृंखला से संपूर्ण बाल श्रमिक नहीं हटा हैइसके बजाय घर के अंदर किए जाने वाले कार्यों जैसे हाथ की कढ़ाई आदि में बाल श्रमिकों की बहुत बड़ी संख्या निरंतर लगी हुई है। तथापिमुख्य बात यह है कि उत्पादन पर विदेशी नियंत्रण के ऐसे रूप हैं जिनमें विदेशी पूँजी विनियोग सम्मिलित नहीं होते हैं। ठेकायुक्त उत्पादन के उन रूपों की वृद्धि जिनमें बिना किसी पूँजी विनियोग के विदेशी क्रेताओं को नियंत्रण प्रदान करते हैंउन पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

 

विदेशी पूँजी से संबंधित नीति का आलोचनात्मक

 

  • व्यापार एवं विदेशी पूँजी के संबंध में अर्थव्यवस्था के खुले होने से लेकर अब तक कोई बड़ा आर्थिक संकट उत्पन्न नहीं हुआ है और न तो विदेशी पूँजी द्वारा अर्थव्यवस्था का अधिग्रहण किया गया है। वास्तव में विदेशी पूँजी चाहे वह एफ.डी.आई. हो या पोर्टफोलियो विनियोगबहुत बड़ी मात्रा में नहीं आई है। बढ़ते हुए घरेलू बाजार के साथ, 2005 से पूर्व मात्र लगभग $ 5 बिलियन प्रति वर्ष से 2009 के आर्थिक संकट से पूर्व तक $ 20 बिलियन एवं $ 40 बिलियन तथा 2009-10 में $ 50 बिलियन तक वृद्धि हुई है। एफ.आई.आई. में पर्याप्त उतार-चढ़ाव हुए हैं। जब विकसित अर्थव्यवस्थाएँ मंदी के दौर में होती हैं तो पूँजी का प्रवाह उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की ओर हो जाता है जिनमें भारत भी सम्मिलित है तथा विकसित अर्थव्यवथाओं में तेजी के साथ विपरीत प्रवाह होता है। किंतु जैसा कि भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट (2011-12) में संकेत है कि भारत $ 100 बिलियन प्रति वर्ष की मात्रा के प्रवाह परिवर्तनों का प्रबंधन करने में सक्षम हुआ है तथा इससे घरेलू बाजार में बहुत अधिक अस्त व्यस्तता उत्पन्न नहीं हुई है। किंतु भारत के एफ.डी.आई. एवं दक्षिण पूर्व देशों एवं चीन में एफ.डी.आई. के बीच बहुत बड़ा अंतर है। उन देशों में एफ.डी.आई. ने देश के निर्यातों में पर्याप्त मात्रा में योगदान किया। इसने संभवतः पूरक घरेलू विनियोग को आवश्यक बनाने तथा एफ. डी.आई. से पूर्व बाजारों में पूर्ति न किए जाने वाले बाजारों को प्राप्त करने के द्वारा देश के कुल विनियोग में वृद्धि की। किंतु भारत में निर्यात क्षेत्र में बहुत कम एफ. डी.आई. हुआ है। 


  • भारतीय निर्यात निरंतर भारतीय पूँजी पर आधारित बने हुए हैं। ऑटोमोबाइल जैसे भारतीय घरेलू बाजार को प्राप्त करने के लिए अधिकांश एफ.डी. आई. हुआ है। यदि यह एफ.डी.आई नहीं हुआ होता तो यह संभव है कि यह एफ. डी.आई. भारतीय विनियोग का स्थानापन्न रहता है। अर्थात् इसमें भारतीय विनियोग को प्रतिस्पर्धा में बाहर कर दिया। इस प्रकार के एफ.डी.आई. का एक महत्त्वपूर्ण लाभ यह होता है कि यह घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा में वृद्धि करता है तथा कार्यकुशलता को प्रोत्साहित करता है। तथापिकुल मिलाकर भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्था में विदेशी पूँजी न तो सभी रोगों की रामबाण है न ही प्रभुसत्ता को धमकी है।

 

  • अंत मेंक्या एफ.डी.आई. में आयात या तकनीक का उच्चीकरण सम्मिलित होता है एक सापेक्षिक रूप से बंद एवं ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें घरेलू पूँजी भली-भाँति विकसित नहीं हैएफ.डी.आई. के अंतर्गत नवीनतम तकनीक सम्मिलित नहीं हो सकती है। एफ.डी.आई. के माध्यम से विकासशील देशों में अपेक्षाकृत पुराने प्लांट एवं उपकरण ले जाए जा सकते हैं। किंतु भारत जैसी अपेक्षाकृत अधिक विकासशील अर्थव्यवस्था में एफ.डी.आई. के अंतर्गत अपेक्षाकृत पुरानी तकनीकों के अधिक सम्मिलित होने की संभावना नहीं होती है। 'अन्य कंपनियाँ नवीनतम तकनीक आयात कर सकती हैं तथा लागत लाभ प्राप्त कर सकती है। यह तथ्य अपेक्षाकृत पुरानी तकनीक के आयात हतोत्साहित करेगा। दूसरी ओरचूँकि विकासशील देशों ने पहले से अपेक्षाकृत पुरानी तकनीक में विनियोग नहीं किया होता है अतः इस बात की अधिक संभावना होती है कि वास्तव में नवीनतम तकनीक का आयात किया जाए। यह दूर संचार जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से हुआ है। एशियाई एवं घटिया भू-टेलीफोन प्रणाली वाले अफ्रीका के देशों ने भी तकनीकी विकास की कुछ परंपरागत चरणों की अनदेखी करते हुए सीधे मोबाइल दूरसंचार प्रणाली में प्रवेश किया है। वास्तव में जिस सीमा तक आधुनिकतम तकनीक का आयात किया जाता है या नहींयह एकाधिकार की सीमा पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त कोई भी पहले से ही सुस्थापित क्षेत्र में प्रवेश का प्रयास करने वाली कंपनी के प्रतिस्पर्धी लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से अधिक नवीनतम तकनीक के आयात की संभावना होती है। सामान्यतः एक अर्थव्यवस्था जितनी अधिक प्रतिस्पर्धी एवं विकसित होगीएफ.डी.आई. के तकनीक के उच्चीकरण के रूप में परिणत होने की संभावना उतनी ही अधिक होती है।

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